विषय ~ संस्कार (सोलह)
विधा ~ दोहा दुमदार (ढाई घर)
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१.
संस्कार पहचान है, कल से अब तक जान |
विश्व फलक पर शोभते, भारत की बन शान ;
बचा लें फिर से इनको, मानते सब है जिनको ||
२.
संस्कार सोलह रहे, जीवन के आधार |
आज लगे सब भूलने, हमको ही धिक्कार ;
चलो सबको ही जाने, नाम से ही पहचाने ||
३.
संस्कार पहला सुनो, कहते गर्भाधान |
जग में जीवन का यही, मात-तात अवदान ;
इसी से तुम और हम हैं, जीव चेतन हरदम हैं ||
४.
संस्कार दूसर रहा, पुँसवन इसका नाम | (पुंसवन)
गर्भ प्रकट करता यही, ईश अंश भू धाम ;
गर्भ रक्षण यह करता, यज्ञ पावन जग भरता ||
५.
संस्कार अब तीसरा, ख्यात रहा सीमन्त|
जूड़ा जच्चा के बने, संकट का हो अन्त ;
पितर पूजन भी करते, यज्ञ संकट सब हरते ||
६.
संस्कार. चौथा सुनो, जातकर्म है नाम |
नाभी को पावन करे, जिह्वा पर हो राम ;
ओम अंकन हो रसना, बढ़े गुण काया बसना ||
७.
संस्कार पाँचव रहा, नामकरण आधार |
जन्म-दिवस दस बारवें, विप्र गुरुहि आभार ;
ध्यान घड़ा-पल का रखते, नाम प्रिय बालक धरते ||
८.
संस्कार छठवाँ सुनो, पर्यावरण विचार |
नाम निष्क्रमण जान लो, सब ही लेत निहार;
गेह बाहर शिशु आता, जगत का दर्शन पाता ||
९.
संस्कार साँतव रहा, छठे मास यह आय |
अन्नप्राश कहते इसे, अन्न मुखिअ शिशु जाय ;
सभी कुछ बालक खाये, पुष्ट तन होता जाये ||
१०.
संस्कार आँठव सुनो, मुण्डन कहते लोग |
कहते चूड़ाकर्म हैं, छेदन - कच संजोग ;
सभी श्रेयस शिशु पाता, आयु का दीरघ धाता ||
११.
संस्कार नौवाँ रहा, कर्णवेध है नाम |
देह आँजते हैं सभी, जाकर तीरथ. धाम ;
कान का छेदन करते, रोग समझो जल भरते ||
१२.
संस्कार दसवाँ सुनो, विद्या का आरंभ |
सीखे आखर ज्ञान को, बोध हुये प्रारंभ ;
गेह गुरु बालक जाता, शब्द की महिमा पाता ||
१३.
संस्कार ग्यारह रहा, द्विज बालक बन पाय |
कहते इसको उपनयन, पावनता आ जाय ;
नियम बालक अब जाने, कर्म अपने पहचाने ||
१४.
संस्कार बारह सुनो, कहते वेदारंभ |
चारि वेद शिक्षा गहे, मेटे भीतर दंभ ;
वेद को बालक पढ़ता, मर्म को मन में गढ़ता ||
१५.
संस्कार तेरह रहा, कहते हैं केशान्त |
क्षौर. - कर्म पहला बने, ऐसा कहते कंत ;
बाल अब यौवन पाये, ओज मुखड़े पर आये ||
१६.
संस्कार चौदह सुनो, शिक्षा पूरण पाय |
गुरु को दे सन्मान बटु, लौट गेह निज आय ;
समावर्तन यह गाये, गेह में खुशियाँ आये ||
१७.
संस्कार पंन्द्रह रहा, जग विवाह कहलाय|
वंश बेल वर्धक यहीं, उत्तमता यह पाय;
मोक्ष को मन में लाते, तीनि पुरुषारथ पाते||
१८.
संस्कार सोलह सुनो, अंतिम यह कहलाय|
अन्त्य इष्टि कहलात है, ईश शरण यह दाय;
दाह करते हैं काया, छूट जाती सब माया ||
१९.
ये सब थे पावन परम, संस्कार शुभ नाम |
कभी हुआ करके सभी, आज रहे बहु वाम ;
छोड़ दी जड़ ही भाई, कहाँ मिलती तरुणाई ||
२०.
ये सब सोलह ही प्रदे, संस्कार शुभ ज्ञान |
इनसे ही उन्नत बने, मानव वत पवमान ;
चलो फिर से अब पाये, मिटा गौरव लौटाये ||
२१.
भूल मुदित मन में रहे, पाते हैं धिक्कार |
भगत परिश्रम जानकर, जागो तो यक बार ;
मान रखना जी सारे, बैठकर भगत निहारे ||
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© भगत
(सोलह संस्कार सूत्र ~ गर्भपुंस सीमन्तजात, नामनिस् अन्नचूक विद्याउपवेदकेश, समाविअंत्येष्टि)
🙏🙏🙏 पढ़े-गुने और जीवन में गहें | 😊अकिंचन का श्रम सार्थक करें |
श्रेष्ठ वैयाकरण एवं वरिष्ठ साहित्यकार आ• भगत सहिष्णु जी द्वारा रचित सोलह संस्कार पर दोहे बेहद ज्ञानप्रद एवं अनुकरणीय हैं एवं हमारे जीवन को संस्कार व संयम से बाँधने की सीख देतें हैं।
ReplyDeleteडाॅ• राहुल शुक्ल साहिल की ओर से ऐसे शानदार सर्जन व सर्जनकार को हृदय तल से बधाई एवं शुभकामनाये।।