उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द चार प्रकार के हैं ~
१. तत्सम
२. तद्भव
३. देशज
४. विदेशज
[1] तत्सम-शब्द
परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है |
यानि कि हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत
तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए |
जैसे ~
पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि|
👇पहचान ~
(1) नियम ~ एक
जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है |
वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~
द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि |
जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि |
(2) नियम दो ~👇
जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं |
जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्यक्ति, च्युत ....इत्यादि |
भले ही दो अर्धाक्षर हों, पर यदि अलग-अलग वर्ण से बने हैं या अलग-अलग स्थान पर हैं, तो भी तत्सम ही होगा |
जैसे~ व्यस्त, वात्स्यायन, अभ्यस्त, इत्यादि|
(3) तत्सम-शब्द की तीसरी पहचान ~
अनुस्वारयुक्त शब्द तत्सम होते हैं |
जैसे~ कंठ, अंक, अंग, पंकज, मयंक, संसार, संदीप, व्यंजन, रंज, चंदन, वंदन, मंद, सुगंध
पंत, संत, रंग, गंग, तरंग, भंग, जंग, दंग, अपंग, संग, चंग, रंक, पंक ..इत्यादि |
(4) चौथी पहचान ~
जिन शब्दों में "स्वर, व्यंजन या विसर्ग संधि" हो, वे भी सामान्यत: तत्सम होते हैं |
जैसे~ कज्जल, पन्नग, गणेश, वातायन, काकोदर, वनौषध, अम्मय, प्रज्वलित, वैष्णव...इत्यादि |
(5) और यह भी तत्सम ही होंगे~
विधान-मुक्त (पहचान से मुक्त) ~ उक्त चारों पहचान से मुक्त भी तत्सम-शब्द हो सकते हैं, इन्हें "स्वविवेक" से ही पहचाना जाता है |
जैसे~ पवन, सलिल, नयन, पीत, हरि, हरित, सरल, सरस....इत्यादि |
🙏 जय-जय🙏
संग का तत्भव शब्द
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