~ ★ हनुमत्स्तवन ★ ~
♦ चित्रपदा छन्द ♦
(भगण+भगण+गुरु+गुरु, ८ वर्ण, ४ चरण, दो-दो चरण समतुकान्त)
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जन्म जबै हनुमाना |
काल तबै शुभमाना ||
लोक अलोक शुभाया |
अंजनि केसरि काया ||
अंश गहे शिशु रूपा |
वंश महे कपि भूपा ||
बाल किये महँ काजा |
त्रास दिये अरि राजा ||
कौतुक कीन्ह अनेका |
वीर बली जग एका ||
सूरज चाह अहारा |
राख लिये मुख कारा ||
लोप हुआ जग ज्ञाना |
दीन्ह तभी सुर भाना ||
खोल रहे मुख आपा |
मेटन को जग तापा ||
ज्ञान गहा जग भारी |
खेलत पापिअ मारी ||
शाप गहा सुधि संता |
कारक तारक कंता ||
भूलि गये निज माया |
राम बसे बस काया ||
जाप किये सठ मासा |
ध्यान महे अठ आसा ||
देखत रामहि लोका |
लेखत लोक असोका ||
रूप रहे सम भाई |
भूप सु - ग्रीव कहाई ||
साथ रहे सब काला |
नाथ उहे कपि टाला ||
छाँड़ि नहीं इक ठौरा |
राम भरोसहि जौरा ||
आय गये बन रामा |
पाय हुये नत ठामा ||
काँध बिठायहुँ लाये |
भूपहि मित्र बनाये ||
भूप तहाँ सब पाये |
खोजन माय पठाये ||
जाय रहे दिशि दक्षा |
कंटक कारहि कक्षा ||
कूदि गये महँ सिन्धू |
मेल किये अरि बंधू ||
खोजि गहे तिय नाथा |
नाम किये रघुनाथा ||
अक्ष कुमार पठाया |
लोक महा यम दाया ||
ठाडत जाय अनाया |
रामहि नाम सुनाया ||
भाँतिक रावनु लेखा |
किञ्चित ठाडहि देखा ||
लंक जरा रख डारी |
हेम भई उहि कारी ||
लौटिअ रामहि पाये |
सीतहि आयसु गाये ||
हर्षित राम रमाई |
कंठ उठाय लगाई ||
लंकहि कीन्ह पयाना |
बेगहि सागर जाना ||
रामहि बाँधिअ पाधे |
सागर बंध अगाधे ||
जुद्ध हुआ बड़ भारी |
हारहि अासुरि खारी ||
जीति गये सुख धामा |
लोकहि ख्यातिअ रामा ||
लौटि अजोधहि आये |
नाथहि हाथहि पाये ||
रामु सिया वर दाये |
आपु अमोलक पाये ||
लोक हुआ महँ नामा |
दास गहा पद रामा ||
कंटक संकट टारे |
रामिअ नामहि भारे ||
मोर रहे यक आपा |
नाथ क्षरो सब तापा ||
एकहि आप सहारे |
कौन यहाँ अघ टारे ||
दीनहि जानिअ आओ |
माथहि हाथ फिराओ ||
हारक लौकिक तापा |
आपुहि मौलिक आपा ||
दासहि नेह उछारो |
फंद यहीं सब जारो ||
कंठ लगाय अजी हौं |
हार किये हिय जी हौं ||
जोरहि नामु उचारूँ |
आपुहि नाथ पुकारूँ ||
जीवनु आपु अधारा |
पाँइ रहेहुँ सहारा ||
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©भगत
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