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हँसमुख जी एवं भगत गुरु संवाद

[19/07 23:26] हँसमुख आर्यावर्ती: शब्दकोश  में यही है

पुनः + अवलोकन
= पुनर + अवलोकन
         र् +अ+अ= रा
पुनरावलोकन
[19/07 23:28] सरस जियो: पुनः अवलोकन
ः का र्
पुन र् +अ वलोकन
पिन र वलोकन
[19/07 23:29] सरस जियो: पुन 🖕
[19/07 23:29] हँसमुख आर्यावर्ती: दादा  मैं  पूर्णतः स्पष्ट  हूँ।🙏
[19/07 23:34] Rahul Shukla: विसर्ग संधि

(5)  पाचवाँ नियम ~ ~

अंतः अरु पुनः के बाद य, र, ल, व या स्वर आए।
या वर्ण वर्ग का तीन से पाँच हो, तो विसर्ग हल र् हो जाए।

उदाहरण ~~~

१. अन्त:+ इक्ष
          |
          र्
=अन्तरिक्ष

२. पुन:+ विवाह
        |
       र्
=पुनर्विवाह

अन्य उदाहरण ~ संधि विच्छेद

१. अन्तर्राष्ट्रीय = अन्तः राष्ट्रीय
२. अन्तर्देशीय = अन्तः देशीय
. अन्तर्जाल = अन्तः + जाल
४. पुनर्निर्माण = पुनः + निर्माण
५. पुनर्भाव = पुनः + भाव
६. पुनर्मतदान = पुनः + मतदान

अन्य उदाहरण ~ संधि पद ~

१. अन्त:+ धान = अन्तर्धान
२. पुन:+ बलन = पुनर्बलन
३. पुन:+ गमन = पुनर्गमन
४. अन्त:+ मन = अंतर्मन
५. अन्त:+ लीन = अन्तर्लीन
६. पुन:+ गणना = पुनर्गणना
[19/07 23:36] सरस जियो: प्रिय अनुज हँसमुख जी अब क्या कहना है, सप्रमाण 👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻👍🏻💐
[19/07 23:47] हँसमुख आर्यावर्ती: मैं पुनः देखूँगा ।
[20/07 20:25] हँसमुख आर्यावर्ती: कल के काठिन्य प्रकरण के शब्दों को पुनः देखने का आग्रह । हम सही हैं ।

पुनः+ आवृत्ति = पुनरावृत्ति
पुनः+ अवलोकन = पुनरावलोकन 🙏🙏जय जय
और 'झूठ ' ही सही शब्द  है  ।

यदि मैं गलत हूँ तो सप्रमाण बताने का निवेदन 🙏
[20/07 21:06] भगत गुरु: 🙏 मानकता (शब्दकोश) में *झूठ* ही सही रहा है😊
अकिंचन की  असावधानी रही😩

एतदर्थ 🙏 क्षमापना |

परन्तु😊
शेष शब्द अपने स्वरूप में सही थे |
विस्तृत 'साहिल जी' ने कल सूत्रश: रखा है, तदपि ११ बजे बाद या आज के *काठिन्य* पर निवारण 🙏

व्यस्तता से पटलों पर अनुपस्थिति रही, पुन: क्षमापना🙏

🙏 जय-जय
[21/07 15:27] हँसमुख आर्यावर्ती: काठिन्य प्रकरण में भाषित    शब्द  " पुनरावलोकन " ही सही है ।

स्पष्टीकरण =
पुनः+ अवलोकन = पुनस्+ अवलोकन *सन्धि*(विसर्जनीयस्य सः)
पुनस्+ अवलोकन = पुनर+अवलोकन (सशजुषोरु:)

पुनर+अवलोकन = पुनरावलोकन *ढ्रलोपेपूर्वस्यदीर्घोऽणः*

शुद्ध  शब्द पुनरावलोकन 
जय जय 🙏
[21/07 16:33] सरस जियो: पुनस्
तो
पुनर्
होगा
न कि
पुनर
😀
[21/07 16:35] सरस जियो: खरवसानयोर्विसर्जनीयस्य सः से विसर्ग 😊👌🏼😊
[21/07 17:01] भगत गुरु: 🙏 प्रियवर,
कुछ भी कहने से पहले कुछ बातें समझनी जरुरी है😊

