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Showing posts from August, 2017

कर्तव्य

       कर्तव्य बड़े बुजुर्गों ने सिखाया, गुरुओं ने भी याद कराया, कठिन डगर पर भटक न जाना अपने कर्तव्यों को निभाना |  सदा प्रज्जवलित कर्मों से, आदर्शों  के मर्मो  से, सत्य सनातन धर्मो से, अपने कर्तव्यों को निभाना |  सदा प्रेम से  जीते जाना, सुख- दुख तो है आना जाना, आशा का ही  दीप जलाना, अपने कर्तव्यों को निभाना | ©  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

तंत्री छन्द (सोम जी )

♢  तंत्री छंद ♢ विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। हे मनमोहन,हे मनभावन,                    जगपालक,राधा के प्यारे। हे वंशीधर, मोरमुकुटधर,                     यशुदासुत, हे  नंददुलारे।। वेणु  बजैया, धेनु  चरैया,                     दीनबंधु,जग  पालनहारे। हे मधुसूदन,कृपा करो जू,                    सोम पड़ा,है द्वार तिहारे।।                            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

तंत्री छन्द (सोम जी )

♢  तंत्री छंद ♢ विधान~ प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत। हे मनमोहन,हे मनभावन,                    जगपालक,राधा के प्यारे। हे वंशीधर, मोरमुकुटधर,                     यशुदासुत, हे  नंददुलारे।। वेणु  बजैया, धेनु  चरैया,                     दीनबंधु,जग  पालनहारे। हे मधुसूदन,कृपा करो जू,                    सोम पड़ा,है द्वार तिहारे।।                            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

बच्चे

"तुम दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे हो" दिल की धड़कन में तुम हो बसे, तुम हो दुनिया  में सबसे अच्छे, तुम दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे हो, तुम हो दुनिया में सबसे अच्छे | ••••••• 2 अच्छे बच्चे तो करते है रौशन, माँ  बाप  का  नाम  भी, जग में करते है उजियारा, जनसेवा  का  काम  भी | तुम खाते हो तो हम खाते हैं, तुम सोओ तो हम भी सोएँ | तुम हँसते हो  तो हम हँसते हैं, तुम रोओ तो हम भी रोएँ | तुम दुनिया के सबसे अच्छे बच्चे हो, तुम हो दुनिया में सबसे अच्छे | ••••••• 2 © डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

(1)(2)(3) एकार्थी/अनेकार्थी/पर्यायवाची

अर्थ के आधार पर शब्दों को नौ प्रकारों में बाँटा गया है:-  १. एकार्थी शब्द २. अनेकार्थी शब्द ३. पर्यायवाची शब्द ४. विलोम शब्द ५. समोच्चारित भिन्नार्थ शब्द ६. वाक्यांशबोधक शब्द ७. सामानार्थ प्रतीत होने वाले भिन्नार्थ शब्द ८. समूहवाची शब्द ९. आभासी शब्द अर्थ के आधार पर शब्द नौ प्रकार के हैं:- [1]  एकार्थी शब्द~                                    जो शब्द सामान्यत: सर्वत्र एक ही अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, एकार्थी हैं | जैसे ~ दिन, रात, धूप, लड़की, बालक, पहाड़, नदी...इत्यादि | [2]  अनेकार्थी शब्द~   अर्थ के आधार पर दूसरा प्रकार है ~  अनेकार्थी शब्द जो शब्द एक से अधिक अर्थ में प्रयुक्त होते हैं, अनेकार्थी हैं | जैसे ~ अमृत, अलि, कर्ण, कक्षा, हरि, अज, सारंग, सूत, नयन ...इत्यादि | जैसे-  हरि हरि से हरि रूप माँगा और हरि होकर हरि के वश में हुए| १. हरि~ विष्णु २. हरि~ सुन्दर रूप\विष्णु रूप ३. हरि~ वानर ४. हरि~भ्रम [3] पर्यायवाची शब्द ~             एक ही अर्थ में प्रयुक्त होने वाले शब्द , जो बनावट में भले ही अलग हों ; परस्पर पर्याय कहलाते हैं |  जैसे ~ आग ~ अनल, पावक, द

