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श्री गणेश अभिनन्दन

रामकृष्ण सहस्रबुद्धे: रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे

आज से श्री गणेशोत्सव प्रारम्भ हो रहा है।भारतीय संस्कृति श्री से ही श्री गणेश करती है। श्री गणेश को आदि देव, प्रथम पूज्य माना जाता है। वे सभी दुख हरकर सभी सुख देने वाले देव हैं।
इनके अनेक नाम हैं और हर नाम की अपनी कहानी और विशेषता है 
मैं आज श्री से इतनी ही विनती करता हूं कि वे हम सबको शक्ति दें,भक्ति दें और अपने चरणों में स्थान दें ताकि राष्ट्र हित में, समाज हित में कार्य कर सकें।

सभी सम्मानित रचनाकारों को सपरिवार हार्दिक शुभ कामना

अभय कुमार सिंह: गणेश वन्दना

हे गणराया, हे मंगलमूर्ती!
हे विध्नहर्ता, हे गणपति,!
वंदना करू मैं तेरी 
देना मुझको सन्मति,
कही अधर्म न हो मुझसे,
हमेशा करू सत्कर्म की उन्नति।
हे गौरी पुत्र, हे गणपति।

हे देवव्रत, हे देवेन्द्राशिक।
हे सिद्धिप्रिय, हे सुरेश्वरम: ।
विनती सुनो मेरी करो रहम
बहुत भटका हूँ,
अंधकार के गलियारों में,
करो मेरे मन को चंचल, चितवन।
हे सुरेश्वरम, है गजानन।

हे एकदन्त:, हे लम्बोदर:।
झूठ, अहंकार बहुतरे के मन मे,
दो सबको सदबुद्धि करो कल्याण।
धर्म की वृद्धि हो, हो अधर्म का नाश,
हे गणेशा मुझको रखो अपने चरणों के पास।

अभय

[25/08 3:38 PM] विश्वेश्वर शास्त्री: जय जय गणेश,
शुभ शुभ्र वेश,
हरलो कलेश,
गिरजा नंदन |
कर कृपा नाथ,
मैं जन अनाथ,
कीजे सनाथ ,
है पद बंदन |
आयो हों द्वार,
सुन लो पुकार,
लीजे उबार,
यम के फंदन |
पूजत सुरेश,
अग जग अशेष,
विनती "विशेष"
हे अभिन्दन ||

विश्वेश्वर शास्त्री "विशेष"

गणेश चतुर्थी की आप सबको हार्दिक शुभकामनायें

◆गीत◆(गणेश-जन्म)

(दिल में तुझे बिठाके....धुन पर आधारित)

शिव ब्याह जब रचाया,
तिहुँलोक हर्ष छाया,
कैलाश धाम आये.....
संग में उमा लिवाये.....

1-एक बार सखियों सह गिरजा 
ये बिचार है कीन्हा।
नाथ गणों के ऊपर हमको
कुछ अधिकार न दीन्हा।।
गण होय इक हमारा,
सारे गणों से न्यारा,
कैलाश धाम आये..... 

2-अति प्रसन्न हो नहा रहीं थीं
उमा गुफा के अंदर।
द्वारपाल तब नंदी बनकर 
बैठे थे द्वारे पर।।
महादेव तबहिं आते,
नंदी न रोक पाते,
कैलाश धाम आये......

3-शिवजी को लख उमा लाज से
हो गईं पानी-पानी।
तबही आई याद उमा को,
सखी की बात पुरानी।।
तब मैल को छुटाया,
इक पिंड है बनाया,
कैलाश धाम आये....... 

4-पार्वती के मैल से ऐसे
जन्म गणेश ने पाया।
कालांतर में यही पुत्र फिर
गणनायक कहलाया।।
गणराज गिरजानन्दन,
"शैलेन्द्र" करते वन्दन,
कैलाश धाम आये.......