वह यह कि~
हिन्दी व संस्कृत का व्याकरण एक जैसा भले ही हो, पर एक तो नहीं ही है |
हिन्दी ने संस्कृत से बहुत कुछ पैतृक रूप से प्राप्त किया है , लेकिन सब कुछ नहीं |
दूसरी बात कि जो संस्कृत से लिया , वह भी प्राप्ति के बाद हिन्दी ने अपने स्वरूप में ढाला है | अपवादित रूप से ही किंचित स्थानों पर संस्कृत की मान्यता रखी है, वह भी इसलिये कि वहाँ अभी तक हिन्दी ने अपनी व्यवस्था नहीं बनाई है |

अत: हिन्दी पढ़ते-पढ़ाते समय संस्कृत के सूत्र\सिद्धान्त\धारणाएँ\मान्यताएँ और परम्परादि को परे रखना होगा , अन्यथा हिन्दी का अपना अस्तित्व ही नहीं रहेगा |
दूसरी बात कि जब हिन्दी की किसी धारणा या सिद्धान्तादि से शब्द-निर्माण की प्रक्रिया सिद्ध ही न हो सके तो संस्कृत स्वरूप स्वत: मान्य होता है |

आप जानते हैं कि अधिकांश संस्कृत के शब्द (तत्सम) भी हिन्दी में कुछ बदलकर ही प्रयुक्त होते हैं, न कि वैसे के वैसे | विशेषकर *विसर्ग व हलन्त के शब्द* |

अत: संस्कृत को मोह रखते हुये हिन्दी व्याकरण को समझ पाना संभव ही नहीं है |

अब बात *पुनरवलोकन*की~
हिन्दी में *विसर्ग का उपसर्ग स्वरूप में आधा र्* स्वीकार किया गया है ; अत: जहाँ भी विसर्ग से संधि होगी, वहाँ *र्* ही रहेगा |

तो हिन्दी में ~पुन:   +.  अवलोकन
          र्          अ
                र
= *पुनरवलोकन* होगा | जबकि संस्कृत में  *पुनरावलोकन*

ऐसे ही दोनों भाषाों में कई शब्दों में अन्तर है~
जैसे~
अन्त:+राष्ट्रीय (हि०-अन्तर्राष्ट्रीय, सं०- अन्तरराष्ट्रीय)
पितृ+उपदेश (हि०-पित्रुपदेश, सं०-पित्रोपदेश)

ऐसे और भी अगणित उदाहरण हैं, जिन्हें *संधि-प्रकरण* में विस्तार से देखेंगे |
*हम यहाँ 'वर्णमाला' (स्वर-व्यंजन का वर्गीकरण) को मात्र अपने साहित्यिक प्रयोग की दृष्टि से पढ़कर सीधे 'शब्द-निर्माण' (संधि, समासादि) की ओर बढ़ेंगे | क्योंकि पटल पर व्याकरण से हमारा उद्देश्य 'अपने लेखन को उन्नत बनाने में सहयोग' है, न कि किसी प्रकार की 'कक्षोन्न्ति या उपाधि' की कामना |

*अत: किसी भी बिन्दु पर विचलन न लें, बल्कि धैर्य से विषय को हृदयंगम करें | आगे बढ़ते हुये असंख्य धारणाएँ समाप्त होंगी व नूतन का स्थापन भी होगा |*

🙏😊
आपके जिज्ञासु मन व विषय रुचि को साधुवाद !

अकिंचन की बात आप सहित सभी सज्जन समझ रहे होंगे , ऐसी आशा रखता हूँ |

🙏 जय-जय
[21/07 17:03] हँसमुख आर्यावर्ती: क्षमापना 🙏
[21/07 17:07] हँसमुख आर्यावर्ती: दादा  अपने ज्ञान के  अनुसार  जो पता था बताया है लेकिन  मैं पुनः देखूँगा । अभी  सहमत  नहीं हूँ । क्योंकि  मैंने  जो पढ़ा है  उसे आपके सम्मुख  रखा था 🙏शेष   अभिनन्दनीय है  🙏
[21/07 17:08] भगत गुरु: 🙏 क्षमापना क्यों ?

