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सोम छन्द सागर


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  ♤♡त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] ♡♤

विधान~
{4 चरण,प्रति चरण 32 मात्राएँ,
प्रत्येक में 10,8,8,6 मात्राओं पर यति 
प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत, 
प्रथम दो चरणों व अंतिम दो चरणों के
चरणान्त परस्पर समतुकांत तथा
जगण वर्जित,प्रत्येक चरणान्त में गुरु(2),
चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद 
मनोहारी हो जाता है।}
          

हे करुणासागर,सब विधि आगर,
                       नटवर नागर,सुखपुंजा।
हे जगत नियंता,अति सुखवंता,
                       नमत अनंता,पदकंजा।।
श्रीकृष्ण कलाधर,हे मन मधुकर,
                    नटखट मनहर,गिरिधारी।
सो नाथ गुणागर, द्रवहुँ दयावर,
                  "सोम"सुधाकर,सुखकारी।।

                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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◆ रमणीयक छंद◆

विधान~
[ रगण नगण भगण भगण रगण]
( 212 111  211  211  212 )
15वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

आप  संकट  सबै  हरते   रघुनाथ जू।
नित्य ही जगत जापत है गुणगाथ जू।।
नेति  नेति  कहके  सब  देव  मना रहे।
"सोम"नाथ बिगड़े सब काज बना रहे।।

                       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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   ♢पुटभेद छंद♢

शिल्प~
[रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु]
(212  112  112   112  112  1   2)
17 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,2-2 चरण समतुकान्त।

श्री  रमापति जू  मनभावन  के गुण गाइये।
जो मिले  नित कर्म  करे उसमें सुख पाइये।।
कीजिये अभिमान नही अपना मन साधिये।
"सोम"उत्तम काम यही,हरि को अवराधिये।।

                              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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◆रसना छंद◆

विधान~
[ नगण यगण सगण नगण नगण लघु गुरु]
( 111  122  112 111  111   1   2 )
17वर्ण, यति{7-10} वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

नमन सियानाथ, सदा चरण  कमल चहौं।
हृदय करो  बास, प्रभो  बरनत  गुन रहौं।।
प्रभु सुमिरौं नित्य,जहाँ गुजर बसर करौं।
चरणन में "सोम", मनै कबहुँक नहिं डरौं।।

                               ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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◆रथपद छंद◆

विधान~
[  नगण नगण सगण गुरु गुरु]
( 111  111  112   2   2 )
11वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

प्रिय रघुपति परिणीता जू।
चतुर  सब  तरह सीता जू।।
चरण कमल चित धारौं मैं।
अपलक  नयन निहारौं मैं।।

            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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◆ गजपति छंद◆

विधान~
[ नगण  भगण लघु गुरु]
( 111   211   1   2)
8 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

अब  सुधार हिय को।
सुमिरि राम सिय को।।
मन    मनावत   जबै।
सुफल   कारज  सबै।।

      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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  ♧रत्नकरा छंद♧

विधान~
[ मगण सगण सगण]
( 222  112  112 )
9वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत।

आओ   हे   मनभावन जू।
राजौ आ  हिय आँगन जू।।
कान्हा केशव श्याम लला।
प्यारी है  सुखधाम  कला।।

          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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दोहे
            नर दोहे- 15गुरु 18 लघु

अमर तिरंगा देश का, भारत की है शान ।
हँसकर बेटे दे रहे, इसकी खातिर जान ।।

क्षण में जीवन झौंकते, नहीं करें संकोच ।
तन से ऊपर देश है, लेते मन में सोच ।।

अपनी माँ की लाज को, लेते पूत बचाय ।
तीन रंग परिधान का, भले कफन बन जाय।।

              मर्कट दोहा- 17 गुरु 14 लघु

देश नहीं है माँ यही, जीवन का आधार ।
इसकी गोदी में हुआ, हर सपना साकार ।।

वर्ण- वर्ण के फूल हैं, भाँति भाँति के पूत ।
जाति धर्म को भूलकर, देते सभी सुबूत ।।

             मण्डूक दोहा- 18 गुरु 12 लघु

भारत मेरी जान है, भारत मेरी शान ।
प्राणों से प्यारा लगे, है मुझको अभिमान ।।

      करभ दोहा- 16 गुरु 16 लघु

हिन्दू मुस्लिम सिक्ख भी, बौद्ध पादरी जैन ।
हिल मिल रहते प्रेम से,सबके मीठे वैन ।।

