राधा छन्द/ गंग छन्द

[12/9, 12:38] Dr. Rahul Shukla: ◆राधा छंद◆

विधान~
[रगण तगण मगण यगण गुरु]
(212  221 222  122   2)
13 वर्ण, यति{8-5},4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]

दूरियाँ होती नही जो, पास  तू आती| 
चाहतें  पूरी  निभाते,  वासना जाती||
कामना  मेरी  पुरानी, बात  हो जारी|
तार लो  गंगा सुहानी, धार है प्यारी||

साधना हो प्रेम की तो, बोलती धारा|
बाँध लेती स्नेह में वो,  मोहनी तारा||
भावना की कामिनी से, भोर है जागे|
चाहतों की दामिनी में, शोर भी भागे||

राग की  रागिनी  सी, वो  बने   मेरी|
चाँद की  चाँदनी  सी, प्रीत  है  तेरी||
रूठना  बातें  बनाना, जीत  है जागे|
मीत का  सारा बहाना, गीत  है लागे|| 

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

[12/9, 20:18] Dr. Rahul Shukla:

  गंग छन्द
मोहन  मुरारी|
नेह  मनुहारी||
बंशी   बजाते|
कान्हा सुहाते||

राधा  सुहानी|
प्रेम  दिवानी||
कान्हा पुकारे|
तेरे     सहारे||

होगा    सवेरा|
साथी   बसेरा||
चाहतें    सारी|
भाव मधुहारी||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

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