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हनुमान जन्म कथा भगत जी द्वारा संकलित

🌹 जय सियाराम 🌹
🎪हनुमान-जन्मकथा🎪

ज्योतिषियों के सटीक गणना के अनुसार हनुमान जी का जन्म आज से लगभग 1 करोड़ 85 लाख 58 हजार 112 वर्ष पहले चैत्र पूर्णिमा को मंगलवार के दिन चित्रा नक्षत्र व मेष लग्न के योग में सुबह 6.03 बजे हुआ था |

हनुमान की माता अंजनि के पूर्व जन्म की कहानी~
कहते हैं कि माता अंजनि पूर्व जन्म में देवराज इंद्र के दरबार में अप्सरा थी, नाम था~पुंजिकस्थला । बालपन में वो अत्यंत सुंदर और स्वभाव से चंचल थी , एक बार अपनी चंचलता में ही उन्होंने तपस्या करते एक तेजस्वी ऋषि के साथ अभद्रता कर दी थी । गुस्से में आकर ऋषि ने पुंजिकस्थला को शाप दे दिया कि जा ! तू वानर की तरह स्वभाव वाली वानरी बन जा | ऋषि के शाप को सुनकर पुंजिकस्थला ऋषि से क्षमा याचना मांगने लगी, तब ऋषि ने कहा कि तुम्हारा वह रूप भी परम तेजस्वी होगा।
तुमसे एक ऐसे पुत्र का जन्म होगा , जिसकी कीर्ति और यश से तुम्हारा नाम युगों-युगों तक अमर हो जाएगा | इस प्रकार से तब ही अंजनि को वीर पुत्र का आशीर्वाद मिल गया था |

ऋषि के शाप से त्रेता युग मे अंजनि को वानर नारी के रूप मे धरती पे जन्म लेना पडा |
इंद्र , जिनके हाथ में पृथ्वी के सृजन की कमान है और उनके यहाँ हजारों अप्सराएँ (सेविकाएं) थीं | उन्हीं में से एक अप्सरा पुंजिकस्थला की सेवा से प्रसन्न होकर इंद्र ने उसे मनचाहा वरदान मांगने को कहा | तब  उस अप्सरा ने हिचकिचाते हुए कहा कि उन पर एक तपस्वी साधु का शाप है, अगर हो सके तो उन्हें उससे मुक्ति दिलवा दें। इंद्र ने उनसे कहा कि वह उस शाप के बारे में बताएँ,  क्या पता वह उस शाप से उन्हें मुक्ति का मार्ग बता सके |

उस अप्सरा ने कहा कि ‘बालपन में जब मैं खेल रही थी , तो मैंने एक वानर को तपस्या करते देखा | मेरे लिए यह एक बड़ी आश्चर्य वाली घटना थी | मैंने उस तपस्वी वानर पर फल फेंकने शुरू कर दिए, बस यही मेरी गलती थी क्योंकि वह कोई आम वानर नहीं बल्कि एक तपस्वी साधु थे।

मैंने उनकी तपस्या भंग कर दी और क्रोधित होकर उन्होंने मुझे शाप दे दिया कि जब भी मुझे किसी से प्रेम होगा तो मैं वानर नारी बन जाऊँ गी। मेरे बहुत गिड़गिड़ाने और माफी माँगने पर उन्होंने साधु ने कहा कि मेरा चेहरा वानर का होने के बाद भी उस व्यक्ति का प्रेम मेरी तरफ कम नहीं होगा।
तब इंद्र देव ने उन्हें कहा कि इस शाप से मुक्ति पाने के लिए अाप को धरती पर जाकर वास करना होगा, जहां आप अपने पति से मिलेंगी और यह भी कहा कि शिव के अवतार को जन्म देने के बाद अंजना को इस शाप से मुक्ति मिल जाएगी।

इंद्र की बात मानकर वही अप्सरा भूमि पर अंजन प्रदेश के राजा कुंजर (हाथी के समान बली होने से यह नाम था) के यहाँ पुत्री रूप में आईं | नाम रखा गया ~अंजनि\अंजना | जन्म से वह साधारण मानव की भाँति ही थी, हालाँकि जन्म कपि-कुल में हुआ था | कालान्तर पर एक दिन जंगल में अंजनि ने एक बलशाली युवक को शेर से लड़ते देखा और उसके प्रति आकर्षित होने लगीं, जैसे ही उस व्यक्ति की नजरें अंजना पर पड़ीं, अंजना का चेहरा वानर जैसा हो गया । जब अंजनि जोर-जोर से रोने लगीं, तब वह युवक उनके पास आया और उनकी पीड़ा का कारण पूछा तो अंजनि ने अपना चेहरा छिपाते हुए उसे बताया कि वह रूपहीन हो गई हैं। अंजनि ने उस बलशाली युवक को अपने समीप देखा तो पाया कि उसका चेहरा भी वानर जैसा था।
अपना परिचय बताते हुए उन्होंने कहा कि वह कोई और नहीं वानर राज केसरी हैं, जो जब चाहें इंसानी रूप में आ सकते हैं। अंजनि का वानर जैसा चेहरा उन दोनों को प्रेम करने से नहीं रोक सका और समय पर दोनों का विधिवत् विवाह भी हुअा।