(4) विलोम शब्द

[4] विलोम शब्द ~ परिभाषा किसी शब्द के अर्थ के विपरित अर्थ का बोध कराने वाले शब्द 'विलोम शब्द कहलाते हैं| विलोम शब्द को ही ~ विपरितार्थक शब्द, विलोमार्थी शब्द, वैकल्पिक शब्द, विपर्यय शब्द, विरोधक शब्द  के नाम से जाना जाता है | उदाहरण ~ अमृत ~ विष अँधेरा ~ उजाला अर्थ ~ अनर्थ उग्र ~ शांत आदि ~ अंत प्रारम्भ~ समापन पाश्चात्य ~ पार्वात्य     [5]  समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द को ही शब्द-युग्म कहा जाता है | सामान्यत:  शब्द-युग्म में दो ऐसे शब्द होते हैं ; जो उच्चारण में समान प्रतीत होते है,  परन्तु उनमें  वर्तनी  की भिन्नता रहती है | वर्तनी भिन्न होने से दोनों शब्दों के अर्थ भी भिन्न ही होते हैं | असावधानी और शब्द-युग्म से परिचित न होने से  हम भी लेखन में गलती कर बैठते हैं, अत: इन शब्दों का गहनाभ्यास होना ही चाहिए | कभी-कभी  दो से अधिक समोच्चारित शब्द भी युग्म बनाते हैं जैसे~ १. मा, मां, मॉ, माँ २. गुरु,=बड़ा, गुरू=ज्ञान देने वाला , गुरूर =अहंकार , गुरूर्\गरूर् ३. परिणत, परिणति =कारण, परिणीत=प्रतिफल\परिणीता अन्य उदाहरण ~ मा ~मुझे मां ~ भीतर

(5) सम्मोचारित भिन्नार्थक शब्द

[5]  समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द समोच्चारित भिन्नार्थक शब्द को ही शब्द-युग्म कहा जाता है | सामान्यत:  शब्द-युग्म में दो ऐसे शब्द होते हैं ; जो उच्चारण में समान प्रतीत होते है,  परन्तु उनमें  वर्तनी  की भिन्नता रहती है | वर्तनी भिन्न होने से दोनों शब्दों के अर्थ भी भिन्न ही होते हैं | असावधानी और शब्द-युग्म से परिचित न होने से  हम भी लेखन में गलती कर बैठते हैं, अत: इन शब्दों का गहनाभ्यास होना ही चाहिए | कभी-कभी  दो से अधिक समोच्चारित शब्द भी युग्म बनाते हैं  :- जैसे~ १. मा, मां, मॉ, माँ २. गुरु,=बड़ा, गुरू=ज्ञान देने वाला , गुरूर =अहंकार , गुरूर्\गरूर् ३. परिणत, परिणति =कारण, परिणीत=प्रतिफल\परिणीता अन्य उदाहरण ~ मा ~मुझे मां ~ भीतर \अन्दर , मुझे (माम् से) मॉ ~ गाय-भैंस का स्वर (विशेषत: गाय का ) माँ ~ जन्म देने वाली माता/ जननी खर ... गदहा खार ... शूल/ तिनका/ ईर्ष्या कथा ~ गल्प/कहानी कंथा ~ बिस्तर/ मोटा चादर परिणत ~ बदलना परिणति ~ अंजाम/निष्कर्ष परिणीत ~ विवाहित दिन ~ दिवस दीन ~ निरीह, बेबस, मज़बूर, लाचार...को कहा जाता है | न कि गरीब, निर्धन, दरिद्र..को हालांकि प्र

(6) वाक्यांशबोधक शब्द/ स्थानापन्न-शब्द

अर्थ के आधार पर शब्द के प्रकार में छठवाँ, 🙏🏻👇 [6]  वाक्यांशबोधक /" स्थानापन्न-शब्द "~ परिभाषा~ किसी वाक्यांश या पूर्ण-वाक्य के स्थान पर उसी अर्थ को पूर्णत: स्पष्ट करने वाले शब्द "स्थानापन्न-शब्द कहलाते हैं | स्थानापन्न-शब्द को ही ~ वाचक-शब्द, द्योतक-शब्द, वाक्यांशबोधक-शब्द, अनेक शब्दों के लिये एक शब्द, शब्द समूह के लिये एक शब्द, पूरक-शब्द और शलाका-शब्द के नाम से भी जाना जाता है| उदाहरण ~~ १. जिसकी चोटी कमर से नीचे तक लम्बी हो = करकटिकेशलतिका २. वह कपड़े का टुकड़ा या वस्त्र-खंड, जिसे हम हाथ-मुहँ साफ करने के लिये प्रयोग करते हैं = करकपोलवस्त्रखण्ड ३. वह स्त्री या कन्या, जो बहुत अधिक दुबली-पतली हो = तन्वंगी ४. जो भोजन की निवृत्ति को नहीं समझता हो\जो भोजन से तृप्त नहीं होता हो = वृकोदर ५. एक ही पैर वाला\जो लंगड़ा हो = एकपादपरमेश्वर अन्य उदाहरण ~ वाक्यांशबोधक  या स्थानापन्न शब्द उदाहरण~ 1. जिसका जन्म नहीं होता ~ अजन्मा 2. पुस्तकों की समीक्षा करने वाला ~ समीक्षक, आलोचक 3. जिसे गिना न जा सके ~ अगणित 4. जो कुछ भी नहीं जानता हो ~ अज्ञ 5. जो बहुत थोड़ा जानता

