रतिलेखा छन्द [सोम/साहिल]

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◆रतिलेखा छंद◆

विधान~
[ सगण नगण नगण नगण सगण गुरु]
( 112  111  111 111  112   2 )
16वर्ण, यति{11-5} वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

नित मैं सुमिरत  गिरिधर, प्रभु निहारौ।
सुनिये  विनय जु  नटखट,अब उबारौ।।
हरिये भव भय कलु तम, चित सुधारौ। 
यह सेवक भटकत अब, कछु बिचारौ।।  

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

🥀🥀  ♤♡ रतिलेखा छंद ♡♤

[सगण नगण नगण नगण सगण गुरु]
( 112  111  111 111  112   2 )
16वर्ण, यति{11-5} वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

हरिये मम तन कलुमष, हिय खिलाओ|
मन में हर दिन सुमिरत, अब मिलाओ||
तरसे पल पल प्रियतम, मुद  मनाओ|
महके उपवन तुम मम, सुर सुनाओ||

    ♢✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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