~शैलेन्द्र खरे"सोम"

[25/08 3:54 PM] कौशल पाण्डेय आस: ◆ घनाक्षरी ◆
🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙🌙
वक्रतुण्ड महाकाय,दीनों के सदा सहाय।
आस उर धारे दास,शरण में लीजिए।।

संकट विनाशक हो,आप गण शासक हो।
नेह दृष्टि डाल आस,पूर्ण मम कीजिए।।

प्रथम हो पूज्य आप,हर लेते सभी ताप।
मम उर दोष हर,पाप मुक्त कीजिए।।

पूजूँ नित प्रात नाथ,थामों प्रभु मेरा हाथ।
दयावंत"आस"को भी,निज दास कीजिए।। 

कौशल कुमार पाण्डेय "आस"

[25/08 4:06 PM] सुशीला धस्माना जी:
गणेश चतुर्थी 

मुक्तक 

कार्य करें आरंभ जब, लें गणेश का नाम। 
विघ्न तुरंत ही दूर हों, पूरण होवें काम।। 
याद दिलाती इन दिनों, गणेश चतुर्थी रोज,
वर देने आते गणेश, छोड़ स्वयं का धाम।। 
सुशीला धस्माना मुस्कान

[25/08 4:27 PM] आ• अनीता मिश्रा: गणपतिजी आओ
मोदक भोग लगाओ ।
सभी के सारे कष्ट हरो 
बुद्धि से भंडार भरो ।।

सुखदायक - गणनायक हो
उमा -सुत विनायक हो ।।
गणपति आओ 
मोदक भोग लगाओ ।।

देवो में प्रथम -पुज्य हो 
बल-बुद्धि में विशाल हो ।।
मिलकर हम आरती उतारे
जय-जय गणपति उचारे।।

गणपति आओ 
मोदक भोग लगाओ ।।

अनीता मिश्रा ""सिद्धि"'

मुक्त-विधा
[25/08 5:04 PM] सुमित सोनी: श्री गणेश चतुर्थी

आज तो चतुर्थी है ,गजानन को घर लाओ।
मोदक हैं प्रिय उनको तुम मोदक चढ़ाओ।

पूज्य प्रथम हैं और देवा हैं ये बुद्धि के,
ध्यान धरो की स्वामी हैं रिद्धि - सिद्धि के
चलो इनके आगमन का उत्सव मनाओ,
मोदक प्रिय उन्हें है तुम मोदक चढ़ाओ।

- सुमित कुमार सोनी

[25/08 5:22 PM] दीपक: 

मन में तू बसा गणपति प्रतिमा,पूजन तो होगा स्वीकार|
गणेश पुराण पढ़ो तुम पहले ,दर्शन देंगे गणपति बप्पा|
पार्वतीसुत आएंगे और विघ्न नाश कराएंगे|
सबके पूज्य बनेंगे और सबको ज्ञान कराएंगे|
बुध्दिविधाता देवादेवा एकदन्त गजानन 
कीर्ति गौरीसुता हेरम्बा ये सब हैं उनके सब रूप

-- दीपेन्द्र सिंह ( दीपेन्द्र बैसवारी)

[25/08 5:49 PM] डाॅ• राहुल शुक्ल: वाहहहहह आ• विश्वेश्वर शास्त्री जी शानदार जलहरण घनाक्षरी से मंच गौरवान्वित हुआ, आपकी उपस्थिति व स्नेह हमारी ऊर्जा है| 

गणपति को जय जय करो, सदा धरो उर ध्यान| आज पटल पर छा गये, जय जय कलम महान|| 
साहिल

[25/08 6:43 PM] ममता सिंह: 

प्रथम वंदना गणपति की मैं करती बारम्बार
कृपा होय महाराज की सफल होय सब काज
मोदक मिष्ठान पान सुपारी में लेके आई साथ
हाथ जोड़ में भेंट चढ़ाऊँ दीजे आशीर्वाद
भूल चूक जो त्रुटि हुई क्षमा करो महाराज 
कृपा दृष्टि जहाँ आप की पूर्ण होय सब काज।।
©ममता सिंह राठौर ,मीत

[25/08 9:30 PM] कृष्णकांत तिवारी: आर्य समाज को माँ कहने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी, क्रान्तिकारी,विद्वान बाल गंगाधर तिलक ने सन १८९४ ई० में गणेश उत्सव की परम्परा का श्री गणेश किया था।तब से लेकर आज तक अनेकों तरह से भारतीय जनमानस प्रथम पूज्य भगवान गणेश की आराधना पाण्डाल सजाकर सामूहिक रूप से करता आ रहा है।

जन चेतना जगाने में इन सामूहिक कार्यक्रमों की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण होती है।भारतीय स्वतंत्रता प्राप्ति में गणेश उत्सव की भूमिका अक्षुण हैं।

रिद्धि सिद्धि के दाता भगवान श्री गणेश के पाण्डालों में पधारने पर हम हार्दिक स्वागत वंदन करते हैं और प्रार्थना करते हैं कि वे भारतीय जनमानस पर बुद्धि,विद्या,धन,आदि अनेक सिद्धियों सहित कृपा करें।