(7) समानार्थी भिन्नार्थ शब्द

समानार्थी भिन्नार्थ शब्द ~ परिभाषा ~ जो शब्द हमें अर्थ की दृष्टि से समान से प्रतीत होते हैं, परन्तु उनके अर्थ में पर्याप्त अन्तर होता है ; समभाषित शब्द या समानार्थ प्रतीयक भिन्नार्थी शब्द कहलाते हैं | जैसे ~ 1) पूजन - अर्चन पूजन ~ विधिवत सामग्री व मंत्रोच्चार से ईश्वराधन अर्चन ~ बिना किसी उपागम के मानसिक ईश्वराधन 2) अभय - निर्भय उभय =  दोनों 3) अस्त - आँसू अस्त्र =  हथियार 4) प्रार्थना - निवेदन प्रार्थना ~ अप्रकट या परोक्ष के समक्ष मनोभाव व्यक्त करना (इच्छा ऱखना, जो कि सामान्यत: ईश्वर, इष्ट या अपने कुल देव-देवी व पितृ देवों के समक्ष है|) निवेदन ~ प्रकट या प्रत्यक्ष के समक्ष मनोभाव या अपनी बात रखना | 5) साधना ~ किसी लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास या श्रम आराधना ~ पूर्व पद्धति से लक्ष्य को प्राप्त करने का प्रयास 6) अबला ~ स्त्रियाँ (सभी) {निज-बल का स्मरण न रखने वाला) निबला ~ कमजोर स्त्रियाँ 7) प्रेम ~ ईश्वरीय स्नेह ~ लौकिक संबंधों में 8) साधारण ~ जो वस्तु या व्यक्ति एक ही आधार पर आश्रित हो \ जिसमें कोई विशिष्ट गुण न हो | सामान्य ~   जो बात दो या दो से अ

(9) आभासी शब्द

अर्थ के आधार शब्दों के  प्रकार में  आखिरी प्रकार है ~ आभासी  शब्द ~ जो शब्द हमें किसी स्थिति , वस्तु, प्राणी या पदार्थ का आभास कराते हैं | इनमें भाववाचक संज्ञा-शब्द व ध्वन्यात्मक शब्द, दोनों आते हैं | जैसे ~ आहा (आनंद) आह (पीड़ा) वाह्ह् (प्रशंसा) कल-कल (जल का प्रवाह) झमाझम (वर्षा ) सफेदी सर्रसराहट ओह भौंकना ~ हालांकि *भौंकना* भी क्रिया है, परन्तु इसे आभासी भी माना जायेगा क्योंकि यह पशु विशेष की आवाज़ का प्रतीक है, जिसका हम अनुकरण नहीं कर सकते | इसीलिये हमने ऐसे शब्द बना लिए, ताकि अनुभव व पहचान हो सके | जैसे~ रेंकना ~ गदहा चिंघाड़ ~ हाथी म्याऊँ ~ बिल्ली          🙏 जय जय 🙏

(8) समूहवाची शब्द

समूहवाची शब्द ~ समूवाची शब्दों से तात्पर्य है~ ऐसे शब्द जो किसी विशिष्ठ संख्या या व्यक्ति, वस्तु आदि के बोधक होते हैं, समूहवाची हैं | 👉 जैसे ~ जोड़ा =दो का समूह दशक = दस का समूह शतक ~ सौ का समूह तीन गुण ~ सत, रज, तम 👉 द्विगु समास के सभी उदाहरण  समूहवाची  होते हैं| 👉 चतुरानन, त्रिनेत्र, अष्टावक्र, नवलखा, सप्तपदी... 👉 दशानन, लम्बोदर, पँचगुणा, चौराहा, पंचवटी, पंचतत्व आदि|

गणेश चतुर्थी विशेष (भगत जी)