आपने कोई गलती थोड़े ही की है भाई 😊

यह तो सामान्य बात है कि जो आप जानते है, वही बताएँगे | इसमें क्षमापना क्यों ?

जब तक किसी भाषा की यथार्थ स्थिति को नहीं जान सकेंगे, तब तक तो पुरातन मान्यता को प्रधानता देंगे ही |

अन्यथा न लें और हिन्दी को हिन्दी का जिज्ञासु होकर हृदयंगम करें, आनंद होगा |

वैसे भी दो नावों की सवारी का परिणाम "डूबना" ही होता है, अत: हमें हिन्दी के साथ हिन्दी की नाव पर रहकर ही सफर तय करना है; संस्कृत की नाव से हिन्दी के लक्ष्यों की प्राप्ति पूर्णत: हो नहीं सकेगी |

🙏 स्वागत है आपका प्रियवर😊

🙏 जय-जय
[21/07 17:10] भगत गुरु: 🙏 पुन: निवेदन ~  *सभी विद्वज्जन इसे ध्यान से पढ़े और संस्कृत का मोह त्यागकर ही हिन्दी को समझने का प्रयास करेंगे, तो सहजता के साथ अपारानन्द भी होगा |*
🙏 जय-जय
[21/07 17:13] हँसमुख आर्यावर्ती: दादा संस्कृत से ही पढ़ा  है और इससे  मोह भंग मेरे लिए  दुष्कर होगा ।

लेकिन  आपके सुझावों पर अमल  करने का प्रयास  रहेगा ।
जय जय
[21/07 17:20] भगत गुरु: 🙏😊
बिलकुल !

हिन्दी की जननीसंस्कृत है ही और यह गौरव है हिन्दी को कि उसकी माँ देववाणी संस्कृत है |

परन्तु आप यह बताएँ कि ~
१.
माता-पिता की संतान में सारे गुण यथावत ही होते हैं क्या ?
२.
क्या संतान उत्ताराधिकार में प्राप्त हुये में परिवर्तन\परिवर्धन\संशोधन\वर्धन या क्षरण नहीं कर सकती ?
३.
क्या संतान अपना स्वयं का आभामंडल बनाने के लिये प्रयत्न और सफलता प्रप्त नहीं करती ?
४.
क्या संतान पर पैतृकता से बंधे रहने की बाध्यता होती है ?
५.
क्या संतान आगे बढ़ने के लिये समय के साथ नवाचारों का अनुगमन नहीं कर सकती ?

६.
संतान बड़ी होकर भी क्या अपने माता-पिता के पल्लू से ही बंधी रहती है ?
क्या वह अपना संघर्ष अपने दम पर नहीं करती ?

हाँ ! यह अवश्य है कि जब संतान के वश से बाहर होता है , तो वह जड़ों की ओर लौटकर (माता-पिता इत्यादि) उनसे उनकी दृष्टि में उचित समाधान ले लेती है |

यदि उक्त प्रश्नों को उत्तर समझ रहे हैं तो "संस्कृत-हिन्दी" की स्थिति भी समझ रहें होंगे |

🙏 सादर
🙏 जय-जय
[21/07 17:27] भगत गुरु: 🙏 व्यक्ति को समष्टिवादी होना चाहिए, न कि व्यष्टिवादी |

हम जो जानते हैं वह सच हो सकता है; पर केवल वही सच हो , यह गलत है |

🙏 कृपाकर

🙏 जय-जय
[21/07 17:27] हँसमुख आर्यावर्ती: दादा  हिंदी  के व्याकरण  की  वृहद  जानकारी  के  लिए  कौन  सी पुस्तक  उचित  होगी?
[21/07 17:34] भगत गुरु: 🙏 पहले यहाँ पटल पर मन लगाएँ आप , समुचित तर्क करें |

