राधा छन्द
विधान- रगण तगण मगण यगण गुरु =13 वर्ण
8,5 पर यति चार चरण, दो-दो चरण समतुकान्त
बैर का माली बना तू,बैर बोता है।
आदमी का आदमी से, बैर होता है ।।
क्यों भला खोया हुआ है,यूँ जवानी में ।
बीत जाये जिन्दगी भी,ये कहानी में ।।
नाम साँचा आपका ये ,प्यार झूठा है ।
जो न माने जान लीजे , भाग फूटा है ।।
प्रेम का जो रूप है वो, माँ हमारी है ।
जान मेरी है हमेशा, ही निहारी है ।।
रोक लेना जो कहीं माँ , रूठना चाहे ।
भाग तेरा ये कहीं भी, फूटना चाहे ।।
माँग ले माँफी मिलेगी, आज माता से।
पा लिया ये जन्म तूने, भी विधाता से ।।
बिजेन्द्र सिंह सरल
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