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जय जय हिन्दी के साहित्यकार (भगत सिंह)


बिषय :- वीर पुत्र  सरदार  भगत सिंह 
        मुक्तक

भगत सा वीर नही देखा होगा हम सबनें,
पीर जो पली थी वीर धीर ने निभाई है।
माता का बढ़ाया मान पिता का बढ़ा सम्मान।
भारती अखण्डता की नीव जो निभाई हैं।
        
सहते थें कष्ट और पलटे हैं पृष्ठ यहाँ ,
सुत ने जो बात बलिदानी की निभाई हैं।
  हाथ में संदूक लिये कांधे पे बंदूक लिये, 
भारती की लाज आज पुत्र ने निभाई हैं।।

- नीतेन्द्र सिंह " परमार "
     छतरपुर  ( म.प्र )
सम्पर्क :- 8109643725

[9/28, 1:00 PM] डाॅ• राहुल शुक्ल:

           🙏 भगत सिंह 🙏

अमृतसर में 13 अप्रैल, 1919 को हुए जलियांवाला बाग के निर्मम हत्याकांड ने 12 साल के उस बच्चे को ऐसा क्रांतिकारी बनाया, जिसके बलिदान ने मौत को भी अमर बना दिया। नौजवानों के दिलों में आजादी का जुनून भरने वाले शहीद-ए-आजम के रूप में विख्यात भगत सिंह का नाम स्वर्ण अक्षरों में इतिहास के पन्नों में अमर है। उनके नाम से ही अंग्रेजों के पैरों तले जमीन खिसक जाती थी।

भारत के वीर स्वतंत्रता सेनानी भगत सिंह का जन्म पंजाब प्रांत में लायपुर जिले के बंगा में 28 सितंबर, 1907 को पिता किशन सिंह और माता विद्यावती के घर हुआ था।

12 साल की उम्र में जलियांवाला बाग हत्याकांड के साक्षी रहे भगत सिंह की सोच पर ऐसा असर पड़ा कि उन्होंने लाहौर के नेशनल कॉलेज की पढ़ाई छोड़कर भारत की आजादी के लिए 'नौजवान भारत सभा' की स्थापना कर डाली।

वीर सेनानी भगत सिंह ने देश की आजादी के लिए जिस साहस के साथ शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार का मुकाबला किया, वह आज के युवकों के लिए एक बहुत बड़ा आदर्श है।

आजादी के इस मतवाले ने पहले लाहौर में 'सांडर्स-वध' और उसके बाद दिल्ली की सेंट्रल असेम्बली में चंद्रशेखर आजाद और पार्टी के अन्य सदस्यों के साथ बम-विस्फोट कर ब्रिटिश साम्राज्य के विरुद्ध खुले विद्रोह को बुलंदी दी।

भगत सिंह ने इन सभी कार्यो के लिए वीर सावरकर के क्रांतिदल 'अभिनव भारत' की भी सहायता ली और इसी दल से बम बनाने के गुर सीखे। वीर स्वतंत्रता सेनानी ने अपने दो अन्य साथियों-सुखदेव और राजगुरु के साथ मिलकर काकोरी काण्ड को अंजाम दिया, जिसने अंग्रेजों के दिल में भगत सिंह के नाम का खौफ पैदा कर दिया।

भगत सिंह को पूंजीपतियों की मजदूरों के प्रति शोषण की नीति पसंद नहीं आती थी। 8 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेम्बली में पब्लिक सेफ्टी और ट्रेड डिस्प्यूट बिल पेश हुआ। अंग्रेजी हुकूमत को अपनी आवाज सुनाने और अंग्रेजों की नीतियों के प्रति विरोध प्रदर्शन के लिए भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने असेम्बली में बम फोड़कर अपनी बात सरकार के सामने रखी। दोनों चाहते तो भाग सकते थे, लेकिन भारत के निडर पुत्रों ने हंसत-हंसते आत्मसमर्पण कर दिया।

