🙏 जय हिन्दी - जय हिन्दुस्तान 🙏
मित्रों,
आज आजादी की पूर्व-संध्या पर *जनचेतना सा० सां० स०* २२६, पीलीभीत (उ.प्र.) के तत्त्वावधान में संस्था के आभासी पटल *"जय-जय हिन्दी"* पर हम सब *एक शाम - देश के नाम काव्य-सम्मेलन* कार्यक्रम में एकत्र आए हैं |
*इहेतुक संस्था के जमीनी कार्यकर्ताओं व इसके आभासी पटल \ अनुषंगी पटलों के प्रबंधकों को बहुत-बहुत साधुवाद कि इस अप्रतिम कार्यक्रम की प्रायोजना की | साथ ही साथ आप सब प्रतिभागियों को भी इस कार्यक्रम को भव्य-दिव्य और अप्रतिम बनाने के लिये बहुत-बहुत बधाइयाँ ज्ञापित करते हुये स्वयं को कृतार्थ अनुभव करता हूँ |*
इहेतुक बहुत-बहुत शुभकामनाएँ और साधुवाद 💐
🙏
*मित्रों,*
*यह आजादी का उत्सव हमें अपनी सभ्यता, संस्कृति व अस्मिता को अक्षुण्ण रखने के लिये हुये बलिदानों का स्मरण कराता है |*
हमारे लोगों ने जो स्वतंत्रता की मशाल हमारे हाथों में सौंपी है, यदि हमने पूरी ईमानदारी से इसकी संरक्षा की तो वह प्रलय के बाद भी अजस्र प्रकाशमान रहेगी | *तब तक कि जब तक नक्ष्रत्र मंडल में ऊर्जा, वायु में प्रवाह, अग्नि में तेज, जल में शीतलता, आकाश में ग्राह्यता, पृथ्वी में सहनशक्ति और नानाविध सनातन शृंखलाएँ विद्यमान रहेगी; हम स्वतंत्र व गुरु-गौरवान्वित रहेंगे |*
हमारे पुरोधाओं ने जो विकट और अनथक संघर्ष किये, बलिदान दिये , यातनाएँ सही तो केवल और केवल इसलिये कि *हमारी संस्कृति, सभ्यता, अस्मिता, ज्ञान-विज्ञान, धरोहर, वैभव, संस्कार और गौरव अक्षुण्ण बना रहे | और उनकी यही जीवटता "१५ अगस्त १९४७" को हमें "आजाद-भारत का उपहार दे गई है |*
वे आज हमारे समक्ष उदाहरण बनकर हमें प्रेरित करते हैं कि हम अडिग होकर इस गौरव को संरक्षित-सुरक्षित रखें |
*आज हमारे समक्ष राजनीतिक मर्यादाओं का क्षरण और पतनकारी शक्तियों के सुनियोजित षड़यंत्र पुन: विकट-काल उपस्थित कर रहे हैं ; इहेतुक हमें अपने आपको न केवल संगठित करना है, बल्कि अपनी संपूर्ण समूह-शक्ति को इन विपर्ययों के सामने हिमालय बनाकर रखना होगा |*
हम अपनी इसी आपाधापी में यदि *पल भर भी देश व समाज की स्थिति पर नज़र डाल सकें तो हमें पता चलेगा कि किस प्रकार विघटनकारी शक्तियाँ हमारे गौरवशाली अंगोंपागों को भीतर तक दीमक की चाट रहीं हैं | उदाहरणार्थ~ आज धर्म की परिभाषा को इतना विकृत कर दिया गया है कि हमें वास्तविकता का ज्ञान ही नहीं रहा | हमारे संस्कारों को आधुनिकता के नाम पर इतने घिनौने तरीकों से रौंदा जा रहा कि आत्मा में अकुलाहट होने लगती है | आज हमारा ही मूल ज्ञान हमसे दूर किया जा रहा है और सुनियोजित तरीकों से नये रूप, नाम व तड़क-भड़क के साथ हमारा अहितकर और विमनजनों का हितकर बनाकर हमें ही परोसा जा रहा है और हम भी अत्युत्साहित होकर अंधभक्त बने ही उनका गुणगान किये जा रहे हैं | अपने ही धर्म, संस्कृति आदिक का उपहास कर आधुनिक बने हुये हैं | धिक्कार है हमें !!*
आज के पावन अवसर पर अकिंचन केवल इतना ही कहना चाहता है कि आधुनिक होना और नये को ग्रहण करने में कोई आपत्ति नहीं है, सहर्ष लीजिए | परन्तु अपनी जड़ों को मज़बूती देना भी हमारा ही काम है | *यदि हमने नयापन या आधुनिक होने की कीमत में अपनी ही जड़ों को, सभ्यता को, संस्कृति को,सरोकारों को, ज्ञानादि को विगलित किया तो यह "बुद्धिमानी" नहीं बल्कि "महामूर्खता" ही होगी |*
मित्रों,
एक बार की ठोकर ने हमें नानाविध प्रकार से कमोबेश १२०० वर्षों तक पराधीनता के आवरण में आबद्ध किया था, जिससे मुक्ति का संघर्ष सुदीर्घ-काल तक चला , परन्तु मुख्यत: परिणति में ९० वर्षों तक लगातार चला और तब हम खुद को आजाद कहने लायक हुए |
वस्तुत: आजादी का मोल देकर भी हम आज सब-कुछ भुला बैठे और निजहित व स्वार्थ के मारे होकर पतनोन्मुख होते जा रहें हैं |
*अत: संभलो, देखो, समझो, जानो, पहचानो, तर्क-वितर्क करो और यथार्थ के धरातल पर सोचो कि सही क्या है और गलत क्या ? यदि हम ऐसा करते हैं तो आने वाली पीढ़ियाँ हम पर गर्व करेंगी और यदि ऐसा नहीं कर सके तो इस बार की गुलामी सौ-दो सौ वर्षों के संघर्ष से मिटने वाली नहीं होगी, यह अच्छी प्रकार से जान लेना है | इस बार यदि हम पराधीन हुये तो सहस्राब्दियाँ हमें उठने के लायक न होने देंगी | ऐसा क्यों होगा और क्या करने से नहीं होगा, यह अपने आपसे बेहतर हमें कोई नहीं समझा सकता |*
© जय-जय
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