Skip to main content

पर्यावरण दोहे भगत जी

      पर्यावरण
(५९ दोहे😊)
🌼🌼🌼🌼🌼

१.
परि है जो यह आवरण, प्रकृति रूप चितवान |
जगत कहत पर्यावरण, या तै जीवन धान ||
२.
पर्यावरण सुधारि नर, जो सुख जीवनु चाह |
बिनु इसके साँसे नहीं, न कुछ सुखनिअ उछाह ||
३.
भू नभ अरु भू-गर्भ सब, एक फलक बहु रूप |
छविअ रहे पर्यावरण, सुख सह दुख भव कूप ||
४.
ईश इहाँ पर्यावरण, साँच जु जानहुँ आप |
निज हद लाँघत भूलि नहँ, मेटक बिधि भू ताप ||
५.
क्षिति जल पावक गगन अरु, युत समीर सब भाँति |
पंचतत्व पर्यावरण, हेतुक जगतिहि पाँति ||
६.
सार प्रकृतिहि मर्म जथा, श्वाँस मूल तन प्राण |
इहहि भौम पर्यावरण, कारक इक कल्याण ||
७.
चारि वेद षट् शास्त्र महँ, सार रूप स्वीकार |
कथा प्रसंगहि मूल गहुँ, पर्यावरण विचार ||
८.
रे नर क्यूँ कर काटता, आपुहि जीवन डोर |
पर्यावरण हि प्राण हम, जग संध्या अरु भोर ||
९.
निज स्वारथ मानव करे, पर्यावरण विनाश |
बिनु इसके जीवन कहाँ, परिणत काया लाश ||
१०.
रे मूरख मतिमंद नर, पर्यावरण सुधार |
बढ़त प्रदूषण होत जग, रोग शोक बौछार ||
११.
पर्यावरण उजाड़ता, सो नर असुर समान |
निज कर्मन गति गर्त रत, तामस तन पहचान ||
१२.
पर्यावरण विनाश का, कैसा भयकर रूप |
थावर जंगम एकु नहँ, अखिल नाश भू यूप ||
१३.
पंचभूतमय व्यापितहि, सकल प्रकृतिहिक बीच |
गन्ध स्पर्श आदिक सहित, पर्यावरण सुसींच ||
१४.
अखिल विश्व पीड़ित महा, पर्यावरण दुकाल |
समाधान खोजत रहा, टारन कौ हर हाल ||
१५.
धूप धुआँ अरु धुंध सब, शीत घाम जलधार |
कृमि कीट जड़ जीव मनुज, पर्यावरण अधार ||
१६.
पाँच जून प्रतिवर्ष ही, पर्यावरण हि हेतु |
इहि मिस रक्षक बन रहे, दिवस नियत सम सेतु ||
१७.
अति दूषित पर्यावरण, कारण हम तुम आप |
अबहुँ न संभव समझ मति, भोगहि सब अति पाप ||
१८.
विकट बाध सम्मुख रही, पर्यावरण अशुद्ध |
खान पान ब्यौहार सब, कैसे होवहि शुद्ध ||
१९.
अति दोहन प्रकृतिहि रहा, संहारक जड़ जीव |
तदपि न स्वारथ मनुज इहँ, ठाम ठौर सुख सींव ||
२०.
जल थल नभ अरु सकल ठह, पुरब भाँति नहँ लीक |
तब किमि कर मन आस अब, सहजहि होहुँ अलीक ||
२१.
जनसंख्या वर्धन रहा, पर्यावरण बिगाड़ |
नदी पर्वत बन रीतिअ, मिलहुँ न झाड़ झझाड़ ||
२२.
अति औद्योगिक चाह अपि, पर्यावरण हि बाध |
हतकरघा कारज घटे, अब किमि होहुँ अबाध ||
२३.
स्वारथ वश मानव रहा,प्रकृतिहि गुण सब लील |
कहाँ प्रकृति पर्यावरण, कहाँ रहा सत शील ||
२४.
अति उद्योगित हो रहा, मानव तज सब शूल |
इहि फल अब पर्यावरण, कारक कष्ट समूल ||
२५.
जो करते संहार नित, खग मृग नाहक काज |
सो मूरख जगतिहि रहे, कारक कष्ट समाज ||
२६.
भौम गगन पाताल सब, दूषित आज अपार |
रक्षित कर पर्यावरण, जो चाहत सुख सार ||
२७.
वेद शास्त्र का मूल यह, प्रकृति आनंद मूल |
इहँ बिपरित ब्यौहार तै, जीवन पथ बहु शूल ||
२८.
शिव जल वाहक शीश निज, देते यह सन्देश |
जल है तो जीवन सरल, पर्यावरण विशेष ||
२९.
कोटि देव तैतीस सब, पर्यावरण हि मूल |
कहते संकेतित रहे, इहँ बिनु जीवन धूल ||
३०.
जीवन के अस्तित्व का, मूल एक नर जान |