सभी को गणेश चतुर्थी की हार्दिक शुभकामनाएँ।

कृष्ण कान्त तिवारी "दरौनी"

[26/08 12:38 AM] भगत गुरु: 

आज गणेश चतुर्थी है |

हमारे सबसे विचित्र पौराणिक देवता गणेश जी का जन्मदिन |
आज के दिन महाराष्ट्र सहित देश के कई भागों में भगवान गणेश जी की मूर्तियां स्थापित की जाती है और नौ दिनों की पूजा-अर्चना के बाद दसवे दिन (अनन्त चतुर्दशी) समारोहपूर्वक उनका विसर्जन किया जाता है । 

गणेश जी वस्तुतः व्यक्ति नहीं, प्रकृति की शक्तियों के रूपक हैं । यह रूपक देखने में जितना अजीब लगता हो, पर उसमें जीवन के कई गहरे अर्थ छुपे हैं | हमारे पूर्वजों ने उनके रूप में प्रकृति और मनुष्य के बीच संपूर्ण सामंजस्य का एक आदर्श प्रतीक गढ़ा है । 

गणेश जी का मस्तक हाथी का है । चूहे उनके वाहन हैं। बैल नंदी उनका मित्र और अभिभावक है। मोर और साँप उनके परिवार के सदस्य | पर्वत उनका आवास है । वन उनका क्रीड़ा-स्थल । आकाश उनकी छत । उनके चार हाथों में जल का प्रतीक शंख, सौंदर्य का प्रतीक कमल, संगीत का प्रतीक वीणा और शक्ति का प्रतीक परशु हैं । रिद्धि और सिद्धि उनकी दो पत्नियाँ हैं, जो देह में हवा के आने और जाने अर्थात प्राण और अपान की प्रतीक हैं; जिनके बगैर कोई जीवन संभव नहीं | सरलता और भोलापन गणेश जी का स्वभाव है । 

गणेश जी के प्रति सम्मान का अर्थ है प्रकृति में मौजूद सभी जीव-जंतुओं, जल, हवा, जंगल, पर्वत और आकाश का सम्मान । सम्मान सौन्दर्य, कला और सात्विकता का । प्रकृति की विविध शक्तियों के प्रतीक गणेश जी एक साथ मासूम, शक्तिशाली, योद्धा, विद्वान, कल्याणकारी और शुभ-लाभ के दाता हैं । उन्हें देवताओं में प्रथम पूज्य कहा गया है। मतलब कि प्रकृति पहले, बाकी तमाम शक्तियाँ उसके बाद ।

गणेश के इस अद्भुत रूप की कल्पना संभवतः यह बताने के लिए की गई है कि प्रकृति से सामंजस्य बैठाकर ही मनुष्य शक्ति, बुद्धि, कला, संगीत, सौंदर्य, भौतिक सुख, लौकिक सिद्धि, दिव्यता और आध्यात्मिक ज्ञान सहित कोई भी उपलब्धि हासिल कर सकता है।
सारांश में कहें तो गणेश हम सबके भीतर है | इसलिए, आइए ! प्रकृति को सम्मान और संरक्षण देकर हम अपने भीतर के गणेश को जगाएँ ! 

🙏 जय-जय
(साभार)

सुप्रभात प्रिय मित्रों
श्री गणेश-वंदना 

(तर्ज-तोरे नैना बड़े दगाबाज......)

गणराज हो -----२
तुम्हें दिल से पुकारा है आज हो.....

१-शिवजी के प्यारे हो, गिरजा दुलारे हो, 
तुमसा न कोई दूजा।
सुर नर मुनि ध्याते हैं,तुमको मनाते हैं,
करते प्रथम पूजा।।
मैं हूँ अज्ञानी मुझको तो ज्ञान दे दो,
बल व् बुद्धि का मुझको वरदान दे दो,
अधिराज हो-----२
तुम्हें दिल से पुकारा है आज हो.....

2-एकदंत लम्बोदर,कर दो कृपा मो पर,
विद्या विनायक तुम्हीं।
सब कष्ट हरते हो, मंगल ही करते हो,
सद्ज्ञान दायक तुम्हीं।।
खुश ही रहता हूँ पावन ये नाम लेके,
"सोम" दिन रात सुबहा व शाम लेके,
सरताज हो ------2
तुम्हें दिल से पुकारा है आज हो.....

~शैलेन्द्र खरे"सोम"

Comments

  1. Thank you for sharing the article. it is very helpful for us. we are thanking you for writing this article
    गणेश जन्म

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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