तद्भव शब्द ~
किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द; जो मूल भाषा से प्रयोगित-भाषा में आते-आते अपनी बनावट बदल लेते हैं, परन्तु अर्थ पहले वाला ही बना रहता है |
अर्थात् संस्कृत के वे शब्द, जो थोड़े परिवर्तन के साथ उसी अर्थ में प्रयोग होते हैं, तद्भव है ; साथ ही ऐसे शब्द, जिन्हें प्रयोगित भाषा ने स्वयं गढ़ा है, तद्भव कहलाते हैं |
जैसे~ पीला, नीला, पगड़ी, डण्डा, कटोरी...इत्यादि (तत्सम से तद्भव हैं ये)
और~ कंकड़, पनघट, लठैत, चचेरा, सँपोला, नवलखा...इत्यादि (ये हिन्दी ने स्वयं गढ़े हैं |)
तद्भव शब्द की पहचान~
१. संयु्क्ताक्षर २. अर्धाक्षर ३. अनुस्वार व ४. सामान्य संधियों वाले शब्द "तद्भव" नहीं होते| (ये तो तत्सम ही होते हैं |)
२. चन्द्रानुस्वार\चन्द्रबिन्दु वाले शब्द "तद्भव होते हैं ~
जैसे ~ आँख, चाँद, आँगन, पाँच, माँ, आँजना, माँजना, जाँच...इत्यादि |
३. द्वित्व वर्ण वाले शब्द सामान्यत: तद्भव होते हैं, जिनमें साधारणत: संधि नहीं होती हो |
द्वित्व ~ एकसही वर्ण पहले आधा, फिर पूरा आने पर "दित्व" बनता है |
जैसे~ चक्की, पक्का, धक्का, चढ्ढा, मक्का, धक्का, धब्बा, छक्का, कच्चा, बच्चा,गन्ना, खट्टा, पट्टा, सच्चा पट्टा....इत्यादि|
🙏जय-जय🙏
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