26/08/2017
आज गणेश चतुर्थी है |
हमारे सबसे विचित्र पौराणिक देवता गणेश जी का जन्मदिन |
आज के दिन महाराष्ट्र सहित देश के कई भागों में भगवान गणेश जी की मूर्तियां स्थापित की जाती है और नौ दिनों की पूजा-अर्चना के बाद दसवे दिन (अनन्त चतुर्दशी) समारोहपूर्वक उनका विसर्जन किया जाता है ।
गणेश जी वस्तुतः व्यक्ति नहीं, प्रकृति की शक्तियों के रूपक हैं । यह रूपक देखने में जितना अजीब लगता हो, पर उसमें जीवन के कई गहरे अर्थ छुपे हैं | हमारे पूर्वजों ने उनके रूप में प्रकृति और मनुष्य के बीच संपूर्ण सामंजस्य का एक आदर्श प्रतीक गढ़ा है ।
गणेश जी का मस्तक हाथी का है । चूहे उनके वाहन हैं। बैल नंदी उनका मित्र और अभिभावक है। मोर और साँप उनके परिवार के सदस्य | पर्वत उनका आवास है । वन उनका क्रीड़ा-स्थल । आकाश उनकी छत । उनके चार हाथों में जल का प्रतीक शंख, सौंदर्य का प्रतीक कमल, संगीत का प्रतीक वीणा और शक्ति का प्रतीक परशु हैं । रिद्धि और सिद्धि उनकी दो पत्नियाँ हैं, जो देह में हवा के आने और जाने अर्थात प्राण और अपान की प्रतीक हैं ; जिनके बगैर कोई जीवन संभव नहीं | सरलता और भोलापन गणेश जी का स्वभाव है ।
गणेश जी के प्रति सम्मान का अर्थ है *प्रकृति में मौजूद सभी जीव-जंतुओं, जल, हवा, जंगल, पर्वत और आकाश का सम्मान ।* सम्मान सौन्दर्य, कला और सात्विकता का । प्रकृति की विविध शक्तियों के प्रतीक गणेश जी एक साथ मासूम, शक्तिशाली, योद्धा, विद्वान, कल्याणकारी और शुभ-लाभ के दाता हैं । उन्हें देवताओं में प्रथम पूज्य कहा गया है। मतलब कि प्रकृति पहले, बाकी तमाम शक्तियाँ उसके बाद ।
गणेश के इस अद्भुत रूप की कल्पना संभवतः यह बताने के लिए की गई है कि प्रकृति से सामंजस्य बैठाकर ही मनुष्य शक्ति, बुद्धि, कला, संगीत, सौंदर्य, भौतिक सुख, लौकिक सिद्धि, दिव्यता और आध्यात्मिक ज्ञान सहित कोई भी उपलब्धि हासिल कर सकता है।
सारांश में कहें तो गणेश हम सबके भीतर है | इसलिए, आइए ! प्रकृति को सम्मान और संरक्षण देकर हम अपने भीतर के गणेश को जगाएँ !
🙏 जय-जय
(साभार)
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