तरुण सक्षम

बेचारा पति

" सच कहता हूँ प्राणप्रिये ! मै तुझसे जीत न पाऊंगा |

तू अपवाद है मै विवाद हूँ , किस विधि बात बताऊंगा ||

जो जो तूने बोला है , वो बिना शर्त स्वीकार मुझे |

मेरी दुविधा की हर विधा पे, तेरा ही अधिकार प्रिये ||

सावन की बेला तेरी है , बारिश की बूंदे तेरी हैं |

ये अम्बर भी तेरा है , ये धरती भी तेरी है ||

मै प्रबल संकोच विचारक हूँ , तेरे निर्देशों का मै पालक हूँ |

तू परम बुद्धि त्रिलोचन धारी है , क्यूंकि तू एक नारी है ||

मै मूक रहूँगा कुछ न कहूँगा , समर्पित हैं सारे हथियार प्रिये |

जीवन के हर एक पन्ने पर , स्वीकृत है अपनी हार प्रिये || "

कविराज तरुण सक्षम

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