Skip to main content

सोलह संस्कार (भगत सर्जन)

विषय ~  संस्कार (सोलह)
विधा ~ दोहा  दुमदार (ढाई घर)
☘☘☘☘☘

१.
संस्कार   पहचान  है, कल से अब तक जान |
विश्व फलक  पर शोभते, भारत की बन शान ;
बचा लें फिर से इनको, मानते सब है जिनको ||

२.
संस्कार   सोलह   रहे, जीवन  के  आधार |
आज लगे सब भूलने, हमको ही धिक्कार ;
चलो सबको ही जाने, नाम से  ही पहचाने ||

३.
संस्कार    पहला    सुनो,  कहते     गर्भाधान |
जग में  जीवन  का  यही, मात-तात अवदान ;
इसी से तुम और हम हैं, जीव चेतन हरदम हैं ||

४.
संस्कार   दूसर   रहा, पुँसवन  इसका   नाम | (पुंसवन)
गर्भ प्रकट करता यही, ईश   अंश   भू   धाम ;
गर्भ रक्षण यह करता, यज्ञ पावन जग भरता ||

५.
संस्कार अब   तीसरा, ख्यात  रहा सीमन्त|
जूड़ा  जच्चा  के  बने, संकट  का हो अन्त ;
पितर पूजन भी करते, यज्ञ संकट सब हरते ||

६.
संस्कार.  चौथा  सुनो, जातकर्म    है     नाम |
नाभी को  पावन  करे, जिह्वा   पर   हो  राम ;
ओम अंकन हो रसना, बढ़े गुण काया बसना ||

७.
संस्कार      पाँचव     रहा, नामकरण       आधार |
जन्म-दिवस  दस   बारवें, विप्र   गुरुहि    आभार ;
ध्यान घड़ा-पल का रखते, नाम प्रिय बालक धरते ||

८.
संस्कार   छठवाँ     सुनो, पर्यावरण   विचार |
नाम निष्क्रमण जान लो, सब ही लेत निहार;
गेह बाहर शिशु आता, जगत का दर्शन पाता ||

९.
संस्कार   साँतव  रहा, छठे  मास  यह  आय |
अन्नप्राश कहते इसे, अन्न मुखिअ शिशु जाय ;
सभी कुछ बालक खाये, पुष्ट तन  होता जाये ||

१०.
संस्कार   आँठव  सुनो, मुण्डन   कहते  लोग |
कहते   चूड़ाकर्म   हैं, छेदन  -  कच   संजोग ;
सभी श्रेयस शिशु पाता, आयु का दीरघ धाता ||

११.
संस्कार    नौवाँ    रहा, कर्णवेध     है    नाम |
देह  आँजते  हैं  सभी, जाकर  तीरथ.   धाम ;
कान का छेदन करते, रोग समझो जल भरते ||

१२.
संस्कार   दसवाँ   सुनो, विद्या    का   आरंभ |
सीखे  आखर   ज्ञान  को, बोध   हुये   प्रारंभ ;
गेह गुरु बालक जाता, शब्द की महिमा पाता ||

१३.
संस्कार   ग्यारह  रहा, द्विज बालक बन पाय |
कहते  इसको  उपनयन, पावनता  आ  जाय ;
नियम बालक अब जाने, कर्म अपने पहचाने ||

१४.
संस्कार     बारह     सुनो, कहते     वेदारंभ |
चारि   वेद   शिक्षा   गहे, मेटे   भीतर   दंभ ;
वेद को बालक पढ़ता, मर्म को मन में गढ़ता ||

१५.
संस्कार    तेरह    रहा, कहते    हैं    केशान्त |
क्षौर. - कर्म   पहला  बने, ऐसा   कहते  कंत ;
बाल अब यौवन पाये, ओज मुखड़े पर आये ||

१६.
संस्कार    चौदह   सुनो, शिक्षा   पूरण पाय |
गुरु को दे सन्मान बटु, लौट गेह निज आय ;
समावर्तन  यह   गाये, गेह में  खुशियाँ आये ||

१७.
संस्कार  पंन्द्रह रहा, जग विवाह कहलाय|
वंश बेल  वर्धक  यहीं, उत्तमता  यह  पाय;
मोक्ष को मन में लाते, तीनि पुरुषारथ पाते||

१८.
संस्कार  सोलह  सुनो, अंतिम यह कहलाय|
अन्त्य इष्टि कहलात है, ईश शरण यह दाय;  
दाह  करते  हैं  काया, छूट जाती सब माया ||

१९.
ये  सब  थे  पावन  परम, संस्कार शुभ नाम |
कभी हुआ करके सभी, आज रहे  बहु वाम ;
छोड़ दी जड़ ही भाई, कहाँ मिलती तरुणाई ||

२०.
ये सब  सोलह  ही  प्रदे, संस्कार शुभ ज्ञान |
इनसे  ही  उन्नत  बने, मानव  वत  पवमान ;
चलो फिर से अब पाये, मिटा गौरव लौटाये ||

२१.
भूल  मुदित  मन  में  रहे, पाते  हैं धिक्कार |
भगत परिश्रम जानकर, जागो तो यक बार ;
मान रखना  जी  सारे, बैठकर भगत निहारे ||

🍀🍀🍀🌸🌸🌸🍀🍀🍀
© भगत
(सोलह संस्कार सूत्र ~ गर्भपुंस सीमन्तजात, नामनिस् अन्नचूक विद्याउपवेदकेश, समाविअंत्येष्टि)

🙏🙏🙏 पढ़े-गुने और जीवन में गहें | 😊अकिंचन का श्रम सार्थक करें |

Comments

  1. श्रेष्ठ वैयाकरण एवं वरिष्ठ साहित्यकार आ• भगत सहिष्णु जी द्वारा रचित सोलह संस्कार पर दोहे बेहद ज्ञानप्रद एवं अनुकरणीय हैं एवं हमारे जीवन को संस्कार व संयम से बाँधने की सीख देतें हैं।
    डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल की ओर से ऐसे शानदार सर्जन व सर्जनकार को हृदय तल से बधाई एवं शुभकामनाये।।

    ReplyDelete

Post a Comment

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य