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स्वागता छन्द

       ∆ स्वागता छंद ∆

विधान ~ [रगण नगण भगण+गुरु गुरु]
( 212  111  211   22)
11 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत]

भोर की लहर है सुखकारी|
प्रेम की बहर  है  मनुहारी||
गीत है तरुण सी सुर धारा|
नेह से सुखद हो जग सारा||

फूल की महक सा उजियारा|
प्रेम की लगन में सुख सारा||
रात तो  जब  कटे  बिन तेरे|
गीत की  धुन  बने सुर घेरे ||

रात की  अगन न  तड़पाए |
मीत से सजन को मिलवाए||
प्रीत में अब  भरो गुन सारा |
बोल दो वचन ही कुछ तारा||

©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

Comments

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  2. धन्यवाद भाई प्रवीण दीक्षित जी

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