26/08/ 2017 आज गणेश चतुर्थी है  | हमारे सबसे विचित्र पौराणिक देवता गणेश जी का जन्मदिन | आज के दिन महाराष्ट्र सहित देश के कई भागों में भगवान गणेश जी की मूर्तियां स्थापित की जाती है और नौ दिनों की पूजा-अर्चना के बाद दसवे दिन (अनन्त चतुर्दशी) समारोहपूर्वक उनका विसर्जन किया जाता है । गणेश जी वस्तुतः व्यक्ति नहीं, प्रकृति की शक्तियों के रूपक हैं । यह रूपक देखने में जितना अजीब लगता हो, पर उसमें जीवन के कई गहरे अर्थ छुपे हैं | हमारे पूर्वजों ने उनके रूप में प्रकृति और मनुष्य के बीच संपूर्ण सामंजस्य का एक आदर्श प्रतीक गढ़ा है । गणेश जी का मस्तक हाथी का है । चूहे उनके वाहन हैं। बैल नंदी उनका मित्र और अभिभावक है। मोर और साँप उनके परिवार के सदस्य | पर्वत उनका आवास है । वन उनका क्रीड़ा-स्थल । आकाश उनकी छत । उनके चार हाथों में जल का प्रतीक शंख, सौंदर्य का प्रतीक कमल, संगीत का प्रतीक वीणा और शक्ति का प्रतीक परशु हैं । रिद्धि और सिद्धि उनकी दो पत्नियाँ हैं, जो देह में हवा के आने और जाने अर्थात प्राण और अपान की प्रतीक हैं ; जिनके बगैर कोई जीवन संभव नहीं | सरलता और भोलापन गणेश जी का स्वभाव है । गणे

बाबा (साहिल)

👺☠ बाबा 👺☠ आ जा बाबा गड़बड़ बाबा, रोज बुलाते  गड़बड़ बाबा, चार नारियल काला कपड़ा, सब दुख  दूर करेगा बाबा | बाबा की है यही कहानी, पढ़ के मन्तर बने हैं ज्ञानी,  झूठ और पाखण्ड पुजारी, बाबा बेचैं राख  व पानी| काम लोभ  माया में नाचै, इनके गुण को जनता जाँचै, बाबा  आडम्बर दिखलाते, झूठे  मंत्र पाठ  सब बाचैं| गड़बड़ बाबा रोज बुलाते, मेवा फल व मिठाई खाते, पहले अपना करे उद्धार, फिर हमको भी सिखलाते| आ जा बाबा गड़बड़ बाबा, रोज बुलाते  गड़बड़ बाबा, दूर भगाओ इनको जल्दी, ये समाज के साँप है बाबा|| © डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

महामोदकारी छन्द

[28/08 1:24 PM] भगत गुरु: महामोदकारी छन्द (यगण × ६, १८ वर्ण, ४ चरण, दो-दो चरण समतुकान्त) सही है  नहीं  है  यहाँ  आज  कोई  चले  धर्म पे जो |   कहे क्या करे क्या  सभी  ही  समाने रहे कर्म पे जो ||  कहाँ आज खोजें कि ऐसे मिले जी सही ही कहे वो | करें  कर्म  पूते  रहे   धर्म   छूते  गिरे   को   उठा वो ||  ©भगत        ♡महामोदकारी छंद♡ विधान~ [ यगण यगण यगण यगण यगण यगण] ( 122  122  122 122  122  122) 18वर्ण,4चरण,दो-दो चरण समतुकांत] भजो श्याम राधा सहारा मिलेगा निभाना  कर्म है| करो दीन सेवा किनारा मिले जी यही तो धर्म है|| चलो संग मेरे बनाएं कहानी भगाओ बुराई| सदा प्रेम से रोक लो भाव बैरी बढ़ाओ मिताई||     © डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल ◆ महामोदकारी छंद◆ विधान~ [ यगण यगण यगण यगण यगण यगण] ( 122  122  122 122  122  122) 18वर्ण,4चरण,दो-दो चरण समतुकांत] चलो  राह ऐसी न काँटा                   लगे  जी  यही बात अच्छी। न कीजे बुराई किसी की                 किसी से सुनो सीख सच्ची।। करो  खूब  सेवा  दुखी                   दीन जो हो यही  धर्म भाई। भजो 'सोम" गोविन्द  को          

बाबा (आस जी)

