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22/09/2017 श्रृद्धा/भक्ति पर सर्जन

[9/22, 3:16 PM] इन्दु दीदी:

मैं  कर्म   योगी  हूँ  यारों।
खेती बाड़ी है मेरी कमाई।
खून पसीना  एक करूँ मैं
क्या जानू  मैं  भक्ति भाई।

कर्म मेरी  पूजा आराधना
कर्म से मिलती रोटी भाई।
भूखा रहे  परिवार  हमारा
वो पूजा नही फलती भाई।

राजा जनक  कर्म योगी थे
अर्धांगिनी भी वैसी ही पाई।
कर्मयोग से फीकी पड़ गई
नारद जी  की  भक्ति भाई।

इन्दू  शर्मा  शचि
तिनसुकिया असम

[9/22, 3:32 PM] अरविन्द दुबे:
देश भक्ति

हिन्दुस्तान में रहने वालो सुनलो मेरा कहना है
वन्देमातरम् वन्देमातरम् इकजुट होकर कहना है
...................................
वन्देमातरम् कह दुनिया में भारत शक्ति दिखाना है
बनकर गर्व हमें भारत का राष्ट्रगान भी गाना है
...................................
भारत माँ की गोद में जन्में यहीं हमें मर जाना है
वन्देमातरम् कहने से फिर  क्यों हमको कतराना है
............................. ....
हिन्दू मुस्लिम छोड़ हमें मज़हब का भेद मिटाना है
मिल जुलकर हम सबको इक संग वन्देमातरम् गाना है
...................................
फर्क नहीं करती धरती माँ सबको एक सा माना है
फिर इसकी जय करने में हम सबको क्यों शर्माना है
................................
मैं हिन्दू मैं मुस्लिम कह कर किसको मिलता दाना है
फसल उगे जब इस धरती पर तब मिल पाता खाना है
...................................
भारतवर्ष में रहकर हमको अपना फर्ज निभाना है
अगर पड़े जो जान भी देनी  हमें नहीं घवराना है
..............................

अरविन्द दुबे

[9/22, 3:37 PM] शीतल:

विषय~श्रद्धा/भक्ति
विधा~आल्हा छंद
१६-१५ यति
विषम चरणान्त गुरु ,
सम चरणान्त गुर लघु।
*************************

संकट जग पर आन पड़ा था,
सुरजन को कछु समझ न आय।
प्रकट भय गई कालीमाता,
  लाल-लाल डोरे दिखलाय।।

एक हाथ धर खप्पर आ गई,
           दूजे मे शोभे तलवार।
कुछ न सूझता माँ काली को,
किस पर कर दूँ मैं अब वार।।

चण्ड-मुण्ड को तूने मारा,
असुर मुण्ड की पहिरे माल।
रक्तबीज का शिश काटदौ,
खप्पर मा लहु दियो उबाल।।

मधु-कैटभ दोउ को विदारे,
सुरजन भयहीन होइ जाय।
महिषासुर प्रतिघात कियाऔ,
गरदन धरती छिटकत जाय।।

विकट रूप था माँ काली का,
रहा देख काल भी थर्राय।
दुष्ट सारे अब मर चुके थे,
पर माता रह थी बौराय।।

शांत किया भोलेबाबा ने,
खुद को रास्ते दिया बिछाय।
निकाल जीभ भी माई काली,
अपनी गलती पर पछताय।।

सजा रहा दरबार है माता,
अब तो जाओ आन पधार।
भक्त खड़े हैं द्वारे तेरे,
सुनलो दुखियो की पूकार।।

महिमा तेरी वेद बखाने,
है माता जो अपरम्पार।
जगत है तुझको शिश झुकाये
नमन करता बारबम्बार।।

*************************
                   ✍शीतल बोपचे

[9/22, 4:58 PM] विश्वेश्वर शास्त्री:

आज मुहिं अपना लीजे नाथ,
श्रद्धा और भक्ति वर दीजे,
कीजे नाथ सनाथ,
डारो चाह उबारो भगवन,
तव चरणनन में माथ |
"विश्वेश्वर" है दास तिहारो,
   है परपूरन पाथ ||
              विश्वेश्वर शास्त्री

[9/22, 5:19 PM] रति ओझा:
विषय-श्रद्धा/भक्ति
विधा-मुक्त
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
भक्ति भाव को मन में रखकर
ईश्वर का तुम ध्यान करो।
चरणों पर सिर अपना रखकर,
गुरुवरों का सम्मान करो।
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
         रति ओझा"व्यथा"

        🙏🏻🌼🙏🏻🌼🙏🏻
[9/22, 5:49 PM] ‪+91 72510 69105‬:
विषय- श्रद्धा, भक्ति
विद्या- मनहरण घनाक्षरी छंद

श्रद्धा, भक्ति प्रेम ,भाव ।
शांत,चित्त अनुराग,।।
मेरे मन मन्दिर में।
प्रभुजी बस जाईये ।।
निशदिन रखो लाज ।
दीन हीन हूँ अनाथ ।।
दीनबंन्धु मेरे प्रभु ।
नाथ बन जाईये ।।
चरणों मे शीश रहे ।
आपका आशीष रहे ।।
मात पिता बन्धु और ।
सखा बन जाईये ।।
बीच धार में है नाव।
बनो मेरे पतवार ।।
अनुपम दया बनी रहे ।
दया बरसाईये ।।

भावना भक्तिराज बृजवासी

[9/22, 5:53 PM] ‪+91 88735 21534‬:
हिंद देश के निवासी, याद इतनी रखना।
हिलमिल के देश की खातिर इस देश में रहना।

जयचंदों की बात में आकर ,
खुराफात न करना।
भारत माँ के आन बान की रक्षा मिलके करना।
हिन्द देश के ...।

जात पात मजहब के चोलेतुम उतार फेंको ना ।
एक साथ मिलकर वंदे मातरम् कहना ।
हिन्द देश ...