केसरी एक शक्तिशाली वानर थे , जिन्होने एक बार एक भयंकर हाथी को भी मारा था। उस हाथी ने कई बार असहाय साधु-संतों को विभिन्न प्रकार से कष्ट पँहुचाया था। तभी से उनका नाम केसरी पड गया, "केसरी" का अर्थ होता है सिंह।

मतंग मुनि का आशीर्वाद ~
पुराणों में कथा है कि केसरी और अंजनि ने विवाह तो कर लिया, पर संतान सुख से वे  वंचित ही थे । तब दोनों मतंग ऋषि (इनके आश्रम में ही शबरी रहतीं थीं) के पास गए | तब मंतग ऋषि ने उनसे कहा-पप्पा (कई लोग इसे पंपा सरोवर भी कहते हैं) सरोवर के पूर्व में नरसिंह आश्रम है, उसकी दक्षिण दिशा में नारायण पर्वत पर स्वामी तीर्थ है | वहाँ जाकर उसमें स्नान करके, बारह वर्ष तक तप एवं उपवास करने पर तुम्हें पुत्र सुख की प्राप्ति होगी।

अंजनि को पवन देव का वरदान ~
अंजनि ने मतंग ऋषि एवं अपने पति केसरी से आज्ञा लेकर तप किया था  और बारह वर्ष तक केवल वायु पर ही जीवित रही | एक बार अंजना ने “शुचिस्नान” करके सुंदर वस्त्राभूषण धारण किए। तब संयोगवश वायु देव उसके नैसर्गिक सैन्दर्य पर मोहित हो गए, परन्तु उन्होंने मर्यादा रखते हुए अंजना की तपस्या से प्रसन्न होकर उसके कर्णरन्ध्र में प्रवेश कर उसे वरदान दिया, कि तेरे यहां सूर्य, अग्नि एवं सुवर्ण के समान तेजस्वी, वेद-वेदांगों का मर्मज्ञ, विश्ववन्द्य महाबली पुत्र होगा।

अंजनि को भगवान शिव का वरदान ~
अंजनि मग्न होकर अपने आराध्य शिव की आराधना करती रही | जब तपस्या से प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें वरदान माँगने को कहा, तब अंजना ने पूर्व जन्म की साधु के श्राप से लेकर देवराज द्वारा बताए मार्ग तक की बात कहते हुए निवेदन किया कि वर-मुक्ति के लिए व लोकोपकार हिते उन्हें शिव के अवतार को जन्म देना है, इसलिए प्रभु ! आप ही  बालक के रूप में उनकी कोख से जन्म लें। तब ‘तथास्तु’ कहकर शिव अंतर्धान हो गए।

हनुमान का दशरथ-सुत संयोग~
इस घटना के बाद एक दिन जब अंजनि शिव की नियमित आराधना कर रही थीं, वहीं दूसरी ओर अयोध्या में इक्ष्वाकुवंशी महाराज अज के पुत्र दशरथ भी अपनी तीन रानियों (कौशल्या, सुमित्रा और कैकेयी) के साथ पुत्र-रत्न की प्राप्ति के लिए शृंगी ऋषि (दशरथ के जामाता, पुत्री शान्ता के पति) के सान्निध्य में 'पुत्र कामेष्टि यज्ञ' कर रहे थे।

यज्ञ की पूर्णाहुति पर स्वयं अग्नि देव ने प्रकट होकर शृंगी को खीर का एक स्वर्ण पात्र (कटोरी) दिया और कहा "ऋषिवर! यह खीर रानियों को खिला दो, राजा की इच्छा अवश्य पूर्ण होगी।" लेकिन इस दौरान एक चमत्कारिक घटना हुई, एक पक्षी (चील) उस खीर की कटोरी में थोड़ी सी खीर अपने पंजों में फंसाकर ले गया और तपस्या में लीन अंजनि के हाथ में गिरा दिया। अंजनि ने भी शिव का प्रसाद (कृपा) समझकर उसे ग्रहण कर लिया।

एतदर्थ उक्त सब प्रकरणों के संयोग स्वरूप अंजनि के पुत्र होने पर उसका नाम मारूति रखा गया | बाद में सूर्य को आकाश-फल समझकर निगलने के प्रकरण (गुरु ज्ञान समाहन) में मारूति ,हनुमान इत्यादि नाम मिलते गए | *हनुमान जी को अांजनेय नाम से भी जाना जाता है , जिसका अर्थ होता है 'अंजनि का पुत्र या द्वारा उत्पन्न'।
उनका एक नाम पवन पुत्र भी है, तो शिव-सुत भी और केसरी नंदन तो वे हैं ही | जिसका शास्त्रों में सबसे ज्यादा उल्लेख मिलता है।

दशरथ के पुत्रेष्टि यज्ञ के प्रसाद का परिणाम होने से हनुमान को दशरथ पुत्र भी कहा जाता है, यानि की राम के भाई और वह भी अग्रज😊 , इसीलिए रामायण में राम ने बारंबार हनुमान जी कहा है कि *तुम मम प्रिय भरत सम भाई* |

जय-जय सियाराम, जय हनुमान !

©भगत (संकलित)

🙏 जय-जय

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