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घन घन घनाक्षरी

(1)डमरू घनाक्षरी

चल अब झटपट ,मटकत भटकत,
तन मन तड़पत,सजन सनम गम।

जन भल कर हल,मचलत पल पल,
टहलत दल बल,हरण दमन तम।

महक चहक गल,सकल बहल चल,
अब हर अटकल,शरण वरण मम।

नयन शयन भज,सकल नमन तज,
गरल पहल बज,वचन सहन दम।

(2)मनहरण घनाक्षरी

मन में विचार भरो, सपने साकार करो, चाहत है हृदय में, प्रेम भी जगाइऐ।
     
तन से सुकर्म करो, एकता के भाव भरो, प्रभु के आदर्शो का, गुण गान गाइऐ।

कोध्र मोह लोभ हरो,चरित्र से ओज भरो, स्वार्थ मद त्याग कर,नेह भी बनाइऐ।

राष्ट्र की रक्षा करों, सत्य पथ पर चलो, जनहित का सकल,धर्म अपनाइऐ।

(3)मनहरण

देश द्रोही को उखाड़, अनाचार को सुधार,
देशहित सदाचार,मान देना चाहिए।

जन्म भूमि जननी का,गुरु ज्ञान करनी का,
भाव प्रेम कथनी का,ज्ञान देना चाहिए।

धोखेबाज नेताओ के, धनपशु मानवों के,
देशद्रोहियों के हर,प्रान लेना चाहिए।

घुसपैठ घूसखोरी, पूँजीपति व्यभिचारी,
बेईमानी पर जरा,ध्यान देना चाहिए।

  (4) डमरू घनाक्षरी

चल अब झटपट,लटक अटक मत,
चटक मटक कर,धर पग जम जम।

भटकत जन दल,तमस करत हल,
सकल शरण भज, हरण जगत तम।

मचलत मन बल,टहलत वन  वन,
सकल शरण सत,शरण नमन हम।

यजन पहल कर,चमक महक भर,
सरल वचन वद, बहत भजन मम।

   (5)कृपाण घनाक्षरी

मन की नवल नीति,प्रेम की प्रबल प्रीति,
तन की तरुण रीति,जीवन बने कमाल।

भक्ति भरे भाव संग,मधुर  राग  के  रंग,
जीत लेगें सब जंग,जग रीत का धमाल।।

मीत की सकल प्रीत,सत्य की अटल जीत,
ज्ञान गंगा है सुभीत,मिटा दो सारे मलाल।

मिलन की बरसात,सुंदर  सुखद  रात,
नयना सोहत भाल,मोहक अधर लाल।।

(6)हरिहरण घनाक्षरी

निज दोष  हर  कर, क्रोध लोभ जर कर,
जीवन  सँवर  कर, भक्ति भाव भर कर।
  
ज्ञान ध्यान गढ़ कर,भक्ति  पथ बढ़  कर,
सुर  ताल  मढ़ कर,  धर्म वेद पढ़ कर।
  
नेह भाव मान कर, जन अभिमान कर,
तन मन  दान  कर, गुरु  पहचान कर।

प्रेम पथ काम कर,जग हित नाम कर,
कर्म अविराम कर,सनातन धाम कर।

   (7)जलहरण

जय जय श्री गणेश, जय हो प्रथम देव,
वंदन अभिनन्दन,जय मंगल दायक।

उमा महादेव सुत,बल बुद्धि विद्या देव,
जीवन कष्ट हरते, जय जय विनायक।

गजानन  गणपति ,तिलक भाल सोहत
सुंदर मन मोहत, शंकर सुत लायक।

गणेश  शक्ति  नमन,सदा विघ्न विनाशक,
मोदक भोग चढ़त,सिद्धि देव नायक।

   (8)मनहरण घनाक्षरी

माँ गायत्री की महिमा,सदा हमें  हर्षाती  है,
हर के सारे कष्टों को, रूठे  को  मनाती हैं।

आदि शक्ति का पूजन, वेदमाता  का  वंदन,
वात्सल्य प्रेम  देकर,माता अपनाती है।

गायत्री मंत्र जपिये,जनहित ही तपिये,
दोष पाप काटकर,मनुज बनाती है।

कर्म धर्म साधकर,प्रेम पथ साजकर,
साधना सन्मार्ग खुशी  ,सब सुख लाती है।

      (9)मनहरण

राष्ट्र हित जागरण,सुरक्षित आवरण,
लुभावने वादे नहीं,समाधान चाहिए।

नेताओं में देशप्रेम,सद्विचार सद्भावना,
मजबूत  इरादों से,भक्ति दान चाहिए।

निज स्वार्थ छोड़कर ,समाज हित के लिए,
समर्पित भावना से,राष्ट्र शान चाहिए।

सोई आत्मा हिलाकर,मन  चित जगाकर,
करें अंत अनाचार,हमें  ज्ञान चाहिए।

   (10)मनहरण

सूरत खूब सोहत,मधुर मस्त मूरत,
मन मोर मचलत,मंगल बहार है।

नयना हिरणी सम,काजल जियरा मम,
ओंठ कमल पाखुरी,हृदय में भार है।

गर्दन सम गागरी, हँसी लगत नागरी,
कमरिया लचकत, चढ़त खुमार है।

तन  मन  तड़पत,धक धक धड़कत,
मिलन को तरसत,तेरा  इंतजार  है।

(11) मनहरण घनाक्षरी छंद (कवित्त)

मद मस्त पुरवाई, तरुण सी अँगड़ाई,
मिलन मिलत मोर, दिल को लुभात है।

घुमड़ रहें बादर, जैसे ढ़की चादर
कड़कत बिजुरिया, मन घबरात है।

बूँद बूँद चमकन,भीगें मेरा तन मन,
सावन की बारिश में,मनवा लजात है।

भीनी भीनी सी महक,भाव भरी हो ललक,
सनम के आगोश में, मिलन सुहात है। 

✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

Comments

  1. जिंदा बाद सर

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  2. नमस्कार दोस्तों
    बसंत का पर्व आने वाला है मेरा एक ही छंद थोडे़ थोडे़ अंतर लिये

    कोयल पपीहा मोर ,बागन में करे शोर ,
    भोर का मुकुट धार ,आई अमराई है ।

    चहक रहे विहंग ,चहूँ ओर पुष्प गंध ,
    डाल डाल पे ली कलियों ने अंगड़ाई है |

    मधुप भी भिन्न भिन्न ,राग ले पराग गाये ,
    तितली भी अनुराग से यूं इतराई है ।

    वसुधा की दुल्हन जैसी छबि देख कर ,
    ऋतुराज की भी रति नारी शरमाई है ।

    कोयल पपीहा मोर,जोर जोर करें शोर
    भोर की भी हुई भोर, देखो अमराई है।

    उड़ते विहंग नभ,चहुँदिश फैली गंध,
    डाल डाल कलिका, लेती अँगड़ाई है

    मधुप पराग संग,मधु मधु राग गाये,
    शोरगुल ऐसा लगे,बजे शहनाई है।

    बनी वसुधा दुल्हन,आया है बसंत जो,
    कामदेव की प्रिया वो, रति शरमाई है।।

    कवि भानु शर्मा रंज
    धौलपुर राजस्थान
    7374060400

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