हठ या विशेषज्ञता के दायरे से बाहर आकर नवीनता को अंगीकार करें |

स्वयं से श्रेष्ठ कोई नहीं हो सकता |

जब तक पत्थर में भगवान की छवि को मन , मति व मानस तर्क की कसौटी पर स्वीकार नही कर लेता , तब तक पत्थर भगवान नहीं हो सकता 😊 |

इसी प्रकार जब तक प्राथमिक भ्रम निवारित न होंगे, तब तक पुस्तक सहायक नहीं होगी |

फिर भी आप अपने राज्य की पीएससी द्वारा निर्धारित व्याकरण का अध्ययन करें, तो समीचीन होगा |

दोष सर्वत्र होते हैं🙏 अकिंचन भी इससे बाहर नहीं हो सकता पर, दोषों को चिह्नित कर परिहार किया जाना चाहिए, न कि इस लिये स्वीकार किया जाए कि अमुक विद्वान ने या प्रसिद्ध पुस्तक ने बताया है |

🙏 जय-जय
[21/07 17:36] हँसमुख आर्यावर्ती: दादा  मैंने किसी भी प्रकार की  हठधर्मिता  नहीं की हाँ अल्प  ज्ञान  हमेशा  कष्टकारी  होता है इसलिए  पुस्तक   के  विषय  में कहा था 🙏
[21/07 17:43] भगत गुरु: 😳😳😳

अकिंचन ने आप पर आक्षेप नहीं किया भाई , केवल यह बताने के लिये "हठ" का प्रयोग किया है कि आप अपने ज्ञान के अलावा उपलब्ध जानकारी को भी समझने का यत्न करें कि आखिर कुछ तो बात है कि यह बात हुई |

🙏 अब अकिंचन की क्षमापना 🙏का समय उपस्थित हो आया |

🙏 क्षमा कीजिए ,  न चाहते हुये भी आपको आहत किया 😩

आप सुधि\विज्ञ\जिज्ञासु हैं, यह जानकर इतना कुछ स्पष्ट करने का दुस्साहस किया |

😊😊😊

तदपि प्रियवर, सदैव स्वागत है आपका 🙏

🙏 जय-जय
[21/07 17:44] भगत गुरु: 😊🙏 अकिंचन भी आप सबसे ही सीख रहा है , किसने कहा आपसे कि 'भगत' ज्ञानी है 😄😄😄😄

🙏 हम सब पूरक है, परिपूर्ण नहीं 😊🙏
[21/07 17:59] हँसमुख आर्यावर्ती: दादा  आप श्रेष्ठ  हैं ।
और आपका सम्पूर्ण  अधिकार  है  कि आप अनुज का भ्रम दूर  करें 🙏🙏
[21/07 18:06] भगत गुरु: 😊🙏

भाई, चौदह लोकों में भी कोई श्रेष्ठ नहीं हुआ है "ईश्वर भी नहीं, क्योंकि त्रुटि उससे भी हुई है" |

अकिंचन कल भी शैशव को जी रहा था और आज भी 😊

सेवक हूँ साहित्य का, साहित्यिक जगत का 🙏

मान-सम्मान की कभी अपेक्षा नहीं की  है |

और करूँ भी तो क्यों ?

जल्द ही किसी दिन दुनियां से विदा तय है और वास्तविक गौरव व अकिंचन का मान-सम्मान सब आप लोग ही तो हैं | इसीलिये जो भी थोड़ा - बहुत रखा है पास, सब आपको ही देना है |

किसी के साथ गया भी क्या है आज तक 🙏

🙏 नमन

🙏 जय-जय
[21/07 22:07] भगत गुरु: 🙏 तो कौन कैसे हैं, आइये जानते हैं😊

१. मानक\शुद्ध स्वर~ जो स्वर परिभाषा के अनुसार सटीक हैं अर्थात जो वाकई में स्वर ही हैं 😄

ये १० (दस) हैं~

अ-आ,  इ-ई,   उ-ऊ,   ए-ऐ,   ओ-औ

(दो-दो के समूह से ही उच्चारण अन्तर निकलता है )

