हिन्दी वर्णमाला के कुल १३ (तेरह) स्वरों को ९ (नौ ) भागों में वर्गीकृत किया गया है~
१. संख्या के आधार पर
२. मात्राकाल के आधार पर
३. जाति के आधार पर
४. उत्पत्ति\बनावट के आधार पर
५. ओष्ठाकार के आधार पर
६. संधि के आधार पर
७. मुख स्थान\जिह्वा के आधार पर
८. अनुनासिकता के आधार पर
९. मुखाकृति के आधार पर
पहला संख्या के आधार पर स्वर के प्रकार
१. मानक\शुद्ध स्वर
२. प्रचलित स्वर\स्वर
३. प्रायोगिक स्वर
४. कुल स्वर\वर्णामाला में कुल स्वर
५. मूल स्वर (आगत\संस्कृत से आए)
६. मूल स्वर (हिन्दी में अंगीकृत)
व्याख्या~
१. मानक\शुद्ध स्वर~ जो स्वर परिभाषा के अनुसार सटीक हैं अर्थात जो वाकई में स्वर ही हैं।
ये १० (दस) हैं~
अ-आ, इ-ई, उ-ऊ, ए-ऐ, ओ-औ
(दो-दो के समूह से ही उच्चारण अन्तर निकलता है )
मानक स्वर १० (दस) हैं , अर्थात ऋ, अं , अ: , इन तीनों को छोड़कर शेष सभी ,
अब प्रश्न है कि ~ ऋ, अं , अ: - को शुद्ध या मानक क्यों नहीं माना गया ?
तो इसका कारण है , यह 👇
स्वर, निर्बाध उच्चारित होते हैं , ठीक है न ✅
और ऋ, अं, अ: ~का उच्चारण 'सबाध' होता है, निर्बाध नहीं |
जो सबाध उच्चारित होते हैं, वे 'व्यंजन' कहलाते हैं |
व्यंजन की बनावट = 1 -हल् व्यजन\अक्षर\ध्वनि+ 1- स्वर
चूँकि *हिन्दी की पहली ही विशेषता है~ जैसा बोला जाए वैसा लिखा जाए*
और
इसके आधार पर *ऋ* का हिन्दी में उच्चारण *रि* के रूप में होता है ~
यानि कि ~ *र्* + इ
| |
हल् व्यंजन. + स्वर =व्यंजन हुआ कि नहीं 😊
(परन्तु *ृ* , मात्रा में प्रयुक्त होने से व हिन्दी में *ऋ* से अपना कोई शब्द न बनने से इसे स्वरों में ले लिया जाता है, पर मानक या शुद्ध स्वर तो नहीं ही माना जाता |)
अं ~
यानि कि ~ अ + ( *ं* )
| अनुस्वार (जो कि हल् पंचम वर्ण होता है, तो व्यंजन हुआ)
तो स्वर+हल् व्यंजन, होने से पूर्ण व्यंजन हुआ कि नहीं
इसी प्रकार ~ अ:
यानि कि ~ अ. +. :
| |
स्वर. (विसर्ग का उच्चारण *ह्* , हल् व्यंजन)
तो यह भी, स्वर+हल् व्यंजन= पूर्ण व्यंजन हुआ कि नहीं
🙏 अत: ~ऋ, अं, अ:, मानक या शुद्ध स्वर नहीं है|
अं ~
यानि कि ~ अ + ( *ं* )
| अनुस्वार (जो कि हल् पंचम वर्ण होता है, तो व्यंजन हुआ)
तो स्वर+हल् व्यंजन, होने से पूर्ण व्यंजन हुआ कि नहीं
इसी प्रकार ~ अ:
यानि कि ~ अ. +. :
| |
स्वर. (विसर्ग का उच्चारण *ह्* , हल् व्यंजन)
तो यह भी, स्वर+हल् व्यंजन= पूर्ण व्यंजन हुआ कि नहीं
🙏 अत: ~ऋ, अं, अ:, मानक या शुद्ध स्वर नहीं है|
*अब दूसरा~ प्रचलित स्वर~*
(जो स्वर संस्कृत से हिन्दी में चलते है या यूँ कहें कि हिन्दी में गिन लेते हैं |)
ये है~ ११ (ग्यारह)= १० (दस) मानक + ऋ (चलन में तो है ही)
*तीसरा~ प्रायोगिक स्वर*
(जिनका प्रयोग हिन्दी के अपने शब्द बनाने में होता है |)
ये हैं~ १० (दस) मानक + अं+अ:
🙏 जय-जय
Comments
Post a Comment