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Showing posts from January, 2018

सिसकियाँ सरस जी

    सिसकियाँ विधा~गीत आकण्ठ हृदय से निकल गयीं| सिसकीं होठ सिसकियाँ|| सिसक-सिसक सिसकी कहती| अँखियाँ बहतीं ज्यों नदियाँ|| बिछड़ गयीं पर तुम तो खुश थीं| भूल गया बिछड़न गम को|| किन्तु मिलन ये पाया कैसा ? मिली आँख छलकन हमको|| छला नियति ने चुपके से फिर| दुख की आ गिरी बिजलियाँ|| सिसक -सिसक सिसकी ----------- लिपट लिपट के किससे रोती| गया बीत कुछ छुटपुट में|| जीवन साथी वो छोड़ गया | फिर यादों के झुरमुट में|| दो कलियों की मुस्कानों से| महकीं घर आँगन गलियाँ|| सिसक -सिसक सिसकी--------- दुख देने वाले ने देखा| ये खुश कैसे रहता है ? हर एक दृष्टि मम यौवन पर| चुभन हृदय बस सहता है || गिरीं टूट संबंध टहनियाँ || नोंच खरोंच घृणा घड़ियाँ | सिसक -सिसक सिसकी--------- माना समझौता जीवन है| पर कुछ अपना भी मन है|| लता आश्रय एक चहाती | चाहत की बस तड़पन है|| दुख बहुत बड़ा हार न हिम्मत| कहतीं जब तब आ सखियाँ|| सिसक -सिसक सिसकी-------- 🌹🖊🌹🖊🌹🖊🌹 दिलीप कुमार पाठक "सरस"

सिसकियाँ (पं. सुमित शर्मा 'पीयूष')

  विषय : सिसकियाँ 🙏🌸🙏🌸🙏🌸🙏 माँ को रोते देखा है बिखरेपन सी महक बिछी है, अब आँगन-ओसारे में, सूखे पत्ते टूटे-बिखरे, हैं कच्चे गलियारे में! निर्जनता के बीज, वक्त को घर में बोते देखा है! कैसे कह दूँ खुश हूँ? मैंने, माँ को रोते देखा है! कभी झुंड गौरैयों का,_ जिस घर में चहका करता था! वात्सल्य का पुष्प जहाँ, आँचल में महका करता था! रोज सिसकियों के सूते में, शाम पिरोते देखा है! कैसे कह दूँ खुश हूँ? मैंने माँ को रोते देखा है! ~पं० सुमित शर्मा “पीयूष संपर्क : 8541093292

राधारमण छन्द

        राधारमण छंद विधान~ [नगण नगण मगण सगण]यय (111  111  222  112) 12 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत] (नगण+नगण+मगण+सगण, १२ वर्ण प्रति चरण युक्त चार चरण, क्रमश: दो-दो चरण समतुकान्त) चहल पहल का आयोजन है| जय जय शुभता संयोजन है|| कविवर जन का सम्मेलन है| सुरभित  हरषे मेरा मन है|| तन - मन सँवरे प्यारी धुन हो| कल- कल करती धारा गुन हो|| सब जन  मिलते  तारे गिनते| हर  अटकल  की  राहें चुनते||    ©साहिल     जय जय झटपट मन दौड़ाओ जी| नटखट बन आ जाओ जी|| चटपट कुछ तो खाओ आ| कर हलचल छा जाओ आ|| 🖊सरस🖊 हलचल अब तो होगी मन में| प्रियतम  तड़पेगी जीवन में|| हम तुम मिलके गाना लिखते| प्रियवर   तुमसे वादा रखते||    साहिल

भृंग छन्द

भृंग छंद विधान ~ [{नगण(111)×6}+पताका], 111 111 111 111 111 111 21, 20 वर्ण,यति 12,8 वर्ण पर,4 चरण दो-दो चरण समतुकांत। लगन मगन मन  मचलत, सकल भुवन चाह| सुखद सरल तन महकत, दिखत मिलन राह|| फड़कत  रदपुट  ललछर, कहत  परम  बात| सुरमय जप - तप सँवरत, भजत दिवस रात|| © डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

