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शिक्षामित्रों के विरूद्ध सुप्रीमकोर्ट के आदेश पर एक नज़र

□ बहुत ही आश्चर्यचकित और विस्मय कर देने वाली खबर सुनकर मन आत्मा की आवाजें खत्म हो गई, हृदय शून्य हो गया, दिमाग की स्थिति बाढ़ से भरे भूस्थल की तरह हो गई, *वो खबर थी 25 जुलाई 2017 का  सुप्रीमकोर्ट का आदेश जिसमें कहा गया कि "समायोजित शिक्षकों को निकाला जाए।" जिन्दगी किसी के लिए शून्य भी हो सकती है, इसका भी तो ध्यान रखें।  मानवता बदनाम हो सकती हैं इसका भी संज्ञान रहें।*
         तन मन आत्मा से किये गये कर्म से ही कौशल और अनुभव में दिन प्रतिदिन निखार आता जाता है जिससे प्रतिभा जागृत होती है
और इन प्रतिभाओं का आकलन/प्रतिस्पर्धा बड़ी मुश्किल हो जाती है।

□  *पोखर, कुआँ, नदी, नहर, सागर आदि विभिन्न स्थान से जल कई रूपों में सूर्य की किरणों द्वारा आकाश में अवशोषित कर लिया जाता है, सागर से सबसे अधिक जल अवशोषित होता है, अन्य स्थानों से कुछ कम और कुछ क्षेत्र तो सूखाग्रस्त हैं। अवशोषित जल एकत्र होकर सघन बादल के रूप में रगड़ द्वारा एकसमान सर्वत्र वर्षा करता है।* *रिमझिम मनभावन प्रकृति और मनुष्य को उमंग से भरने वाली वर्षा तो सर्वत्र एक समान ही होती है। ईश्वरानुदानस्वरूप जब हमें वर्षा, वायु,जल आदि मिलने में समानता है तो हम इंसान और इंसानों के समूह क्यों नहीं समझ पाते इस समानता को, प्रकृति की महानता को, प्रागाढ़ दैविक तारतम्यता को|*
    क्यों है अनभिज्ञ!
    क्यों है अनजान!
सभी मनुष्यों एवं उनके समूह से, समाज से, सरकार से, न्यायपालिकाओं से, अपील हैं कि किसी भी मुद्दे पर गहनावलोकन पश्चात ही मानवीय एवं उच्चतापरक निर्णय लें|

       *समायोजित शिक्षा मित्रों के विरूद्ध निर्णय पर फिर से विचार करें|*

तेरी मर्जी मैं क्यूँ मानूँ,
तू अपना मैं अपना जानूँ,
हमने नियम बनाए  थे,
न जाने किसने तोड़ दिए,
उम्मीदों का पेड़ लगाया,
शिक्षा मित्र का फूल उगाया,
जब सोंधी खुशबू आने लगी,
कोलाहल स्वर सुनाने लगी,
क्या हुआ आज इस मधुवन में,
जिनके श्रम से बगिया महकी,
चुनकर चुनकर उनको फेंक रहें,
ऐसा  कौन  दानव  आया,
हम तो सावन में खोए थे,
हमने सोचा सावन आया,
जाने किस युग की सोच जगी,
फूलों की ही  टहनी कटी,
टहनी से फूल न पनपे फिर
जड़ काटने की साजिश चली,
कैसी है ये रीत बाजै बैरी गीत ,
भूलै न भइया महाकाल की लाठी,
बलिदान यदि दे सकता जो,
हर मुश्किल सह सकता वो,
हर रात के बाद तो सवेरा तय है,
हर बेसहारा का बसेरा तय है,
तपन के बाद बरसात आती है,
दुख है पर सुख की सौगात आती है,
विचारों की क्रान्तियाँ तूफान मचाती है,
सकल जनशक्ति ही बदलाव लाती है।

© *डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल*
         इलाहाबाद

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