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सोम छन्द कलश ~ 3

◆आनंदवर्धक छंद◆

विधान~
19 मात्राएँ/चरण,चरणान्त 2 या 11,
चार चरण, दो-दो चरण समतुकांत।

नित नमन  सुखधाम  सीतानाथ जू।
हृदय  धर  गाऊँ  सदा  गुणगाथ जू।।
सुखसदन  मो पर  कृपाकर रीझिए।
चरण  रज  बस  चाहता  हूँ दीजिए।।

                         ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏

नित्य नमन
🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼

रहा   यहाँ   व्यवधान  ही, छमहुँ  नाथ  जगतार |
पुन: नमन हम गहहुँ प्रभु, आप अखिल भरतार ||
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿

आज रौ दुस्साहस~
पल बीत्या बैरी हुया, पल में भरी मिठास |
पल को ही छौ खेल यौ, कदै पराया खास||

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
बना  रहे   जग  भाईचारा, बालाजी |
सभी  परस्पर बनें  सहारा, बालाजी |
छोड़ें    सारे    तेरे - मेरे   फंदों   को,
यही कहे मन का इकतारा, बालाजी ||

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
©भगत

      नित्य नमन
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿

हरि जग महँ अब भरम बस, लुप्त यथारथ आज |
कृपा     कार    मारग    प्रदो, पथ श्रेयसहुँ समाज ||

🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻🌻

आज रौ दुस्साहस~
नहीं कणुकाँ नर रह्या, र'ह्यो नहीं सत लोक|
बाट धरम री  खो गई, झूठी   सगळी  ओक||

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

दिवस एक हिन्दी गुण गाये, बालाजी |
लौट आज अपनी पर आये, बालाजी |
आज सभी ही  करते थोथी बात यहाँ,
कैसे   बिगड़ी   बात  बनाये, बालाजी ||

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼
©भगत

            वरुथिनी छन्द
(जगण+नगण+भगण+सगण+नगण+जगण+गुरु, १९ वर्ण, ४ चरण, क्रमश: ५,५,५,४ वर्ण पर यति, दो-दो चरण समतुकान्त)
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

चलो   सतत,   बढ़ों  सतत, पुकार  कर, निहारते |
डटो  अटल,    रहो विमल, सु धार  कर, सुधारते ||
नहीं   कदम, रुकें सजन, सुभाँति अब, विचार ले |
कहाँ कठिन, रहें सु-पथ, वि-भाँति सब, निहार ले ||

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀
©भगत

       नित्य नमन
🌻🌻🌻🌼🌼🌼🌻🌻🌻

मन  के  हारे  हार  है, मन के जीते जीत |
हरि कहते मन में बसे, जीवन का संगीत ||

🌿🌿🌿🍁🍁🍁🌿🌿🌿

आज रौ दुस्साहस~
बेगा-बेगा पग उठा, काळ चढ्यो छै शीश|
जी कै हिरदाँ सत बसे, बींको ही जगदीश||

🌸🌸🌸🌺🌺🌺🌸🌸🌸

वही कहें जो  कर  सकते हैं, बालाजी |
झूठ बोल कब बच सकते हैं, बालाजी |
साँच - झूठ का भेद मरम समझाता है,
उचित राह खुद चुन सकते हैं, बालाजी ||

🌼🌼🌼🙏🙏🙏🌼🌼🌼
© भगत

           ♤वरूथिनी छंद♤

विधान~
[ जगण नगण भगण सगण नगण जगण गुरु]
( 121  111  211  112   111  121  2)
19वर्ण,4 चरण,यति5,5,5,4 वर्णों पर,
दो-दो चरण समतुकांत]

निहार  कर,  विचार  कर, प्रहार  कर, सुवीर तू।
बढ़ा  कदम,  न वीर थम, नही  नरम,  सुधीर तू।।
न साथ लख,न आज थक,हिये धधक,प्रचंड तू।
डरे  पवन,  डिगे  धरन, अनंत   सम, अखंड तू।।

