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साहित्य समाज का दर्पण

  साहित्य समाज का दर्पण

बदल सकते हैं हम मन की तस्वीर को,
रोक सकते है समाज के व्यभिचार को,
सद्गुण सद्विचार है दर्पण इन्सान का,
बदलें साहित्य से मनुज के व्यवहार को। 

व्यक्तित्व सँवारकर बदलें मन विकार को,
बदलें हम चल पड़े परिवार के निर्माण को,
मेल हो मिलाप हो विचारों की भाप हो,
संस्कार परिवर्तन से रोक दें संताप को

नीति में रणनीति में कौशल जगे रीति में,
कला में विज्ञान में साहित्य के संसार में,
बालक भी सीखे कविता से पाठ को,
पट खोल मन दर्पण शक्ति रक्त संचार में। 

दर्पण न दिखाता मन के विचार को,
मन भी न बताता हमारे आगार को,
लगें दिल में साहित्य का दर्पण,
तब हटा पायें आत्मा के गुबार को ।

हिन्द की हिन्द भाषा बोलो जी जान से,
बदलों पुराने दर्पण जीओ अब शान से,
रच दो दिखा दो दर्पण अब समाज को,
युग परिवर्तन सम्भव सृजन से गान से। 

खुद को बदल लें तब देखें अनाचार को,
दर्पण न दिखाता हृदय के भार को,
धुंधली सी परत विकृत मानसिकता,
दर्पण साहित्य का दिखा दों संसार को।

     ©   डाॅ• राहुल शुक्ल 'साहिल'

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