       श्येन दोहा- 19गुरु 10 लघु

आज तिरंगा कर रहा, प्राणों का संचार ।
सैनिक मिटते शान पे, जाने सब संसार ।।

             बल दोहा-11गुरु 26 लघु

बलिवेदी पर दे रहे,सैनिक अपनी जान ।
हर पल वह रक्षा करें, तब यह देश महान ।।

          गयंद दोहा- 13गुरु 22 लघु

प्रीति नीर अरु क्षीर सी, मन में रखो सँभाल ।
ताप बढ़े जल जात जलि, संशय शोक निकाल।।

बिजेन्द्र सिंह सरल

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      ♡ रति(3) छंद ♡

विधान~
[  सगण लघु गुरु]
(  112  1  2)
5वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत।

रघुवीर... जू।
मतिधीर  जू।।
करुणा करो।
दुखड़े   हरो।।

     ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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       ♤रतिलेखा छंद♤

विधान~
[ सगण नगण नगण नगण सगण गुरु]
( 112  111  111 111  112   2 )
16वर्ण, यति{11-5} वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

नित मैं सुमिरत  गिरिधर, प्रभु निहारौ।
सुनिये  विनय जु  नटखट,अब उबारौ।।
हरिये भव भय कलु तम, चित सुधारौ।
यह सेवक भटकत अब, कछु बिचारौ।।

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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       ¤  गिरिधारी छंद  ¤

विधान~
[ सगण नगण यगण सगण ]
( 112  111  122  112)
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

कर  कोटि  जतन माया तजिये।
नित श्री यदुपति को ही भजिये।।
जग  में  समरथ  श्री नंद  लला।
सबसे अनुपम  है "सोम" कला।।

                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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    卐 बृहत्य छंद 卐

विधान~
[ यगण यगण यगण]
(122  122  122)
9 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

मुझे  नाथ  दे दो  सहारा।
सदा आपको ही पुकारा।।
दशा दीन की तो निहारो।
कृपाकुंज  मोहे   उबारो।।

            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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मित्रों एक जानकारी याद आ गई

122..धृति छंद

122 122 शंखनादी छंद

122 122 122 बृहत्य छंद

122 122 122 122 भुजंगप्रयात छंद

122 122 122 122 122 122 महामोदकारी छंद

122×8 महाभुजंगप्रयात छंद

122×9 या अधिक...सिंह विक्रीडित छंद
                जय जय

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     □  रत्नकरा छंद  □

विधान~
[ मगण सगण सगण]
( 222  112  112 )
9वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत।

आओ   हे   मनभावन जू।
राजौ आ  हिय आँगन जू।।
कान्हा केशव श्याम लला।
प्यारी है  सुखधाम  कला।।

          ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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छंद :  दुर्मिल सवैया
विधान : दुर्मिल सवैया में 24 वर्ण होते हैं, जो आठ सगणों (।।ऽ) से बनते हैं और 12, 12 वर्णों पर यति होती है, अन्त सम तुकान्त ललितान्त्यानुप्रास होता है।

उदाहरण :-

अति शोभित राजत राजलली, सुकुमारि सिया जयमाल लिये।
रघुवंश विभूषण राम लखें, सब जान गये हिय हाल सिये।।
शिव सायक भंग कियो क्षण में, सब भूपन के मद टाल दिये।
मिथिला नगरी सब झूम उठी, सबके हिरदे खुशहाल किये।।
            शैलेन्द्र खरे 'सोम' जी

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       ♢ पवन छंद ♢

शिल्प~
[भगण तगण नगण सगण]
(211   221  111  112)
12 वर्ण प्रति चरण,यति{5,7}
4 चरण, 2-2 चरण समतुकांत।

सोचत काहे, रघुपति  भज ले।
जापत जा रे,भव भय तज ले।।
सुंदर   कैसे, कमल   नयन जू।
राघव  कीजे,  हृदय  सयन जू।।
           ~शैलेन्द्र खरे "सोम"

