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नाखून पर दिलीप कुमार पाठक सरस जी का हास्य

विषय-नाखून
हास्य का आनंद
😀🙏🏻😀

छोटी रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म के उस पार,
एक महिला को घेरे खड़े थे मुस्तण्डे चार |
एक पुलिसवाला, !
एक दाड़ी वाला,
एक मुछमुण्ड,
एक का पता नहीं,
उसका पेट था, या कुण्ड,
फिलहाल वह झुण्ड,
आकर्षण का केन्द्र था,
कुण्ड का नाम बिजेन्द्र था,
महिला से कह रहा था कि तुम्हारे नाखून बड़े प्यारे हैं,
इन्हीं नाखूनों की बजह से हम दिल हारे हैं |
आज तक तुम्हारे लिए ही हम कुँआरे हैं||
महिला बोली मुँह नोच लूँगी तुम्हारा |
कोई रिश्ता नहीं तुम्हारा हमारा|
मैं तो मुछमुण्ड ,साथी जी की दीवानी थी,
पर ये तो मेरे नाखूनों से चिड़ते थे,
ये तो मेरे उन बालों को प्यार करते थे,
जो उस समय सरस जी के लिए झड़ते थे|
आपको क्या पता कि मेरे नाखूनों ने ही बालों को बचाया है,
बालों में पलने वाले जुँओं को नाखूनों ने पकड़ पकड़ कर जब तब निपटाया है|
डॉ0 साहिल ने तो बेवजह दवा बता बता कर मेरा दिमाग खाया है||
मेरे नुकीले नाखूनों की किस्म ही निराली है,
जाने कितनों की भोली भाली सूरत बिगाड़ी है,
यकीन न हो तो निश्चल जी से पूछ लो|
ये लो देखो! मेरे नाखूनों ने ये आज किसकी नोची मूछ लो||
बड़े
छोटे
मझोल
नुकीले और
गोलमटोल|
लाल
काले
गुलाबी
सफेद
नाखूनों के भेद,
तुम भी नहीं जान पाये अभय आनंद,आस जी पूछना परमानंद,
खुजलाने के कौन काम आता है,
पर गंजा के नाखून ही नहीं,
रख ना खून|
गाड़ी चली गयी है,
तुम भी जाओ,
अभी मेरे नाखून रखाओ|
फिर बनाना मुझे बीबी,
तब मनाऊँगी हनीमून|
तब तक आ गये आस,
लिए भगत के साथ |
भगत जी के पल्ले ही न पड़ा मामला,
बोले मैं तो चला,
महिला ने भगत जी की जो देखीं जुल्फें, कान की वाली, होने लगी मतवाली|
आस जी खा गये चक्कर,
भगत जी से बोले दूर खड़े होओ हटकर|
अभी मैं जिन्दा हूँ,
लेट आया इसलिए शर्मिंदा हूँ,
मैं शर्म हूँ, हया हूँ,
पर अब मैं आ गया हूँ|
भारत की नारी,
नाखून बढ़ाने की कर तैयारी,
मुँह नोच, बाल नोच, पर अपनी इज्जत अपने हाथ मत नोच|
सोच!
बड़े नाखून में भरी गन्दगी साहिल नहीं देख पायेंगे|
नाखूनों को क्या आचार से खायेंगे|
भगत जी भी छी छी करते रह जायेंगे||
चार परपुरुषों के बीच तू अपने सौन्दर्य का बखान कर रही है,
तारीफ पसंदीदा औरत क्या ये नादान कर रही है |
नारी की मर्यादा को तार तार न कर |
नाखूनों को शस्त्र बना, शास्त्र बना, पर शर्मसार न कर||

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक सरस

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