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सिसकियाँ सरस जी

    सिसकियाँ
विधा~गीत

आकण्ठ हृदय से निकल गयीं|
सिसकीं होठ सिसकियाँ||
सिसक-सिसक सिसकी कहती|
अँखियाँ बहतीं ज्यों नदियाँ||

बिछड़ गयीं पर तुम तो खुश थीं|
भूल गया बिछड़न गम को||
किन्तु मिलन ये पाया कैसा ?
मिली आँख छलकन हमको||

छला नियति ने चुपके से फिर|
दुख की आ गिरी बिजलियाँ||

सिसक -सिसक सिसकी -----------

लिपट लिपट के किससे रोती|
गया बीत कुछ छुटपुट में||
जीवन साथी वो छोड़ गया |
फिर यादों के झुरमुट में||

दो कलियों की मुस्कानों से|
महकीं घर आँगन गलियाँ||

सिसक -सिसक सिसकी---------

दुख देने वाले ने देखा|
ये खुश कैसे रहता है ?
हर एक दृष्टि मम यौवन पर|
चुभन हृदय बस सहता है ||

गिरीं टूट संबंध टहनियाँ ||
नोंच खरोंच घृणा घड़ियाँ |

सिसक -सिसक सिसकी---------

माना समझौता जीवन है|
पर कुछ अपना भी मन है||
लता आश्रय एक चहाती |
चाहत की बस तड़पन है||

दुख बहुत बड़ा हार न हिम्मत|
कहतीं जब तब आ सखियाँ||

सिसक -सिसक सिसकी--------

🌹🖊🌹🖊🌹🖊🌹
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

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