पर्वत/ गिरि /पहाड़ (साहिल)

    पर्वत/ गिरि/ पहाड़

खूब बखान किया सभी ने,
अपना - अपनी भाषा में,
पर्वतराज हिमालय महिमा
वर्णित है अभिलाषा में|

गोवर्धन की सुनी कहानी,
मदरांचल की पर्वत माला,
एक बना था छत्र साहसी,
दूजा ने सिन्धु मथ डाला|

जम्बू दीप  सुमेरु से  लाए,
जब बूटी महाबली हनुमान,
पर्वत पर पाए संजीवनी वो
जिसका सभी करे गुनगान|

पर्वत से हम साहस सीखे,
निष्ठा अपनी गिरिराज बनें,
लगन  परिश्रम कौशल से,
जीवन का सब काज बने|

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

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