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बासुदेव जी

"मेघ जीवन"

किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।
नवनीत मेघ तब ऊपर आता, नवजीवन देने भूतल को ।

था कतरा कतरा सा पहले, धुनी तूल सा पूर्ण धवल ।
घनीभूत जुड़ जुड़ के हुआ तो, धरा काली घटा का रूप प्रबल ।
दमका तड़ित प्रचंड महा, चला चीर अम्बर के पटल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

चलना उसका काम सदा ही, रुकने का कभी नाम नहीं ।
पर्वत नगर डगर लांघे, पीछे मुड़ने का काम नहीं ।
उमड़ घुमड़ मंडराता डोले, गरजा पूरे नभ मण्डल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

आशाभरे नयन कृषकों के, बाँध टकटकी तुझे देखते ।
मोर चकोर पपीहा प्यारे, स्वागत में किलकारी भरते ।
ग्राम बाल तुझे देख देख कर, नाचे बजा बजा करतल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

परदेश बसे प्रीतम जिनके, एक टीस हृदय में तु भरता ।
गिनके जो काटे दिन उनको, पिया मिलन को आतुर करता ।
विरहणियों का मूक संदेशा, लेजा शीतल करता अनल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

कृषकों के प्यासे नयन परख, सूखी सरिता सर कूप देख ।
विहगों का व्याकुल कलरव सुन, प्यासी धरती की ज्वाला देख ।
हुआ द्रवित परम महा दानी, बूंद बूंद बरसा कर जल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

फलीभूत की कृषक कामना, खेतों में बरसा वारि सुधासम ।
वापी कूप तडागों को भर, हर्षाया धरणी का जन मन ।
मिटा मेघ इस परोपकार में, त्याग तुच्छ जीवन चंचल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

महाकवि के मेघ धन्य तुम, तुझसा नहीं कोई बड़भागी ।
परोपकार के लिए ही पनपा, तुझसे बड़ा नहीं कोई त्यागी ।
सफल उन्ही का जीवन जग में, पीते जो परहित में गरल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

देशवासियों तुम अपनाओ, मेघ के जैसा जीवन पावन ।
करो त्याग से देश की सेवा, बन जाओ जन जन के भावन ।
'नमन' करे सारा जग फिर से, जगद्गुरु के अक्षय बल को ।
किरणों की मथनी से सूरज, मथता जब सागर जल को ।

बासुदेव अग्रवाल 'नमन'
तिनसुकिया

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