आज की त्वरित समीक्षा
समीक्षक ~ डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
विषय ~ पर्वत/ गिरि/ पहाड़
दिनांक ~ २४/१२/२०१७
⭕ *आ० सन्तोष कुमार प्रीत जी*
वाहहहहह बेहतरीन मुक्तक भारत की अमूल्य धरोहर हिमालय पर्वत को शब्द माला पहनाकर महिमा गुंजित की है|
🙏🌺🌺🙏🙏
उत्तम भाव
बढ़िया शैली
टंकण कुछ कमजोर
⭕ *आ० नीतेन्द्र सिंह परमार जी*
बेहतरीन मुक्तक है अनुज
गोवर्धन पर्वत का सहारा भगवान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को वर्षण से बचाने के लिए किया था|
यहाँ तक सोच पहुँचना एक उम्दा रचनाकार की पहचान है|
अति उत्तम भाव
बढ़िया शैली
शिल्प ~ तीसरी पंक्ति चौथी से सम्बन्ध रखें तो अति उत्तम
टंकण ~कहीं, गोवर्धन
⭕ *आ० नवीन कुमार तिवारी जी*
वाहहहहह बेहतरीन प्राकृतिक वातावरण सुरम्य पहाड़ी वादियों में पहुँचाती आपकी रचना उत्कृष्ट है|
अच्छी शैली
शिल्प ~ पंक्तियों के अंत में तुकान्त और बढ़िया हो जाए तो अति उत्तम रचना बनें|
टंकण ~ पहाड़ों
⭕ *आ० जितेन्द्र चौहान दिव्य जी*
वाहहहहह अप्रतिम शानदार बेहतरीन अति उत्तम भाव
शानदार थन्द सर्जन मदिरा सवैया में,
वाकई मातु पिता के सम्मुख पर्वत भी बौना है, सर्वोत्तम भाव हैं|
*पूज*
👆में शायद ँ नही होगी|
भाव ~ सर्वोत्तम बेहतरीन
शैली ~ सरल, सार्थक
शिल्प ~ सुगठित
टंकण ~ सही
⭕ *आ० अभय आनन्द जी*
वाहहहहह अनुपम शानदार प्रकृति वर्णन करती हुई अतुकान्त रचना ,
आपके जिले की सुरम्य वादियों एवं पर्वतों से ढके वातावरण के लिए हृदय तल से बधाई|
भाव ~ बेहतरीन
शैली ~ सार्थक, सरल
शिल्प ~ अतुकान्त. (एक दो स्थान पर लिंग दोष है)
टंकण ~ लगभग सही
कोयल की कूँक
या
कोयल की कुहू - कुहू
⭕ आ० इन्दु शर्मा दीदी आपके भाव सर्वोत्तम हो तो हैं, बड़ी जल्दी में आपने कम पंक्तियाँ समर्पित की वरना आप रचना पूरी कर ही देती|
आपकी चार पंक्तियाँ भी हिमालय की गाथा कह रही हैं|
भाव, शैली व शिल्प बढ़िया है|
🙏 *निवेदन ~ दैनिक लेखन व रचनाओं पर उत्साहवर्धन ही साहित्यकार का रियाज़ है| इससे विमुख न हो, कुछ तो लिखे, कुछ ही पढ़े, परन्तु नित्य करें तभी उद्धार है|*
_जनचेतना परिवार की ओर से कुछ ऐसे विषयों का क्रम बनाया गया है कि साहित्यकार की लेखनी व कलम मजबूत हो तथा वह बेकार से विषय पर भी उच्च या बेहतर लिखने का प्रयास करें|_
साहिल का प्रयास👇👇👇🙏 आप सभी के समीक्षार्थ
पर्वत/ गिरि/ पहाड़
खूब बखान किया सभी ने,
अपना - अपनी भाषा में,
पर्वतराज हिमालय महिमा
वर्णित है अभिलाषा में|
गोवर्धन की सुनी कहानी,
मदरांचल की पर्वत माला,
एक बना था छत्र साहसी,
दूजा ने सिन्धु मथ डाला|
जम्बू दीप सुमेरु से लाए,
जब बूटी महाबली हनुमान,
पर्वत पर पाए संजीवनी वो
जिसका सभी करे गुनगान|
पर्वत से हम साहस सीखे,
निष्ठा अपनी गिरिराज बनें,
लगन परिश्रम कौशल से,
जीवन का सब काज बने|
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल
🙏जय जय🙏
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