🌺 पृथ्वी संरक्षण 🌺
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बहुत ही गम्भीर विषय है। पृथ्वी संरक्षण तो समझ में नही आया केवल ये समझ आया कि हम जिस धरती पर रहते हैं, जिसकी जलवायु में रहते हैं, जिस प्रकृति के उपहार स्वरूप अनुदानों का उपयोग करते हैं, पेड़ पौधों और वनों से प्राण वायु एवं भोजन प्राप्त करते हैं, सुखद शीतल हवा का आनन्द लेते हैं और धरती माता के दैविक संसाधनों का इस्तेमाल करते हैं। इसके बदले में हम प्रकृति को धरती माता को प्रदूषण देते है, पेड़ पौधे काटकर मकान इमारत बनाते हैं, गाडियों से धुयें का प्रदूषण फैलाते हैं। वन सम्पदा को हानि से नही बचा पाते हैं पहाड़ों को काटकर रास्ते और भवन बनाते हैं। नदियों के जल कटाव को नही रोक पाते हैं, मृदा संरक्षण की ओर नही मन लगाते हैं, अच्छी फसल खाद और कीटनाशकों से बनाते हैं।मृदा के खनिज को बचा नही पाते हैं, कूड़ा, कचरा, सीवेज, गन्दा पानी, आदि बहुत कुछ पावन नदियों में और भूमि की तलछट में मिलाते हैं, धरती को गन्दा बनाते हैं, जीवों को मारते हैं और उर्वरा शक्ति को घटाते हैं। हमें तो समझ में नही आता कि हम फिर कैसे धरती को माता कहते हैं। प्रकृति और धरती के संसाधनों का समुचित उपयोग ही, बिना प्रदूषण फैलाये पृथ्वी संरक्षण कहलाता है।
पृथ्वी को प्रदूषण से बचाये,
संसाधनों का संरक्षण सीखे और सिखाये,
धरती की सहनशीलता अनुपम है,
अपना समझें दायित्व सभी को बतायें।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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विश्व वानिकी दिवस
21/03/2017
वनों की परिभाषा,प्रकार, वन सम्पदा,वनों का विनाश,वन सुरक्षा,आदि का उल्लेख करते हुए मानव जीवन में वनों का महत्व
भूमंडल पर व्याप्त सभी प्रकार की वनस्पतियों जिसमें पौधे, पेड़, खर/ पतवार, घाँस, आदि किसी विशेष स्थान पर सघन रुप में हों तो उन्हें वन कहते हैं जहाँ मनुष्यों के आवासीय क्षेत्र बहुत कम ही होते हैं। वन्य जीव जन्तु पाये जाते हैं।
सघन वन और विरल वन में बहुत ज्यादा बड़े चीड़, यूकेलिप्टस, पीपल, सागौन, चाचड़, आदि घने पेड़ों से लदा हुआ वन सघन वन होता है, इसके विपरीत कुछ फैले हुए पेड़ और छोटे पौधे विरल वन कहलाते हैं।
बढ़ती जनसंख्या एवं बढ़ते आवासीय/ रिहायशी इलाकों के कारण वनों को काटकर मकान और आवास बनाये जा रहे हैं बनते जा रहे हैं।
बढ़ते प्रदूषण से वन समाप्त हो रहे है, कई पौधों की प्रजातियाँ विलुप्त प्राय है। मृदा कटाव, खनिजों की कमी, अम्ल वर्षा, वन अग्नि आदि अनेकों कारणों से वन सम्पदा समाप्त हो रही है।
शहरी क्षेत्रों में इमारतें बनती जा रही हैं मकान बन रहे हैं हर जगह सड़के, रास्ते, भवन, गाड़ियाँ, मोटर, सब जगह दिखायी दे रही हैं पौधों की संख्या कम हो रही है, पेड़ काट कर भवन बनाये जा रहे हैं। कुछ यही हाल अब गाँवों का भी हो रहा है बहुत ही आश्चर्य जनक विषय है। जहाँ खेत लहलहाते थे, आम और अन्य फलों के बगीचे थे।फूलों के उपवन थे अब वहाँ या तो खाली स्थान या सूखा नज़र आता है।
मानव और अन्य जीवों के लिए वनों का संरक्षण अत्यंत आवश्यक हो गया है।
मृदा के अपरदन को रोकें, नदी के किनारे की मिट्टी के कटाव को रोकने के उपाय हो, (नारियल खजूर आदि का पेड़ लगाकर), मृदा संरक्षण पर ध्यान दिया जाये। मृदा के खनिजों को बरकरार रखने के लिए कीटाणुनाशक दवाओं एवं खाद का प्रयोग कम हो।
सभी जीवों में सर्वश्रेष्ठ कहलाने वाले मनुष्य एवं अन्य प्राणी सभी के जीवन के लिए प्राणवायु (आक्सीजन) अति आवश्यक है, जो श्वसन तंत्र के माध्यम से शरीर के फेफड़ो से छनकर रक्त में घुलकर हृदय पम्प के माध्यम से पूरे शरीर में फैली धमनियों में आक्सीजन पहुंच कर शरीर की सबसे छोटी इकाई कोशिका को ऊर्जा बनाने के लिए प्रेरित करती है अर्थात आक्सीजन या शुद्ध प्राण वायु हर प्राणी के जीवन के लिए परम आवश्यक है।
इस ओर भी ध्यान आकृष्ट करें की पेड़ पौधे वनस्पति भी सजीव हैं एवं ईश्वर प्रदत्त धरती पर पेड़/पौधे सार्थक स्थूल एवं स्थायी लाभ एवं हित के लिए ही स्थापित है। अपने जीवन काल में प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया द्वारा अपने तने एवं पत्तियों से स्टोमेटा छिद्र के द्वारा अधिकतर दिन में आक्सीजन निकालते रहते हैं बहुत से ऐसे पौधे एवं पेड़ ऐसे है जो 24 घण्टे दिन रात आक्सीजन देते हैं उसमें मुख्य पीपल, नीम, बरगद, अशोक, तुलसी, आदि। सभी जीवों के लिए पौधों और वनों का महत्व सर्वोपरि है।
पेड़ लगाये, पेड़ बचायें,
पौधे लगाये, शुद्ध वायु पायें, जीवन सुखद बनायें।
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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