                    सोरठा

सोरठा रोला जैसा ही होता है, बस अंतर इतना है कि सोरठे में विषम चरणों में तुक होती है सम चरणों में तुक होना जरुरी नहीं है। दूसरा अंतर ये है कि सोरठे में सम चरणों के अंत में लघु वर्ण आता है।  बाकी संरचना समान ही है; विषम चरणों में ११ मात्राएँ तथा सम चरणों १३।

SI  SI   I I  SI    I S  I I I   I I S I I I

कुंद इंदु सम देह , उमा रमन करुनायतन ।

जाहि दीन पर नेह , करहु कृपा मर्दन मयन ॥

 S I  S I  I I  S I    I I I  I S  S I I  I I I
–रामचरितमानस

सोरठे के कुछ और उदहारण-

जुर-मिल तीनो भाय ,करी विदा दुई बहिना ।
सुमरी शरद माय ,कछु भार घटा कंधे से ।।१।।भैया ठाडे तीन ,साथ में स्यामाबाई ।
भीगे नयन मलीन ,दूर जात दुई बहना ।।२।।भई ओझल आँखिन सु ,बरात की बैलगाड़ी ।
उड़ गई सुगंध चन्दन सु ,आभा उडी सोने की ।।३।।

       ♢ माणवक्रीड़ा छंद ♢

विधान~
[भगण तगण लघु लघु]
(211   221   1   1)
8 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

राघव  चापौं चरण।
संकट कीजै हरण।।
नाथ करूँ मैं नमन।
दोष करो जू दमन।।

         शैलेन्द्र खरे"सोम"

      आज का छंद ~
◆ महामोदकारी छंद◆

विधान~
[ यगण यगण यगण यगण यगण यगण]
( 122  122  122 122  122  122)
18वर्ण,4चरण,दो-दो चरण समतुकांत]

चलो  राह ऐसी न काँटा 
                 लगे  जी  यही बात अच्छी।
न कीजे बुराई किसी की
                किसी से सुनो सीख सच्ची।।
करो  खूब  सेवा  दुखी 
                 दीन जो हो यही  धर्म भाई।
भजो 'सोम" गोविन्द  को
                 चित्त से और  त्यागौ बुराई।।

                            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

       ☆रुचिरा(२) छंद☆

विधान~
[ भगण तगण नगण गुरु गुरु]
( 211   221  111  2  2)
11वर्ण,4 चरण,यति 5-6वर्णों
पर,दो-दो चरण समतुकांत]

कौशलराजा,रघुपति प्यारे।
साधक तारे, असुर  विदारे।।
नित्य मनाऊँ,नमन करूँ मैं।
सुंदर  झाँकी, हृदय धरूँ मैं।।

           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

       ☆ रुचिरा(1) छंद ☆

विधान~
[ तगण भगण यगण ]
( 221  211  122)
9वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]

लो जान सत्य यह बानी।
नासै अवश्य  अभिमानी।।
जो सत्य  राह अनुगामी।
साथी सदैव  जग स्वामी।।

        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

         ▪  तंत्री छंद  ▪

विधान~
प्रति चरण 32 मात्राएँ,8,8,6,10मात्राओं
पर यति चरणान्त 22 , चार चरण, दो-दो
चरण समतुकांत।

हे मनमोहन,हे मनभावन,
                   जगपालक,राधा के प्यारे।
हे वंशीधर, मोरमुकुटधर,
                    यशुदासुत, हे  नंददुलारे।।
वेणु  बजैया, धेनु  चरैया,
                    दीनबंधु,जग  पालनहारे।
हे मधुसूदन,कृपा करो जू,
                   सोम पड़ा,है द्वार तिहारे।।

                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

♤मधु/दोधक/बंधु/नीलस्वरूप छंद♤

विधान~
जाति-त्रिष्टुप, प्रस्तार से कुल 2048 छंद बनते हैं,
[ भगण भगण भगण गुरु गुरु]
( 211  211   211  2   2)
11वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

हे    यशुदासुत    नंददुलारे।
ध्याय  रहे  सचराचर  सारे।।
संत असंत करें सब ध्याना।
गावत  गीत  मनोहर नाना।।

              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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Comments

  1. रुचिरा छन्द कितने प्रकार के होते हैं आदरणीय। मैं 13 वर्णों का भी पढ़ा था

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वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य