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🌺ओउम् नमस्ते ओ3म्🌺
✡विनय✡
ओउ म् मानो मौषधीर्हिँसीर्धाम्नोः
धाम्नो राजंस्ततो वरुण नो मुंच।यदाहुरघ्न्याऽइतिवरुणेति शपामहे
तो वरुण नो मुंच।सुमित्रिया नऽआपऽओषधयः सन्तु दुर्मित्रियास्तस्मै सन्तु योस्मान् द्वेष्टि यंत्र च वयं द्विष्मः।।यजुर्वेद 6/22
🚩पद्यानुवाद
हे राजन्! ऐसा प्रबंध कर
सुलभ हो सबको नीर।
जल केलिए न कोई भी हो
दुखिया और अधीर।।
प्रचुर भरी होवें औषधियां
सब हों स्वस्थ नीरोग ।
ऐसे नियम बनाओ जिस पर
सबको चलते हों लोग ।।
किसी तरह का होने पाए
कहीं नहीं अतिवाद।
जो अवध्य हैं उनकी रक्षा
होवे बिना विवाद।
जल औषधियां सर्व सुलभ हों
इतनी हो भरमार।
सबके हैं दुर्मित्र सदृश जो
उनसे हमें निवार।।
जागेश्वरप्रसादनिर्मल
अमरदीप कुलश्रेष्ठ भवन से
कलकत्ता (पश्चिम बंगाल )
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