🙏
[21/07 22:10] आ• अनीता मिश्रा: अ:को नहीं मानते
[21/07 22:11] हँसमुख आर्यावर्ती: जी नहीं  अः  = अ+ह्
अं=अ+न्
[21/07 22:15] भगत गुरु: 🙏 पूरा विषय समझकर ही संदेह रखो भाई😊

बीच में व्यवधान आता है 🙏
[21/07 22:16] हँसमुख आर्यावर्ती: दादा माफ कीजिए । हमने स्पष्ट  किया है कोई संदेह  नहीं रखा है।सादर
[21/07 22:16] भगत गुरु: 🙏 अभी बताया जाना है कि *अं, अ: व ऋ* स्वर क्यों नहीं और व्यंजन क्यों है 😊

🙏 प्रतीक्षा करें तो सही😄
[21/07 22:19] हँसमुख आर्यावर्ती: पूरा पढ़े सादर किसके लिए कहा गया है
[21/07 22:21] भगत गुरु: 😊 आप समझाएँ 🙏

यहाँ तो आपका दूसरा *स्वर विच्छेद* (अ+न्=अं) भी गलत है और *जी नहीं* से क्या समझें भाई🙏
[21/07 22:25] हँसमुख आर्यावर्ती: अं को उच्चारित  करते समय ...अ के साथ ड़  का तथा अः को अ के साथ ह् का उच्चारण  प्रतीत  होता है ।
[21/07 22:36] भगत गुरु: 🙏 ऐसा हो सकता है आप समझते हों या आपको समझाया ही यही गया हो  , परन्तु भाई *अनुस्वार ( *ं* ) तो हल् पंचम वर्ण होता है न |
अनुस्वार को केवल ड़\ङ ही मानना तो सही नहीं है 😊

अगर बुरा न लगे तो कहना चाहूँगा कि आप पहले पूरे विषय को ध्यान से समझें | फिर दिन में आज की तरह प्रश्न करें | अकिंचन सभी समाधान करने को तत्पर है |

*परन्तु आज दिन में कही गईं "हिन्दी-संस्कृत विषयक बातें यदि नहीं समझ सके तो शायद ही आप किसी समाधान को स्वीकार कर सकेंगे |*

आप या अतिआत्मविश्वासी है या भ्रमित 😩

अब कहना ठीक रहेगा कि *हठधर्मिता से युक्त भी हैं, तभी तो दिन में इसी पटल पर "पुनरवलोकन\पुनरावलोकन" शब्द की स्थिति स्पष्ट किये जाने पर भी आप बात को समझना नहीं चाह रहे | लगता है आप प्रमाण से अधिक पुस्तक या मान्यता को अधिक महत्त्व देते है |*

🙏 अकिंचन फिर भी प्रयास करेगा कि आपको समाधान मिले |

🙏 जय-जय
[21/07 22:39] हँसमुख आर्यावर्ती: क्षमा मुझे  अब कीजिए,  मैं बालक  नादान ।
पर जो मैंने था पढ़ा,  वही कहा श्रीमान ।।🙏🙏🙏
[21/07 22:42] भगत गुरु: 😊 यथार्थ वही तो नहीं जो आप जानते हैं |

क्या भगत सिंह , सुभाष, आज़ाद...इत्यादि ज्ञात देशभक्तों के अलावा कोई देशभक्त ही नहीं हुए ?

कह सकते हैं न आप कि हमने तो इनको ही पढ़ा है और इनका ही नाम आता है |

बात को समझने का प्रयास भी करना चाहिए भाई 😊

🙏 सादर

🙏 जय-जय
[21/07 22:48] हँसमुख आर्यावर्ती: श्रीवर जो गलती हुई, आप कीजिए  माफ।
बात आपने है रखी, बिल्कुल  साफम साफ।।
🤣🤣🤣🙏🙏🙏
हास्य
[21/07 22:55] भगत गुरु: 😊 प्रियवर,
आप जैसे जिज्ञासु ही तो ज्ञान-गंगा के भगिरथ बनते हैं |

अकिंचन से हज़ार सवाल भी करेंगे न आप, तो भी आनंद से समाधान रहेगा |

विचलन या क्रोध की संभावना तो है ही नहीं |

🙏 स्वागत है आपका

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वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

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