पर्यावरण संभाल रख, प्रकृति कोप पहचान ||
३१.
अति दोहन भू जल तथा, जनसंख्या विस्तार |
नाशक पर्यावरण यह, कारण जीवन क्षार ||
३२.
प्रकृति कोप कारण रहा, पर्यावरण विनाश |
इहँ के दुष्परिणाम सब, टूट रही नित आस ||
३३.
वृक्षारोपण कर मनुज, पर्यावरण सुधार |
हरियाली कारक रही, दूषण प्रकृति निवार ||
३४.
उचित विदोहन खनिज जब, प्रकृति देत भरपूर |
रक्षित पर्यावरण तब, सुख आरोगति पूर ||
३५.
जनसंख्या अंकुश तथा, वृक्षारोपण आज |
पर्यावरण सुधारकी, रक्षक जीव समाज ||
३६.
पृथ्वी सम्मेलन रहा, पर्यावरण विचार |
समाधान ढूँढत तहाँ, किहि बिधि होय सुधार ||
३७.
भोग पिपासा ही रही, पर्यावरण बिगाड़ |
अब भी जो संभले नहि, पृथ्वी होय उजाड़ ||
३८.
पंचतत्व समुचित जहाँ, तहाँ सुमंगल भाँति |
पर्यावरण हि हरत सब, जग जीवनु आराति ||
३९.
जागरूक जन जन हुवै, निज पर हेत बिचार |
तबहि नीक पर्यावरण, संभव होत सुधार ||
४०.
अखिल भुवन महँ भौम बस, जीवन कारक तत्व |
जो दूषित पर्यावरण, मिटहि प्राण सब सत्व ||
४१.
वृक्ष रोपकर सहज हम, पर्यावरण बचाय |
सो जन मन समुचित बिधिहि, रक्षण मर्म बुझाय ||
४२.
परिशोधन मलमूत्र का, उचित रीति परिहार |
पर्यावरण प्रदूषण हि, इह अपि होत सुधार ||
४३.
सुन्दर धरती तब रहे, नर वश जब शुभ कार |
तजिअ रहे स्वारथ सकल, पर्यावरण पुकार ||
४४.
पवन प्रदूषित जल तथा, भौम भूरि धुनि कोर |
रज कण तक विषयुक्त सब, पर्यावरण हि छोर ||
४५.
जल मल पवन जु रज सहित, शुद्ध होहि भू माँहि |
पर्यावरण तु तबहि नर, हो विशुद्ध मनु जाँहि ||
४६.
प्रकृति रूप बहुभाँति इहँ, पर्यावरण हि जान |
इहि राखे सब रहहि भुव, निज करमहि पहचान ||
४७.
निज स्वारथ भूलत रहा, मानव प्रकृतिहि मूल |
बिनु राखे पर्यावरण, मिटिहहि जगत समूल ||
४८.
जो नासहि पर्यावरण, भोगहि पीढ़िहि शाप |
सो सुधार नर रत रहो, सुकृत सार सबु पाप ||
४९.
जीवन तो संभव कहाँ, बिनु प्रकृतिहि अवदान |
सो रक्षण पर्यावरण, चर्या काज महान ||
५०.
खान पान परिधान सब, श्रवण कथन इक सार |
बिनु राखे पर्यावरण, किमि न होहि बीमार ||
५१.
पर्यावरण हि बल जगत, आप और हम साथ |
बिनु इसके संभव कहाँ, जीवन इहँ अपि हाथ ||
५२.
शिक्षा महँ पर्यावरण, हो विशेष अवदान |
बिनु इसके हम तुम नहीं, जीव जगत बिनु जान ||
५३.
प्रकृति आपदा हो रही, पर्यावरण प्रभाव |
हम नित स्वारथ कर रहे, प्रकृति रूप बदलाव ||
५४.
सकल प्रदूषण रूप है, पर्यावरण असार |
दूषित मानव मन रहा, समुझत नहँ ततसार ||
५५.
जैव विविधता ह्रास भी, पर्यावरण हि जान |
हाल न बदले निकट तब, चित्रहि तै पहचान ||
५६.
असि अरु छह उन्नीस पर, व्यापक रचा विधान |
रक्षण पर्यावरण का, भारत देश महान ||
५७.
संस्कृति अपनी कर रही, कब से चिन्तन सोच |
हम मूरख दोहन करे, निश्चित निशिचर पोच ||
५८.
तरु नभ जल थल गिरि सहित, पूजित प्रकृति विशेष |
पर्यावरण हि पूजते, संस्कृति यह गुण शेष ||
५९.
पर्यावरण सुधार कर, कर निज पर उपकार |
बिनु इसके  संभव  कहाँ, जीव जगत शृंगार ||
===============================
©भगत 

Comments

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य