आँख मे पानी ,जिगर जवानी और रवानी रखना ।
जान अगर देना पड़े तो पीछे कदम न करना।
हिन्द देश ....
अलमस्त जवानी किस काम की भला,जरा ठहर के सोचो ना ।
भूख ,गरीबी अड़ी हुई है और हम कहे देश महान है अपना ।
हिंद देश ....

          साधना कृष्ण

[9/22, 6:02 PM] बिजेन्द्र सिंह सरल: विषय- भक्ति                                    अरसात सवैया
विधान 7भगण +रगण =24वर्ण, चार चरण समतुकान्त ।(12- 12 पर यति)

टेर सुनो इतनी मनमोहन, आप मुझे नवधा वर दीजिए ।
भक्ति करूँ हिय खोल प्रभू बस,पाप घनें सबही हर लीजिए ।।
भाँति उड़े मन पंछिन के अब,दास मनावत आपहु रीझिए।
भूल हुई अनजान कहीं कुछ, नाथ अनाथ क्षमा कर दीजिए ।।

बिजेन्द्र सिंह सरल

[9/22, 6:55 PM] ममता सिंह:
भक्ति🙏

लाल चुनरी मंगाई
बैठी पलके बिछाई
मैया जय मेरी आने वाली है
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹द्वार तोरण लगाऊ
और गड़ुआ भराऊ
मैया जी मेरी आने वाली है
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹घर दीपो से सजाऊ
और मैया मैया गाऊ
मैया जु मेरी
🌹🌹🌹🌹🌹🌹
श्रद्धा भक्ति चढ़ाऊँ
शीश नवाऊँ
मैया जी मेरी आने वाली है
🌹🌹🌹🌹🌹🌹🌹
ममता सिंह राठौर मीत
[9/22, 6:55 PM] शिवम दीक्षित: विषय - भक्ति

पुत्र         तुम्हारा        मैं        हूँ       माता ;
कृपादृष्टि       का      मैं      भूखा      माता ;
ज्ञान    का     प्रसाद     मैं     मांगू     माता -
अमृत     यह     मैं    चखना   चाहूँ    माता ;

मात   -   पिता  में   मैं  तुमको  देखूँ   माता ;
गुरु       की     कृपा     मैं     चाहूँ     माता ;
जीव     को       जो     धन्य     बना      दे -
बस       ऐसा    ज्ञान    मैं     चाहूँ     माता ;

बड़ों    से    पाऊँ   मैं    आशीर्वाद    माता ;
छोटों को उज्जवल पथ मैं दिखलाऊँ माता ;
शून्य   से    जो    मुझे    सम्पूर्ण   बना   दे -
बस       ऐसा    ज्ञान    मैं     चाहूँ     माता ;

सबका        दर्द        मैं       बाँटू      माता ;
सबमें         सुख       मैं       बाँटू      माता ;
असाध्य   के   लिए  मैं   साध्य   बन  जाऊँ -
बस       ऐसा    ज्ञान   मैं      चाहूँ     माता ;

धर्म           ध्वजा          मैं          फहराऊँ ;
नास्तिक  को  भी मैं  भक्ति  सिखाऊँ  माता ;
पथ  से   विचलित  मैं   न  हो  जाऊँ  माता -
बस       ऐसा    ज्ञान   मैं      चाहूँ     माता ;

देश    का   स्वाभिमान   मैं   बढ़ाऊँ   माता ;
राज्य    में    ख्याति     मैं     पाऊँ     माता ;
परिवार      का       जो      मान      बढ़ाये -
बस       ऐसा    ज्ञान     मैं    चाहूँ     माता ;
                             ✍...- शिवम् दीक्षित
                                   { कानपुर , उ.प्र.}
[9/22, 9:05 PM] बृजमोहन साथी जी: आज के विषय पर प्रयास
गुणी जन मार्गदर्शन अवश्य करें
♻️♻️♻️♻️♻️♻️♻️  
मनहरण घनाक्षरी
विधान (8,8,8,7 अंत लघु गुरु)
💥💥💥💥💥💥💥💥

कर लो प्रभु ध्यान , होता इससे कल्यान ।
जीवन का सार यही , सूर बन जाइये ।।

रखना भरोसा यही , नानक जी कहें सही ।
वाणी रखो मीठी सदां , प्रेम को बढ़ाइये ।।

भरत सी भक्ति करो , रामजी का ध्यान धरो।
मानस का रसपान , सबको कराइये ।।

पखेरू हो जब प्रान ,कबिरा का रखो ज्ञान।
जीवन तो मेला साथी, रुक मत जाइये ।।

🌺🌺🌺🌺🌺 124🌺🌺
कवि बृजमोहन "साथी"डबरा

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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