23 जुलाई 1906 [चन्द्रशेखर आजाद जन्मदिवस पर विशेष]
आजादी का बिगुल बजाने,
चन्द्र शेखर आये थे।
भारत माता के चरणों में,
अपना शीश नवायें थे।
अंग्रेजों को दूर भगाने,
की कसमें भी खाये थे।
आजादी के दिवाने ये,
'आजाद' ही कहलाये थे।
स्वतन्त्रता का झण्डा लेकर,
सबसे आगे आये थे।
मार फिरन्गियों को मुठभेड़ में,
अपनी जान गँवाये थे।
करते हम याद शहीदों को,
जो देश पर जान लुटाये थे।
©डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
आज देश के आजादी आंदोलन की गैर समझौतावादी धारा के महान क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जन्म दिवस है। उन्होने अपने लिये कठिन, निर्मम लेकिन सटीक रास्ता चुना था क्योंकि चंद्रशेखर आजाद व उनके साथियों ने बहुत कम उम्र में ही ये समझ लिया था कि मात्र अनुनय विनय से ही आजादी हाँसिल नही की जा सकती। साथ ही मात्र देश को अंग्रेजों से मुक्त करने से ही आम लोगों को शोषण से मुक्ति नही मिलेगी, अग्रेजी साम्राज्यवाद का स्थान भारतीय साम्राज्यवाद लेगा और ये देशी विदेशी कम्पनियां मिलकर आम मजदूर किसानों व आम आदमी का शोषण करेगें। उन्होने समझ लिया था कि अगर मानव का मानव पर शोषण रोकना है तो इस देश में सोवियत रुस की तरह मजदूर क्रांति,समाजवादी क्रांति की जरूरत होगी। इसी आशय से उन्होने अपने दल के नाम में समाजवादी शब्द जोड़ा था। HSRA ( हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएशन ) जिसके सर्वमान्य नेता थे चंद्रशेखर आजाद। आजादी आंदोलन की गैर समझौतावादी धारा का मायने ही था त्याग बलिदान कठोर अनुशासन और अदम्य साहस के साथ जीवन का तीव्र संघर्ष और सही वैज्ञानिक चिंतन। वो धारा जिसमें नाम नही था सम्मान नही था कोई जानता नही था कई कई दिनों तक खाना नही मिल पाता था, पहनने के लिये साबुत कपड़े तक नही होते थे,सिर पर छत नही,देश के लिये देश के कोने कोने में क्रान्ति को संगठित करते हुये जहाँ रात हुई वहीं सो गये । आजाद और उनके साथियों ने कई दिन बगैर खाना खाये कई रातें बगैर सोये काटी। उस दौर में इन नौजवानों के सामने एक और रास्ता भी था, वो था समझौतावादी धारा में शामिल होने का रास्ता, जिसमें गाँधी जी जैसे दिग्गज नेता थे ,जिसमें नाम भी था, सम्मान भी था।
ठीक उसी समय कुछ लोग मात्र हिंदुओं को संगठित करना जरुरी समझते थे तो कुछ लोग मुस्लिम को संगठित करना अनिवार्य मानते थे। देशी विदेशी साम्राज्यवाद ने *फूट डालो राज करो* की नीति अपनाते हुये, बखूबी इनका इस्तेमाल किया और जानबूझकर इन आंदोलनों को हवा दी, लेकिन जो रास्ता चंद्रशेखर आजाद व उनके साथियों ने चुना था अंग्रेजों को असली भय इन लोगों से ही था।इसी कारण उस दौर में इन्हें आतंकवादी कहते हुए एक एककर फाँसी पर चढ़ा दिया गया। इन लोगों को कठोर यातनायें दी गईं। बाबजूद इसके इन महान क्रांतिकारियों ने संघर्ष का रास्ता नही छोड़ा।
आज नौजवानों को तय करना है कि वे कौन सा रास्ता चुनेंगे??
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