स्वामी विवेकानंद का परिचय

स्वामी विवेकानन्द शिकागो (1893) में चित्र में स्वामी विवेकानन्द ने बाँग्ला एवं अंग्रेज़ी भाषा में लिखा है: "एक असीमित, पवित्र, शुद्ध सोच एवं गुणों से परिपूर्ण उस परमात्मा को मैं नतमस्तक हूँ।" इसी चित्र में दूसरी ओर स्वामी विवेकानन्द के हस्ताक्षर हैं।. 👆🙏🙏🙏👆👆👆      नरेंद्रनाथ दत्त जन्म - 12 जनवरी 1863 कलकत्ता (अब कोलकाता) मृत्यु4 जुलाई 1902 (उम्र 39) बेलूर मठ, बंगाल रियासत, ब्रिटिश राज (अब बेलूर, पश्चिम बंगाल में) गुरु/शिक्षक~ श्री रामकृष्ण परमहंस दर्शन ~ आधुनिक वेदांत, राज योग साहित्यिक कार्य - राज योग, कर्म योग, भक्ति योग, ज्ञान योग, माई मास्टर कथन ~ "उठो, जागो और तब तक नहीं रुको जब तक लक्ष्य प्राप्त न हो जाये" धर्म~ हिन्दू दर्शन आधुनिक वेदांत, राज योग राष्ट्रीयता ~ भारतीय स्वामी विवेकानन्द कलकत्ता के एक कुलीन कायस्थ परिवार में जन्मे विवेकानंद आध्यात्मिकता की ओर झुके हुए थे। वे अपने गुरु रामकृष्ण देव से काफी प्रभावित थे जिनसे उन्होंने सीखा कि सारे जीव स्वयं परमात्मा का ही एक अवतार हैं; इसलिए मानव जाति की सेवा द्वारा परमात्मा की भी सेवा की ज

विवेकानंद का शिक्षा-दर्शन

विवेकानन्द का शिक्षा-दर्शन 👇🙏 स्वामी विवेकानन्द मैकाले द्वारा प्रतिपादित और उस समय प्रचलित अेंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था के विरोधी थे, क्योंकि इस शिक्षा का उद्देश्य सिर्फ बाबुओं की संख्या बढ़ाना था। वह ऐसी शिक्षा चाहते थे जिससे बालक का सर्वांगीण विकास हो सके। बालक की शिक्षा का उद्देश्य उसको आत्मनिर्भर बनाकर अपने पैरों पर खड़ा करना है। स्वामी विवेकानन्द ने प्रचलित शिक्षा को 'निषेधात्मक शिक्षा' की संज्ञा देते हुए कहा है कि आप उस व्यक्ति को शिक्षित मानते हैं जिसने कुछ परीक्षाएं उत्तीर्ण कर ली हों तथा जो अच्छे भाषण दे सकता हो, पर वास्तविकता यह है कि जो शिक्षा जनसाधारण को जीवन संघर्ष के लिए तैयार नहीं करती, जो चरित्र निर्माण नहीं करती, जो समाज सेवा की भावना विकसित नहीं करती तथा जो शेर जैसा साहस पैदा नहीं कर सकती, ऐसी शिक्षा से क्या लाभ? अतः स्वामीजी सैद्धान्तिक शिक्षा के पक्ष में नहीं थे, वे व्यावहारिक शिक्षा को व्यक्ति के लिए उपयोगी मानते थे। व्यक्ति की शिक्षा ही उसे भविष्य के लिए तैयार करती है, इसलिए शिक्षा में उन तत्वों का होना आवश्यक है, जो उसके भविष्य के लिए महत्वपूर्ण हो। स्वा

हरिवंश राय बच्चन की सम्पूर्ण "मधुशाला"

पूरी मधुशाला... मृदु भावों के अंगूरों की आज बना लाया हाला, प्रियतम, अपने ही हाथों से आज पिलाऊँगा प्याला, पहले भोग लगा लूँ तेरा फिर प्रसाद जग पाएगा, सबसे पहले तेरा स्वागत करती मेरी मधुशाला।।१।  प्यास तुझे तो, विश्व तपाकर पूर्ण निकालूँगा हाला, एक पाँव से साकी बनकर नाचूँगा लेकर प्याला, जीवन की मधुता तो तेरे ऊपर कब का वार चुका, आज निछावर कर दूँगा मैं तुझ पर जग की मधुशाला।।२। प्रियतम, तू मेरी हाला है, मैं तेरा प्यासा प्याला, अपने को मुझमें भरकर तू बनता है पीनेवाला, मैं तुझको छक छलका करता, मस्त मुझे पी तू होता, एक दूसरे की हम दोनों आज परस्पर मधुशाला।।३। भावुकता अंगूर लता से खींच कल्पना की हाला, कवि साकी बनकर आया है भरकर कविता का प्याला, कभी न कण-भर खाली होगा लाख पिएँ, दो लाख पिएँ! पाठकगण हैं पीनेवाले, पुस्तक मेरी मधुशाला।।४। मधुर भावनाओं की सुमधुर नित्य बनाता हूँ हाला, भरता हूँ इस मधु से अपने अंतर का प्यासा प्याला, उठा कल्पना के हाथों से स्वयं उसे पी जाता हूँ, अपने ही में हूँ मैं साकी, पीनेवाला, मधुशाला।।५। मदिरालय जाने को घर से चलता है पीनेवला, 'किस पथ से जाऊँ?'