आज की समीक्षा
४/१२/२०१७
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पहली रचना अतिसुन्दर
विश्वेश्वर शास्त्री "विशेष" जी
हे शंभु कैलासी भोले,
काटो मेरे जड बंधन |
हे गिरजा पति शिव अविनाशी,
पडा शरण कर पदबंदन ,
ओगडदानी हे वर दाता,
दे दीजे वरदान हमें,
सुखी रहें संपन्न जगत में,
मिले सदा कल्यान हमें |
भवसागर से पार लगाना,
महादोव बन कर स्यन्दन |
है शंभु कैलाशी भोले,
काटो मेरे जड बंधन ||
हे चन्द्रमौलि है करुणा कर,
कर करुणा हे अविनाशी,
प्रेमभक्ति दीजे रघुवर की,
गंगाधर आनंदराशि,
है "विश्वेश्वर" पस न मेरे अक्षत न रोली चंदन |
है शंभु कैलासी भोले काटो मेरे जग बंधन ||
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दूसरी रचना बहुत सुन्दर
कवि बृजमोहन "साथी "डबरा जी
जय शिव शंकर
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मुक्तक
बहर-221,2122,221,2122
करना है ध्यान शिव का , जीवन महक रहा है ।
भोले के भक्त बनकर जीवन, लहक रहा है ।।
जीवन का सार इतना ,अवधूत बनके रहना ।
माया को छोड़ साथी , मन ये भटक रहा है ।।
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आदरणीय कुमार सागर
सुन्दर सुन्दर रचना
🕉🕉🕉🕉..शिव भक्ति..🕉🕉🕉🕉
कण-कण में शिव, हर क्षण में शिव, शिव ही ओमकार है,
शिव की शक्ति कोई न जाने, शिव की महिमा अपरम्पार है ।।
कोई कहे उन्हें भोले-शंकर, कोई डमरू वाले बाबा कहता है,
हो जाए जिस पर *शिव* की कृपा, हर पल खुश वो रहता है ।।
जब-जब आए विपत्ति ब्रह्मांड पर, आवाह्न शिव का करते हैं,
करके विषपान महादेव तब-तब रूप नीलकण्ठ का धरते हैं ।।
जटा में गंगा, चन्द्र शीश पर, कैलाश पर शिव-शंकर रहते हैं,
*सागर* हम हैं *शिव भक्त*, *हर-हर महादेव* का उद्घोष करते हैं ।।
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आ. भावना भक्तिराज जी
सुमधुर रचना
विषय- शिव शक्ति
विद्या-- गीत
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शंकर दया को मूर्ति हो
फिर देर इतनी क्यो करो
दैन्य दु:ख दुविधा हरो ।
करुणा करो करुणा करो ।।
भवताप से व्याकुल व्यथित हूँ।
नाथ तब चरणन परयौ।।
त्राण करी त्रिपुरारी अब ।
करुणा करो करुणा करो ।।
भस्माङ्ग भूषित भव्य हो।
भवनाथ हो जगनाथ हो ।
अर्धांग शोभित अंग हो ।
गिरिनाथ हो गंगनाथ हो ।।
चन्द्रार्द् शेखर शांत हो ।
गणनाथ हो ममनाथ हो ।
दैन्य दुःख दुविधा हरो...क्रमश:
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.."निश्चल"
विवेक दुबे जी
विषय रचना
जो था कल भी,
जो है आज भी ,
जो होगा कल भी।
जो था तब भी,
जब न था कुछ भी ।
वो है तब भी,
सब है जब भी ।
वो होगा तब भी,
नही होगा कुछ भी।
वो ही सदा शिव है ।
सत्य सनातन शिव है ।
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~शैलेन्द्र खरे"सोम"
*सुन्दरम सवैया*
◆शिव-वंदन◆
*किरीट सवैया* में.............
शिल्प~8 भगण(211×8) कुल 24 वर्ण
हे गिरजापति श्री शिवशंकर,
सोहत है अति भाल सुधाकर।
दीन दयाल दया करिये अब,
दोष सभी मम नाथ क्षमाकर।।
आप त्रिलोचन संकट मोचन,
तेज रमें तन कोटि प्रभाकर।
राखत"सोम"विलोम गले बिच,
ये मन है तिनको पद चाकर।।
मदिरा सवैया में.......
शिल्प~[211*7+2/यति 10,12]
आदि अनंत अलौकिक हो,
प्रलयंकर शंकर काल हरे।
कालन के तुम काल कहे
बलवंत महा जग पाल हरे।।
हे गिरजापति देव सुनो
सब जोड़ खड़े करताल हरे।
"सोम"ललाट भुजंग गले,
करुणाकर दीनदयाल हरे।।
मत्तगयन्द सवैया में .......
शिल्प~[7 भगण+2गुरू/12,11पर यति]
शेष दिनेश सुरेश जपें नित,
शारद गावत गावत हारी।
वेद पुराण भरें जिनके यश,
संत अनंत भजें सुखकारी।।
देख रहे सचराचर ही सब,
केवल आस जगाय तिहारी।
"सोम"ललाट सजे जिनके वह,
देवन के अधिदेव पुरारी।।
अरसात सवैया में........
शिल्प~{भगण[(211×7]+रगण(212)}
हे शिवशंकर त्रास नसावन,
दीन अधीन सदैव पुकारते।
आस लगाय खड़े कबसे दर,
कारन कौन न नाथ निहारते।।
आप सुधार दई सबकी गति,
मोरि न क्यों गति आप सुधारते।
पार किये भवसागर से खल,
"सोम"पुकारत क्यों न उबारते।।
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शिव वन्दना
डॉ. राहुल शुक्ल साहिल
जीवों के देव की वन्दना हम करते हैं ,
असुरों के देव की वन्दना हम करते हैं ,
मानव के देव की वन्दना हम करते हैं ,
देवों के देव की वन्दना हम करते हैं ।
समय के देव की वन्दना हम करते हैं ,
प्रेम के देव की वन्दना हम करते हैं ,
कलियुग के देव की वन्दना हम करते हैं ,
हर युग के देव की वन्दना हम करते हैं।
सत्य के देवता की वन्दना हम करते हैं
सौन्दर्य के देवता की वन्दना हम करते हैं ,
शान्ति के देवता की वन्दना हम करते हैं ,
गणों के देवता की वन्दना हम करते हैं।
विघ्नहर्ता की वन्दना हम करते हैं ,
जगतकर्ता की वन्दना हम करते हैं ,
मंगलकर्ता की वन्दना हम करते हैं,
शुभकर्ता की वन्दना हम करते हैं।
युगाधिपति की वन्दना हम करते हैं,
कालाधिपति की वन्दना हम करते हैं,
कैलाशपति की वन्दना हम करते हैं ,
उमापति की वन्दना हम करते हैं ।
भोले शंकर की वन्दना हम करते हैं ,
महादेव शंकर की वन्दना हम करते हैं ,
शिव शंकर की वन्दना हम करते हैं ,
पार्वती शंकर की वन्दना हम करते हैं।
त्र्यम्बकेश्वर की वन्दना हम करते हैं,
ॐकारेश्वर की वन्दना हम करते हैं,
काशीश्वर की वन्दना हम करते हैं,
नागेश्वर की वन्दना हम करते हैं ।
सोमेश्वर की वन्दना हम करते हैं,
घृष्णेश्वर की वन्दना हम करते हैं,
महाकालेश्वर की वन्दना हम करते हैं,
रामेश्वरम की वन्दना हम करते हैं।
इतिसमाप्तम्
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