दोहे
रंगकर्म सुन्दर रचै,साहित्य है विचार|
अब महेश जी कह दिए,संवेदन जग सार||
सकल प्रेम की भावना,जीवन का है सार|
सरल सुखद ही लय मिलै,चमके सुर स्वर हार||
आदर अरु सम्मान है, गुनी कलमवर आप|
हो विवेक मन साथ तो,कट जाए जग ताप||
सदा कुम्भ में आइए, कट जाएंगे पाप|
संगम जल सुख धार है, कर लो शिव का जाप||
मन वाँछित फल भी मिले, गंगा तारनहार|
माघ मास मेला सजै, महाकुंभ इस बार||
सुख- दुख सब सहता गया, ना समझा मझधार|
साहिल बन बैठा रहा,मनुज दिखत जगहार||
प्रेम प्यार के गीत से, बने सुरों का हार|
माँ गंगा ही तारती,धरा दनुज का भार||
महाकुंभ दर्शन करो, कट जाए सब पाप|
गंगा तारनहार है,कर लो शिव का जाप||
🙏साहिल🙏
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