सुप्रभात प्रिय मित्रों,आज *मंगलाचरण* में👏👏👏👏👏👏👏👏👏☘🌹🌺🌸💐🌿☘🍀🍀🌿🌿
श्री गुरु वंदन
गुरुदेव के पद चूमिये।
गुण गाइये अरु झूमिये।।
कट जाय संकट आप ही।
मिटते सभी भव ताप भी।।
(संयुत छंद)
जो गुरुदेव समीप जायेगा।
जीवन में सुख सार आयेगा।।
जो गुरु के गुण नित्य गायेगा।
अंत वही सुरधाम पायेगा।।
(रोचक छंद)
सुनो मन आज चलो गुरु धाम।
कटे भव फंद बनें सब काम।।
मिले मन चैन मिटे जब ताप।
अरे जड़ "सोम"सदा पद चाप।।
(मौक्तिक दाम छंद)
भज लीजिये, अब गुरुदेव को भले।
यह जानिए, कुसमय आपका टले।।
सब छोड़िये,गुरु पद थाम लीजिये।
गुरुदेव का, निशदिन नाम लीजिये।।
(सुदर्शना छंद)
नित भोर से जब जागिये,
गुरु नामको सुमिरौ भले।
हर सिद्ध कारज जानिये,
सब आपकी विपदा टले।।
सबसे बड़ी महिमा कहें,
सब वेद श्री गुरु नाम की।
सुरलोक से बड़ मानिये,
रज"सोम"श्रीगुरु धाम की।।
(गीतिका छंद )
दीजे मोहे ज्ञान निधि, प्रेम-सदन सुखधाम।
गुरुवर चरणों में करूँ,शत शत बार प्रणाम।।
शत शत बार प्रणाम,रहूँ पद पंकज चाकर।
हर लीजे अज्ञान,ज्ञान की ज्योति जलाकर।।
कहें "सोम"कर जोर, शरण में गुरुवर लीजे।
श्री चरणों की धूल, दयाकर मोहे दीजे।।
(कुण्डलिया छंद)
कोऊ कहे राजा बड़ो,कोऊ कहे मंत्री बड़ो
कोऊ कहे पेड़ बड़ो जान लेव दानी है।
कोऊ कहे बलि बड़ो,कोऊ कहे कर्ण बड़ो,
कोऊ कहे जग में दधीचि को न सानी है।।
कोऊ कहे चंद बड़ो, कोऊ कहे सूर्य बड़ो,
कोऊ कहे मेघ बड़ो देत सबै पानी है।
"सोम" कहे दानी बड़े, हमरे श्री गुरु देव,
विद्या गुण दान देंय, जा हमने जानी है।।
(कवित्त छंद)
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
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