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सोम छन्द कलश 2

◆पुण्डरीक छंद◆
शिल्प~
[मगण भगण रगण यगण]
(222  211  212 122)
12 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,2-2 चरण समतुकान्त।

चोला  ये  तो  रहता  पड़ा  यहीं है।
जानौ आत्मा  मरती कभी  नहीं है।।
काँटे बोये फिर पुष्प क्यों खिलेगा।
जो  भी  जैसा करता वही मिलेगा।।
      ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

         ♡ पुटभेद छंद ♡
शिल्प~
[रगण सगण सगण सगण सगण लघु गुरु]
(212  112  112   112  112  1   2)
17 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,2-2 चरण समतुकान्त।

श्री  रमापति जू  मनभावन  के गुण गाइये।
जो मिले  नित कर्म  करे उसमें सुख पाइये।।
कीजिये अभिमान नही अपना मन साधिये।
"सोम"उत्तम काम यही,हरि को अवराधिये।।

            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

     ♢ बिंदु छंद ♢
विधान~
[ भगण भगण मगण गुरु]
(211   211  222   2)
10 वर्ण,4 चरण,(यति 6-4)
दो-दो चरण समतुकांत]

मोहक  लागत, मीठी बानी।
घोलत है जनु, मिश्री-पानी।।
"सोम"सबै मधु,भावै बोली।
बोलत जो कटु,लागै गोली।।

        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

       ♧ ब्रह्मरूपक छंद ♧
विधान~
[ रगण जगण रगण जगण रगण लघु]
(212  121   212  121  212  1)
16वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकान्त।

त्याग काम  क्रोध को  सदैव ही रहो उदार।
भूल से भली प्रकार सीख लो करो सुधार।।
सादगी  भली  सुहाय  उच्च ही रहें विचार।
"सोम" देखिये न दोष और के हिये निहार।।

        ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
      

       ☆ बुद्बुद छंद ☆
विधान~
[ नगण जगण रगण]
(111  121  212)
9 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

रघुपति  जू  निहारिये।
गति अब तो सुधारिये।।
नमन  करूँ  अधीन हूँ।
सकल  प्रकार  दीन हूँ।।

            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

       卐  रमेश छंद  卐

विधान~
[  नगण यगण नगण जगण]
( 111  122  111  121 )
12वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

तरसत नैना अब प्रिय श्याम।
रुचत न मोहे घर कुछ काम।।
चितवत बांका अनुपम  रूप।
नमन  करूँ  सेवहुँ   सुरभूप।।

              ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

   ॐ  श्री गुरु वंदन ॐ

गुरुदेव   के  पद   चूमिये।
गुण  गाइये  अरु  झूमिये।।
कट जाय संकट आप ही।
मिटते सभी भव ताप भी।।
                   (संयुत छंद)

जो  गुरुदेव   समीप  जायेगा।
जीवन  में  सुख सार आयेगा।।
जो गुरु के गुण नित्य गायेगा।
अंत  वही    सुरधाम  पायेगा।।
                       (रोचक छंद)

सुनो मन आज चलो गुरु धाम।
कटे भव  फंद बनें  सब  काम।।
मिले  मन चैन मिटे  जब  ताप।
अरे  जड़ "सोम"सदा पद चाप।।
               (मौक्तिक दाम छंद)

भज लीजिये, अब गुरुदेव को भले।
यह  जानिए, कुसमय आपका टले।।
सब छोड़िये,गुरु पद थाम  लीजिये।
गुरुदेव  का, निशदिन नाम लीजिये।।
                             (सुदर्शना छंद)

नित भोर से जब जागिये,
                      गुरु नामको सुमिरौ भले।
हर सिद्ध कारज जानिये,
                     सब आपकी विपदा टले।।
सबसे बड़ी महिमा कहें,
                      सब वेद श्री गुरु नाम की।
सुरलोक से बड़ मानिये,
                    रज"सोम"श्रीगुरु धाम की।।
                                   (गीतिका छंद )

दीजे मोहे ज्ञान  निधि, प्रेम-सदन सुखधाम।
गुरुवर चरणों में करूँ,शत शत बार प्रणाम।।
शत शत बार प्रणाम,रहूँ पद पंकज चाकर।
हर लीजे अज्ञान,ज्ञान की ज्योति जलाकर।।
कहें "सोम"कर जोर, शरण में गुरुवर लीजे।
श्री  चरणों  की  धूल, दयाकर   मोहे  दीजे।।
                                    (कुण्डलिया छंद)

कोऊ कहे राजा बड़ो,कोऊ कहे मंत्री बड़ो
          कोऊ  कहे पेड़  बड़ो जान  लेव दानी है।
कोऊ कहे बलि बड़ो,कोऊ कहे कर्ण बड़ो,
          कोऊ कहे जग में दधीचि को न सानी है।।
कोऊ कहे चंद बड़ो, कोऊ कहे सूर्य बड़ो,
          कोऊ  कहे  मेघ  बड़ो देत  सबै पानी है।
"सोम" कहे दानी बड़े, हमरे श्री गुरु देव,
          विद्या  गुण दान देंय, जा  हमने जानी है।।
                                           (कवित्त छंद)
                        
                                  ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

       □  पदम छंद □

शिल्प~
[नगण सगण लघु गुरु]
(111  112   1   2)
8 वर्ण प्रति चरण,4,4 यति,
4 चरण,2-2 चरण स्मतुकांत।

चरण  हिय धारिकै।
सकल  मद मारिकै।।
नित नमन कीजिये।
रस  सरस पीजिये।।

       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

     ♤ हरिगीतिका छंद ♤

विधान ~ [सगण जगण जगण भगण रगण सगण+लघु गुरु]
(112  121  121  211  212  112  12)
20वर्ण, 10-10 वर्णों पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत।

