सियासत
झूठ भी सच में बदल जाता सियासत में,
समय जल्दी बदल जाता सियासत में,
त्रस्त जनता सियासती दाँव पेचों से,
जज्बातों से होता खिलवाड़ सियासत में।
राजस्व का है बड़ा खेला सियासत में,
भ्रष्टता के खेल की जड़ है सियासत में,
बदल डालों सोच को सद्भावना जागे,
स्वर्ग की कल्पना सच हो सियासत में।
उम्मीदों का बन गया पुल सियासत में,
रोजी की आशा का गुल सियासत में,
भटकता युवा राह जुर्म की पकड़े,
अपराधी भी पहुँच रहे कुल सियासत में।
सैनिकों की बोली भी लगाते सियासत में,
किसान भी दाँव चढ़ जाते सियासत में,
बदल डाले नवयुवक समाज को,
अधर में अटका भारत सियासत में।
✍ डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
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