चिन्ता/चिन्तन

"चिन्ता नही चिन्तन किजिए"

दुख की चिन्ता छोड़ो,
आनन्द से नाता जोड़ो।

सुख - दुख तो आए जाए,
चिन्तन को बदला जाए।

भौतिक सुख की क्या चिन्ता,
कम में भी काम है बनता।

दुनिया में बहुत दुखी है,
सन्तोषी परम सुखी है।

चिन्तन समाज का करिये,
जन सेवा  कर्म ही करिये।

चिन्ता क्यूँ करते हो भाई,
शिव  चिन्तन  है प्रभुताई।

डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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