       ~ शिव महिमा ~

प्रभु नाम की महिमा कहूँ,
       तज लेत हैं जग पीर भी।
नर नार में समता रहें,
     शिव देत हैं हिय धीर भी।।

मनु नींद से अब जागिये,
       शिवधाम के पथ को चलें।
सुचि भावना मन राखिये,
        सद भावना जग में खिले।

    
       डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

     असबंधा छन्द
(मगण+तगण+नगण+सगण+गुरु+गुरु, १४ वर्ण, ४ चरण, २-२ चरण समतुकान्त)
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

माया कैसी  है  हम  तुम  सब जाने ना |
छाया का भी भान करिअ सत माने ना ||
जो भी है जैसा सब कुछ हरि का मानो |
भूलो सारे भाव  अरु  हरि  साँचा जानो ||

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻
© भगत
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◆ब्रह्मरूपक छंद◆

विधान~
[ रगण जगण रगण जगण रगण लघु]
(212  121   212  121  212  1)
16वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकान्त।

त्याग काम  क्रोध को  सदैव ही रहो उदार।
भूल से भली प्रकार सीख लो करो सुधार।।
सादगी  भली  सुहाय  उच्च ही रहें विचार।
"सोम" देखिये न दोष और के हिये निहार।।

                            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

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      ◆ पुण्डरीक  छंद ◆

शिल्प~
[मगण भगण रगण यगण]
(222  211  212 122)
12 वर्ण प्रति चरण,
4 चरण,2-2 चरण समतुकान्त।

चोला  ये  तो  रहता  पड़ा  यहीं है।
जानौ आत्मा  मरती कभी  नहीं है।।
काँटे बोये फिर पुष्प क्यों खिलेगा।
जो  भी  जैसा करता वही मिलेगा।।

                    ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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◆ त्रिभंगी छंद [सम मात्रिक] ◆

विधान~
{4 चरण,प्रति चरण 32 मात्राएँ,
प्रत्येक में 10,8,8,6 मात्राओं पर यति 
प्रथम व द्वितीय यति समतुकांत, 
प्रथम दो चरणों व अंतिम दो चरणों के
चरणान्त परस्पर समतुकांत तथा
जगण वर्जित,प्रत्येक चरणान्त में गुरु(2),
चरणान्त में दो गुरु होने पर यह छंद 
मनोहारी हो जाता है।}
          

(1)     
हे कृृष्ण कन्हैया,जसुदा छैया,
                    चीर बढ़ैया,वनवारी|
नित ग्वाला टेरत,गोपी हेरत,
                 गाय पुकारे,गिरिधारी||
हाँ दृग नीर भरे ,नहिं धीर धरे,
                शरण तिहारी,हे भगवन|
है आस तुम्हारी,सुनहुँ मुरारी,
             दिव्य करेगा,नित सुमिरन||

(2)
ले हाथ तिरंगा,हर मन गंगा|
           राष्ट्र गान को,नित गाओ|
ऐ देश हमारा,सबसे प्यारा,
          जो भी चाहत,सब पाओ||
हम भाई भाई,ये है माई,
            बनो सहाई,अब आजा|
सब एक रहेगे,नेक रहेगे,
      तभी सफल हो, हर काजा||

(3)      
बेटी मत मारो,दया विचारो,
               वपावन है वह,कर पूजा|
आँगन की शोभा,तज सब लोभा,
              सुन किलकारी,घर गूँजा||
वो लक्ष्मीबाई,मीराबाई,
                  है सावित्री,सच जानौ|
वह ममता मूरत,असली सूरत,
                 सीता राधा,नित मानौ

(4)
आ कृृष्ण कन्हैया,रोती गैया|
              दुृ्ृृष्ट मरैया,मनमोहन|
हाँ ठोकर खाती,तुम्हें बुलाती|
            नीर बहाती,रविलोचन||
ये मानव भूला,मद में फूला|
            काट रहा है,ममता को|
हे मदनमुरारी,सुन गिरिधारी,
       तुम्हीं बचाओं,दुखिता को||

(5)
गुरु सोम हमारे,सबसे प्यारे|
             अँखियन तारे,सिर नाता|
है सरल स्वभावी,बड़े प्रभावी,
                सेवाभावी,गुरु दाता||
मै सदा मनाऊँ,शीश झुकाऊँ,
               महिमा गाऊँ,सभ्य करो|
मेरे गुरदेवा,लीजे सेवा,
           "दिव्य" चाहता,हाथ धरो||

  (6)                     
हे दीन दयाला,जपूँ मैं माला|
                तुम्हीं कृपाला,सुखकारी|
कौशल्या प्यारे,अँखियन तारे,
                सब दुख टारे,हितकारी||
जो नाम सुमिरता,भव से तरता,
               भय सब टलता,सुन प्यारे|
हे राम दयाकर,टेर सुनाकर,
                "दिव्य" खड़ा है,अब द्वारे||

(7)
तुम राम दुलारे,हो रखवारे|
                  काज सँवारे,हनुमाना|
प्रिय लखन बचाये,सिय सुध लाये,
                   सब हर्षाये,बलवाना||
जय जय असुरारी,अति बलधारी,
                   विपदा टारी,रघुवीरा|
है नाम तुम्हारा,सबसे प्यारा,
               "दिव्य"पुकारा,रणधीरा||

(8)        
नित छंद साधना,यही कामना,
                   मात शारदे,वर देना|
जीवन का सपना,सत पथ चलना,
              माँ विकार सब,हर लेना||
माँ आशा तेरी,कर मत देरी,
                आजा मन में,दे आशा|
है बहुत अँधेरा, दिखा उजेरा,
            बदलो किस्मत,का पासा||

जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

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कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

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