       बाबा राम नाम जो उद्धारक है उसका बेड़ा गर्क हुआ। न्यायालय में एक एक कर बाबाओं पर तर्क हुआ।। बापू आशा राम कभी तो रामपाल बन कर आये। डेरा सौदा भी रहीम बन राम नाम लेकर छाये।। तारक नाम राम कलियुग का तुलसी ने बतलाया है। बाला जी ने इसी नाम से सबको पार  लगाया है ।  राम अजीवन ही सीता का साथ कभी भी न पाये। राम भक्त नारी को लूटे कभी राम को न भाये।।                                               नारी को माँ बहना बेटी बाबा माने मान करे। पवन पुत्र हनुमान सदृश दुनिया उनका सम्मान करे।। धन वैभव का चक्कर त्यागे सच्चा संत कहायेगा। लोभ मोह माया में फँसकर जीवन व्यर्थ गँवायेगा।। बुरा कर्म निर्मल राधा का नाम जगत में खोता है। करते जो सद्कर्म उन्हीं का नाम जगत में होता है।। ÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷÷ कौशल कुमार पाण्डेय "आस" ==================== 28  अगस्त 2017/रचना क्र.5976

नित्य नमन भगत/निर्मल

क🙏🍀🕉 नित्य नमन🕉🍀🙏 🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼 हे हरि हरिजन होहुँ हम, हरमय हरि हरि हार | हरदम हारक हरिअ हरे, हम हति हठन हकार || 🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿 आज रौ दुस्साहस~ बोळा काड्या कांकरा, बोळा  रोप्या  धाप| रोळा में रळपट हुया, आळस कारण आप|| 🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿 जनम लिया कुछ करना ही है, बालाजी | घड़ा  कर्म  का   भरना  ही  है, बालाजी | तो कारे  हम  कर्म  यहाँ पर हितकर ही, वैसे  इक   दिन   मरना  ही  है, बालाजी || 🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸 © भगत             सुप्रभात ◆रास छंद [सम मात्रिक]◆ विधान–[22 मात्रा,8,8,6 यति,              अंत में 112, चार चरण,               दो-दो चरण तुकांत]                                                 नाथ   कृपाकर,सुनो दयावर , पीर बड़ी| नित आस लगी,उर प्यास बढ़ी,अश्रु झड़ी|| भूल गया पथ,अटक गया रथ, पार  करौ| आप   सहारे,  हो   रखवारे, हाथ   धरौ|| जितेन्द्र चौहान "दिव्य"         ओ३म् नमस्ते ओ३म् विनय अप त्यं वृजिनं. रिपुं स्तेनमग्ने दुराध्यम्। दविष्ठमस्य सत्पते कृधी सुगम्।। सामवेद २/९ पद्यानुवाद ~ पथ हों सुगम हमारे भगवन। जो व्यवधान बीच में आ

श्री गणेश अभिनन्दन

रामकृष्ण सहस्रबुद्धे: रामकृष्ण विनायक सहस्रबुद्धे आज से श्री गणेशोत्सव प्रारम्भ हो रहा है।भारतीय संस्कृति श्री से ही श्री गणेश करती है। श्री गणेश को आदि देव, प्रथम पूज्य माना जाता है। वे सभी दुख हरकर सभी सुख देने वाले देव हैं। इनके अनेक नाम हैं और हर नाम की अपनी कहानी और विशेषता है  मैं आज श्री से इतनी ही विनती करता हूं कि वे हम सबको शक्ति दें,भक्ति दें और अपने चरणों में स्थान दें ताकि राष्ट्र हित में, समाज हित में कार्य कर सकें। सभी सम्मानित रचनाकारों को सपरिवार हार्दिक शुभ कामना अभय कुमार सिंह: गणेश वन्दना हे गणराया, हे मंगलमूर्ती! हे विध्नहर्ता, हे गणपति,! वंदना करू मैं तेरी  देना मुझको सन्मति, कही अधर्म न हो मुझसे, हमेशा करू सत्कर्म की उन्नति। हे गौरी पुत्र, हे गणपति। हे देवव्रत, हे देवेन्द्राशिक। हे सिद्धिप्रिय, हे सुरेश्वरम: । विनती सुनो मेरी करो रहम बहुत भटका हूँ, अंधकार के गलियारों में, करो मेरे मन को चंचल, चितवन। हे सुरेश्वरम, है गजानन। हे एकदन्त:, हे लम्बोदर:। झूठ, अहंकार बहुतरे के मन मे, दो सबको सदबुद्धि करो कल्याण। धर्म की वृद्धि हो, हो अधर्म का नाश,