दो साल तक जेल में रहने के बाद 23 मार्च, 1931 को सुखदेव, राजगुरु के साथ 24 साल की उम्र में भगत सिंह को लाहौर जेल में फांसी दे दी गई।   सरफरोशी की तमन्ना लिए भारत मां के इन सपूतों ने अपने प्राण मातृभूमि पर न्योछावर कर दिए। उनका जज्बा आज भी युवाओं के लिए एक सीख है। भारत आजाद हुआ, मगर अभी भी यह देश वैसा नहीं बन पाया, जैसा भगत सिंह चाहते थे।

शहीद-ए-आजम को शत शत नमन!
      🙏 जय जय🙏

[9/28, 1:54 PM] इन्दु दीदी:

भगत सिंह सच्चा  बलिदानी।
जिसकी अमर आज कहानी।
अपने   खून से   रंगा तिरंगा।
फाँसी चढ़ कर   दी  कुर्बानी।

भारतमाँ का था वो  लाडला।
भारत पर जीना और  मरना।
देख  फिरंगी  इनकी  एकता।
सोच रहे थे  अब क्या करना।

रातो रात  षड्यंत्र   रचा  कर।
फाँसी का   फरमान   सुनाये।
भगत सिंह  सहीद   हो   गया।
होठो पर   मुस्कान    बिछाये।

इन्दू शर्मा शचि
तिनसुकिया असम

[9/28, 5:36 PM] शीतल:

शहीदे आजम भगत सिंह
*************************

जनम दुबारा तुम मत लेना,
     भगतसिंह इस धरती पर।
लोकतंत्र अधमरा पड़ा है,
          संविधान की अर्थी पर।

तुम्हे देश से प्रेम बहुत था,
         तुम फांसी पर झूल गए।
हम निकले एहसान फरामोश
           शहादत तेरी भूल गए।

क्या पड़ी थी देश की खातिर,
      फंदा फाँसी का चूम लिया।
रंग बसन्ती कफन ओढ़कर,
           इंकलाब मे झूम लिया।

तुम भी तो गबरू जवान थे
           मोहित होते बाला पर।
प्रेम गीत के झूमे गाते,
     जाते किसी मधुशाला पर।

शायद तुम्हें पता नही था,
                 मेले लगने वाले हैं।
अंधियारों को हरा न पाए,
         झूठे दिए जलने वाले हैं।

सदा स्वर्ग मे खुश तुम रहना,
             यही हमारी मरजी है।
विनय तात तुम सुन ही लेना,
            यही हमारी अरजी है।

जब भी सताए याद देश की,
          दो आँसु तुम बहा लेना।
फिर हो जाए गुलाम देश पर,
          जनम दुबारा मत लेना।

*************************
                               🙏
                   ✍शीतल बोपचे

               
      
[9/28, 5:56 PM] विजय व्रत कण्ठ:
बी एच यू प्रकरण पर एक चिंतन

हिंसा से कुम्हला गया ,महामना का बाग।
फन काढे विष उगल रहे राजनीति के नाग।।

ज्ञान के पावन मंदिर में
हुई घिनौनी बात।
कलम के बदले खूब चले, डंडे लाठी लात।।
शांति और सुरक्षा के
ढीले पड़ गए तार।
पूरा परिसर काँप उठा
मच गईं चीख पुकार।।

एक साथ मिल बैठें सब
निकले कोई हल।
करें सुरक्षित शतप्रतिशत
आनेवाला कल।।

✍विजयव्रत कंठ
         वरिष्ठ आचार्य
सुन्दरी देवी सरस्वती विद्या मंदिर+ 2स्तरीय
बटहा रोसड़ा समस्तीपुर बिहार

9/28, 6:27 PM] बिजेन्द्र सिंह सरल: विषय- भगत सिंह                                         रति 2छन्द
विधान -सगण भगण नगण सगण गुरु=13वर्ण
चार चरण दो दो चरण समतुकान्त, (4-9 पर यति)

बलिहारी, भगत पर तन जावें।
बलिदानी, सबहि जन सुख पावें।।
उन लोगों, पर विपति सब आयी ।
जिन वीरों, यह धरनि  अकुलायी ।।

तुम कीना, जग सुयश अतिभारी ।
रणधीरों, पर भगत बलिहारी ।।
करता हूँ, बस नमन सुमनों से ।
धरती है, यह सुलभ  सुजनों से।।

बिजेन्द्र सिंह सरल

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