गरीबी

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          गरीबी

तड़प रहा हूँ भूख से मैं,
खाना पीना मिला नही,
क्या करता मैं काम भाइयों,
दर दर ठोकर खाया हूँ
नेता कहते थे तुम्हारी 
नौकरी है पक्की
इतनी मेहनत का जो था
उसको भी मैने गँवाया
जो बचा था जीने को
उससे शिक्षा का कर्ज पटाया
आ गया हूँ रोड पर
अब छत भी है नही
रोटी कमाने जाता हूँ तो
मिलती है गाली मुझे
तू किसी काम का नही
कहते है सब मुझे
टूट चुका हूँ मैं अब तो
मुझसे कुछ होता नही
भटक रहा हूँ राह पर
खाना पीना मिला नही
ये गरीबी किसे बताऊँ
कोई मेरी सुनता नही
घर में जाओ तो नकारा
कह रहे है लोग मुझको
कहाँ मिलेगी मुझको रोटी
बस यही मैं सोचता हूँ
कैसे  हटे  मेरी  गरीबी
युक्ति वो मिलती नही
राह मिल जाए  ऐसी
अपनो को मैं खुश रख सकूँ||

  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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