◆ मधुशाला छन्द (रुबाई) ◆
शिल्प~[१६,१४ मात्राभार में २ गुरु,
४ पंक्तियां, तीसरी पंक्ति अतुकान्त]
🌻 जय माँ शेरावाली🌻
1-शैलपु्त्री
पर्वतराज हिमालय के घर,
माता ने जन्म लिया है|
शैलापुत्री तब कहलायी,
सबको ही हर्ष दिया है||
एक हाथ में लिए खड्ग हैं,
दूजे कर कमल विराजे,
होकर वृषभ सवार मात फिर,
कष्टों को दूर किया हैं||
2-बम्ह्रचारिणी
योग साधना हुई लीन जब,
ब्रम्ह्रचारिणी कहलाई|
इसी रूप की सब मुनियों ने,
भूरि भूरि महिमा गाई||
एक हाथ में लिए कमण्डल,
दूजे में जप की माला|
जिसने पूजा इसी रूप को,
माँ उस पर होत सहाई||
3-चंद्रघंण्टा
अर्द्धचन्द्र माँ के मस्तिक पर,
कंचन जैसी हैं काया|
होते कार्य सिद्ध सब उनके,
कर्म वचन से जो ध्याया||
चंद्रघण्टा नाम हैं इनका,
करती नित सिंह सवारी|
दूर करो माँ संकट सारे,
मुझको दो अपनी छाया||
4-कूष्माण्डा
मंद मंद मुस्काकर माँ ने,
ये पूरा ब्रम्हाण्ड़ बनाया|
नाम पड़ा हैं तब कूष्माण्ड़ा,
पूर्ण धरा पर जो छाया|
जाप करे जो इसी नाम का,
भव सागर तर जाये वो,
सब कुछ देती हैं माँ उसको,
जो भी द्वारे पर आया||
5-स्कन्दमाता
स्वरूप पंचम माँ दुर्ग का,
उसे स्कन्दमाता मानौ|
विशुद्ध मन को शुद्ध करे जो,
कार्तिकेय की माँ जानौ||
सिंह सवारी मैया करती,
कमलासन पर बैठी हैं|
इच्छायें माँ पूरी करदे,
जो भी तुम मन में ठानौ||
6- कात्यायनी
कात्यायन की कठिन तपस्या,
प्रसन्न हुई महारानी|
महर्षि इच्छा पूरी करने,
आई घर जगत भवानी||
षष्ठ स्वरूप माँ कात्यायनी,
सबकी पीड़ा हरती हैं|
मुझको भी माँ दर्शन दे दो,
चौहान बड़ा अज्ञानी||
7-कालरात्रि
रूप भयानक माता जी का,
सुफल मनोरथ वाली हैं|
कालरात्रि कहते हैं इनको,
नहीं कामना खाली हैं ||
सारे भय को दूर करे माँ,
जीवन में खुशहाली दे|
एक हाथ में तलवार लिए,
दूजे विपदा टाली है||
8-महागौरी
आँठवी दुर्गा महागौरी,
शंख चन्द्रमा धारी हैं|
तीन नेत्र सुन माता जी के,
भक्तों पर माँ बलिहारी हैं||
माँ गौरी की पूजा करले,
पाप सभी धुल जायेगे|
ऊँचे पर्वत पर माँ रहती,
उसकी महिमा न्यारी हैं||
9-सिद्धदात्री
अनिमा महिमा गरिमा लघिमा,
प्रसिद्धि देने वाली हैं |
नौवा रूप हैं सिद्धिदात्री,
माता शेरावाली हैं||
महाशक्ति की पूजा करले,
भाग्य उदय हो जायेगा|
माँ दिव्य भटक गया ड़गर में,
कर दे कृपा निराली हैं||
जितेन्द्र चौहान "दिव्य"
[9/21, 7:04 AM] भगत गुरु: 🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
मित्रों,
माँ की आराधना के पावन पर्व पर अकिंचन की यह रचना समर्पित है, ताकि हम "नियमत: नित्य माँ के स्वरूप को समर्प्य व वरलब्धि" को जानकर तदनुसार कृपा-प्राप्त कर सकें |
इसमें जानिए कि, *क्रमश: प्रत्येक नवरात्र को किस माँ की आराधना होती है; किस पदार्थ से होती है और प्रतिफल में माँ हमें क्या वर प्रदान करती है |*😊
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नवरात्र-स्तुति
♦ मत्तगयन्द सवैया ♦
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हे जग के सब भक्त महा सुनु, मातु रहो बन राज दुलारे |
लोक रही यक शक्ति यही जब, कौन रहा नहि मातु दुआरे |
जानि रहो सुधि काजु सभी अब, होवहिं मानहुँ साध सुधारे |
आजु कहूँ बच पावनि कारहुँ, मातुहि मातुहि गाउँ पुकारे ||
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♣♦ मनहरण घनाक्षरी♦♣
नवरात्र-नवदुर्गा
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प्रथम दिन~माँ शैलपुत्री
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सुनहुँ सुजन नव, रातहिं कौ दिन यक,
माता शैलपुत्री जानु, पूजो मनुहारिकै |
घृत लाओ धेनुहि तु, रखुँ चरणन मात,
मोद धरि मनमहुँ, ध्यानहुँ बिचारिकै |
घृत गहँ मुदित हो, होय शुभ वरदानि,
देते माता काय शुभ, सब रुज हारिकै |
कंचन हो काया तब, रहे सबु सुख जग,
सुख पहला ही यह, गहहँ पुकारिकै ||
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दूसरा दिन~ माँ ब्रह्मचारिणी
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दूसर दिवस सुनु, ख्यात लोक सब कहे,
नामु ब्रह्मचारिणी कै, पावन विधान है |
आजु लाय भोग तुम, शक्कर का रखुँ पग,
सहज सरल यह, गेह पकवान है |
मृदु इहि भोग लेय, देती मात सहजहि,