                                       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

               ♤वरुथिनी छंद♤

विधान~ 
[ जगण नगण भगण सगण नगण जगण गुरु]
( 12111,   1 2111,  12 111,   121  2)
19 वर्ण,4 चरण, यति 5,5,5,4 वर्णों पर,
दो-दो चरण समतुकांत]

सुधार हित, निहार नित ,प्रहार कर ,सुधार हो।
तुणीर कस,बढे़ सुयश,न हो विवश, विकार हो।।
पियो गरल,बनो तरल,सदा सरल, बने रहो।
विनाश बन,सुजान तन,महान जन,बने रहो।।

महान बन,जवान तन,गुमान मन,बना रहे।
सजे धरम,करो करम,बढा़ कदम, तना रहे।।
कमाल कर,धमाल कर,नपाक पर,प्रहार हो।
करो मरण,हरो भरण,तभी रण,निहार हो।।
१६-९-२०१७
करो दमन,सजे वतन,हिले धरन,प्रहार से।
विनाश कर,प्रयास कर,डरे असुर,प्रसार से।।
करो करम,न हो नरम,बढ़े धरम,तभी तने।
सुवीर तन,सुधीर मन,खुशाल जन,सभी बने।।
१५-९-२०१७
चलो सजन,करें भजन,सदा सुमन, चढा़इये।
नमो चरण,करो वरण,हरी शरण, बढा़इये।।
सनाथ हम,दुराव कम,सुभाव नम, सदा रहे।
विकास कब,प्रयास जब,सुवास तब,सदा बहे।।
१४-९-२०१७
कौशल कुमार पाण्डेय"आस"

     ◆दीपिकाशिखा छंद◆

विधान~
[ भगण नगण यगण नगण नगण रगण लघु गुरु]
(211  111  122  111  111  212  1   2)
20वर्ण,4 चरण,यति{3,6,11}वर्णों पर,
दो-दो चरण समतुकांत।

सुंदर,  रघुकुल  स्वामी, दुख  सब   हरते उदार हैं।
चाकर,जड़ मति जानौ, बरनहुँ गुन का अपार हैं।।
मैं नित,चरण बुहारूं,अब गति प्रभु जी सुधार दो।
वन्दहुँ,नमन करूँ मैं, कलि अघ जग से उबार दो।।

                                       ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

          ◆दीपिकाशिखा छंद◆

विधान~
[ भगण नगण यगण नगण नगण रगण लघु गुरु]
(211  111  122  111  111  212  1   2)
20वर्ण,4 चरण,यति{3,6,11}वर्णों पर,
दो-दो चरण समतुकांत।

गौरव ,गुरुवर  मेरे, चरणन  रज  दो  कृपा  करौ|
आगर,मम पट खोलो,सब कुछ भय को सदा हरौ|
चंदन,घिस घिस देवा,प्रतिदिन सुमिरौ सुधीर को|
राखहुँ,गुरु हिय दासा, चरणकमल में अधीर को||

~जितेन्द्र चौहान "दिव्य"

🙏🕉🌼 नित्य नमन🌼🕉🙏
🍀🍀🍀🌺🌺🌺🍀🍀🍀

हार रहो मन हरिहि हित, भाँतिक मिलिहहि जीत |
माया तज हरिअहि भजो, लीन   रहो   हरि   प्रीत ||
🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

आज रौ दुस्साहस~
टाळो नीं जी  काम नै, टळै न कारज होय |
आजूँ औ अब ही करो, मनरथ पूरण होय||

🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼🌼

जो भी अब तक हमने दाया, बालाजी |
सत्य  वही  तो  वापस  पाया, बालाजी |
इसीलिए  हो  कथनी - करनी भेद नहीं,
रहो समर्पित  मन  बच काया, बालाजी ||

🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁
©भगत

          ♢राजहंसी छंद♢

विधान~
[नगण रगण रगण लघु गुरु]
(111 212  212  1  2)
11 वर्ण,4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]

अवधनाथ  लीला  अपार है।
सकल   वेद  संसार  सार है।।
नमन मैं करूँ नाथ आपको।
सुमति दीजिये मेट ताप को।।

             ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

           नित्य नमन
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

जय-जय का नित गान हो, जय-जय हो आधार |
जय-जय में हरि लीन प्रिय, जय-जय जगदाधार ||

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

भाया  जै-जै  बोल रे, जै-जै सूँ कल्याण |
जै-जै जीं कै हिय बसे, बीं की जै पैचाण ||

🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀🍀

जय-जय का  उद्घोष  करें नित, बालाजी |
जय-जय  ही  सद्घोष  बने नित, बालाजी |
जय-जय में कल्याण छिपा है जग का ही,
जय-जय से  सद् तोष  करे नित, बालाजी||

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺
© भगत

[9/21, 6:05 AM] भगत गुरु: 🙏🍀🕉  नित्य नमन🕉🍀🙏
🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁🍁

मन   के  हारे   हार  है, मन  के   जीते  जीत|
सदा विजय रहती वहाँ, मन हरि महँ रत प्रीत ||

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸
आज रौ दुस्साहस~
बेगा-बेगा   पग  उठा, टेम  घटे पल  जाय |
काया गळती रोज ही, बीत्यो कदै न आय||

🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸🌸

मोल समय  का  समझो भैया, बालाजी |
समय  बली  बढ़कर  है  भैया, बालाजी |
जो भी समझा मोल अमरता जग पाया,
भूला  समय  मिटा   वह  भैया, बालाजी ||

🌺🌺🌺🌼🌼🌼🌺🌺🌺
©भगत

◆चंचरी छंद◆

विधान-(12,12,12,10 मात्राओं पर यति,
4 चरण,दो-दो चरण समतुकांत,चरणान्त गुरु)

अजा गजा गिद्ध सिद्ध,
   राम  जू   उबार  दये,
       द्रवहुँ  सो  दीनानाथ,भव से उबारिये।
राखौ जू शरण मोहिं,
    आन आसरौ न कोय,
       चरणों में पड़ा दीन,अब तो निहारिये।।
जानौं दीन हीन गति,
   राम जू   सुधार  दई,
       सियानाथ  मोरी गति,तैसइ सुधारिये।
सुनिये  पुकारे "सोम",
   कौशलकिशोर  जू सो,
       नेह को  निमंत्रण है,हिय में पधारिये।।

                               ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

[9/21, 4:36 PM] बिजेन्द्र सिंह सरल: चंचरी छन्द
विधान- 12,12,12,10मात्राओं पर यति चार चरण दो -दो  चरण समतुकान्त, चरणान्त गुरु ।

माँ का दरवार लगा,
भक्तों का भाग जगा,
आयी शेरा वाली,
मेरी माँ दुर्गा ।

आते हैं रोते जो,
धीरज को खोते वो,
झोली भर देती है,
उनकी नवदुर्गा।।

सबसे ही प्यार करे,
पापों का भार हरे,
ऐसी दयाल मेरी,
मात भवानी ।

खुशियाँ ही देती है,
विपदा हर लेती है,
पापी को बन जाती,
काल निशानी ।।

बिजेन्द्र सिंह सरल

             अरसात सवैया

शिल्प~{भगण[(211×7]+रगण(212)}

हे शिवशंकर  त्रास  नसावन,
                  दीन अधीन सदैव पुकारते।
आस लगाय खड़े कबसे दर,
               कारन कौन न नाथ निहारते।।
आप सुधार दई सबकी गति,
           मोरि न क्यों गति आप सुधारते।
पार किये भवसागर से खल,
            "सोम"पुकारत क्यों न उबारते।।

                         
                           ~शैलेन्द्र खरे"सोम"

       ♧राधारमण छंद♧

विधान~
[नगण नगण मगण सगण]
(111  111  222  112)
12 वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

रघुवर  सम  प्यारा  नाम  नहीं।
बिन  सुमिरन के  आराम नहीं।।
अब चित धरिकै नित्यै भजिये।
कलिमल जगती माया तजिये।।

                 ~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

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तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य