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◆भुजंगी छंद◆
विधान~
[यगण यगण यगण+लघु गुरु]
( 122 122 122 12
11वर्ण,,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
वही भोज प्यारा खिला दीजिए|
मुझे प्रेम प्याला पिला दीजिए||
वही गीत माला सुना दीजिए|
सदा 'प्रीत' धारा बुना कीजिए||
मिले मीत ऐसा गुनों से भरे|
कही बात मेरी सुना जो करे||
बसी याद मीठी दिलाती रहो|
दिखे दूर तारा सुलाती रहो||
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
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