वृद्धि करि आयु तव, सोचु अनुमान है |
वय सुधि काय तब, काज नहीं शेष अहे,
मोक्ष मिले बाद देह, वेद अवधान है ||
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तीसरा दिन~ माँ चन्द्रघंटा
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तीसर दिवस आय, गयो माता रूप महा,
नाम चन्द्रघंटा कहे, लोक गुणगायकै |
दुग्ध प्रिय भोग मातु, अरु दुग्ध युत मृदु,
पायस बनाय रखुँ, मन - बच ध्यायकै |
भोग गहि पायसहुँ, हरण करहिं सब,
दु:ख काय माय अघ, सुख बहु दायकै |
जीवनु जु सुख अहे, मति साधि कारहुँ तु,
काजु पुण्य कारकी ही, मन में बिठायकै ||
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चौथा दिन~ माँ कुष्माण्डा
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अब दिन चौथो आयो, नवराति सुखदा कौ,
कुष्माण्डा पावनी यह, माता ही उदार है |
या कौ भोग होवे सुन, सुधि मृदु मालपुआ,
मान करि रखुँ पग, मनु मनुहार है |
मालपुआ भोग लेय, मुदित महानी मात,
बुद्धि कौ विकास देय, निर्णय सुधार है |
मति हो विवेकी तब, लोक महँ यश होय,
अनुसरी होत जग, देखिअ निहार है ||
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पाँचवा दिन~ स्कन्धमाता
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सुनहुँ सुजन अब, पाँचव दिवस ख्यात,
लोक महँ बात यही, षडाननी मात है |
गणेश के बंधु बड़े, ताहि मातु भोग प्रिय,
रितुफल कदली ही, रखुँ सत बात है |
कदली तै तोष गहे, माता काय रुज सब,
निकट न आन देत, निरोगीहि गात है |
काय पुष्ट होय तभी, बल वीर्य बढ़े मति,
सुख सातों आपुहि जू, दौड़े घर आत है ||
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छठवाँ दिन~ माँ कात्यायनी
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नवराते मूल महँ, माता का ही वंदन है,
छठवाँ दिवस होत, किंशुक कात्यायनी |
शहद है अति - प्रिय, रखुँ मन मोद-मान,
मोहिति कौ बल यह, कहे है जी दायनी |
मोहक करिहै भाल, लोग वशिभूत जिहि,
मान गुणगान होय, यश अनपायनी |
मचिहै जी धूम जग, बचन की पत रहे,
और किमि कहो चहै, वर मनुभायनी ||
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सातवाँ दिन~ माँ कालरात्रि
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साँतव दिवस होय, सुनु मात रूप महा,
कहे कालराति सब, दोषनि निवारकी |
माता कौ है भोग सुनु, यक गुड़ मीठो गेह,
मोद धरि आपु रखुँ, पाप सब हारकी |
मुदितमना हो मात, विपत्ति निवारे सब,
वर शीश दिहै आप, मंगल की कारकी |
वसमर जू कटिहै तो, आनंद ही होहुँ सबु,
गुण ज्ञान मति दाये, लोकहि तै तारकी ||
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आठवाँ दिन~ माँ महागौरी
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आठवँ दिवस पूत, पावन ही कहलाय,
गेह सभी पूजने कौ, माता मनुहारते |
तो है रूप आठवाँ जी, महागौरी वरदायी,
भोग शुभ नारियल, सब जन वारते |
माता मन मोद धरि, वर महँ देती वर,
सुख संतान का जी, लेते सुख कारते |
सुधिअ संतान हो तो, नैक दु:ख लेश नहीं,
कहते कर बेटे सब, आपुहि निवारते ||
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नौवाँ दिन~ माँ सिद्धिदात्री
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नवम दिवस ख्यात, नाम से ही महा नौमी,
कहे वेद अरु अंग, माता शीश दीजिये |
भोग प्रिय मातु तिल, कर रखुँ देखि पग,
राखिहै जी महाफल, आपु शुभ लीजिये |
मुदित हो माता तब, मृत्यु भय हारिहै जी,
जीवन सुफल मनु, सुधा रस पीजिये |
भयमुक्त होय जग, मौत से अकाल के जी,
बार - बार मातु कहि, गुणगान कीजिये ||
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♦ *गीतिका छन्द* ♦
सुनु मातु आपुहि हो मही, गति मोरि आजु सुधारिये |
सब भाँति कौतुक कारिहौं, अरु नेह मोहिं उछारिये ||
मति देहुँ मारहुँ पाप जू, मम ओर हाथहि आपु हौं |
शुभ राह पावहुँ नाहिं कौ, दुख कोर आवहुँ जापु हौं ||
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©भगत
(कृपामातु ~रात ८.२८ ,दिनांक २१-३-२०१७)
{यह रचना चैत्र नवरात्रांक में "काव्य-रंगोली" (लखीमपुर-खीरी, उ.प्र.) पत्रिका की शोभा रही है |}
🙏 जय-जय
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