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जागेश्वर प्रसाद निर्मल के वैदिक पद्यानुवाद

[12/7, 07:17] ‪+91 99821 31651‬: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

ओउम् नमस्ते ओउम्

             विनय 

ओं  यश्च सूर्यश्चक्षुश्चन्द्रमाश्च पुनर्णवः।

अग्निं यश्चक्रआस्यं तस्मै  ज्येष्ठाय 

ब्रह्मणे नमः। ।

अथर्व 10/23/48/1/337की

          पद्यानुवाद 

सूर्य चन्द्रमा नेत्र समान

बनाये प्यारे।

कल्प कल्प के आदि में 

बारम्बार बनाते।।

मुख के सदृश अग्नि  की

रचना जिसने की है 

परब्रह्म जो उसे नमस्ते

 बार बार हो   ।।

जागेश्वर प्रसाद" निर्मल "

अजमेर (राजस्थान)

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

🌺ओउम् नमस्ते ओउम्🌺

          🔯विनय 🔯

ओं यस्य वातः प्राणापानौ

चक्षुरंगिरसोऽभवन।

दिशो यश्चक्रे प्रज्ञानीस्तस्मै

ज्येष्ठाय  ब्रह्मणे नमः।।

अथर्व 10 /23 

🚩पद्यानुवाद 🚩

इस ब्रह्मांड में वायु

प्राण वअपान सरीखे

जो प्रकाश करती 

किरणें  हैं  चक्षु सरीखी।

दसो दिशाएं हैं व्यवहार 

सिद्धि के लिए

सब में उसकी हीअनन्त

विद्या ही दीखी।। 

उस परमात्मा के प्रति

श्रद्धा अति अपार हो

उसी इष्ट से हर मनुष्य का

महाप्यार हो।

जिससे बड़ा न कोई

जो है ब्रह्म कहाता

परब्रह्म जो उसे 

नमस्ते  बार बार हो।।

जागेश्वर प्रसाद" निर्मल "

अजमेर (राजस्थान)

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

**************

अनोखा दुभाषिया 

****************

माँ बच्चे की दुभाषिया है 

इसे सभी ने जान लिया है

पढ़ लेती है उस भाषा को

लाल ने जिसको जन्म दिया है

उस भाषा को जिसकी रचना 

दोनों ने सम्मिलित किया है।

माँ  बच्चे की------------

शब्दों  का उद्भव है दो से 

कुछ मात्रा एवं वर्णों से  

कुछ  संकेतों से      शब्दों से 

चलता रहा काम    अब्दों से  

बिना  लिखे और बिना पढे ही

जिस भाषा ने रूप लिया है। 

माँ  बच्चे की-----------'

एक दूसरे को पढ़ते हैं 

चेहरे पर जो भी लिखते हैं 

हर उतार एवं चढ़ाव की

लिपि से चतुर समझ सकते हैं 

अंतः के सारे रहस्य को

जिसमें जाता प्रकट किया है।

माँ बच्चे की----------'

कुछ शब्दों  का अर्थ नहीं है 

अब तक कोई समझने वाला 

हुआ न कोई पढ़ने वाला 

और न कोई लिखने वाला 

जिस भाषा  में  दोनों ने ही 

"निर्मल " अन्तः स्यूत किया है। 

 माँ बच्चे की----------

जागेश्वर प्रसाद" निर्मल "

अजमेर (राजस्थान)

🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺🌺

[12/9, 08:32] ‪+91 99821 31651‬: 

ओउम् नमस्ते ओउम्

              विनय 

ओं य आत्मदा बलदा यस्य विश्व 

उपासते प्रशिषं यस्य देवाः।यस्यच्छायामृतं यस्य मृत्यु कस्मै देवाय भविष्य विधेम।।

यजुर्वेद 25/13 :'ऋभाभू पृसं 6

         पद्यानुवाद ~

जो सर्वत्र व्याप्त परमेश्वर ।

ओ है अति आनन्द  स्वरूप। 

वही प्राप्ति के योग्य मोक्ष है।

जिसका से नाम अनूप।।

विद्वज्जन उसको तीनों ही

काल मे देखा करते हैं। 

देश काल और वस्तु भेद

उसमें कुछ असर न करते हैं। ।

सूरज का जैसे प्रकाश 

आवरण रहित नभमेंहैव्

[12/9, 08:44] ‪+91 99821 31651‬: 

      व्याप्त

उसके प्रकाश से दृष्टि दिशायें 

सदा किया करती हैं प्राप्त। ।

स्वयं प्रकाशी परब्रह्म वह

व्याप्तवान होता सर्वत्र।

उसकी प्राप्ति से उत्तम कोई

प्राप्त नहीं हो सकता अत्र।।

उसकी प्राप्ति कराने के हित

इसीलिए हैं चारों वेद।

इसी बात के प्रतिपादन में 

करें परिश्रम बिना विभेद।।

जागेश्वर प्रसाद निर्मल 

अजमेर (राजस्थान)

[12/10, 08:29] ‪+91 99821 31651‬: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

🌺ओउम्  नमस्ते  ओउम् 🌺

            ⚛विनय ⚛

ओंद्यौःशान्तिः--------शान्तिरेधि।।

 यजुर्वेद 36/17 ऋभाभूपृसं6

      🚩 पद्यानुवाद 🚩

 सूर्यादिक जो लोक हैं 

अम्बर में   दुतिमान।

हमें सुखद हो सभी का

वह प्रकाश विज्ञान। ।

          भू जल औषधि वनस्पति 

          हैं वटादि जो वृक्ष।

          जगती के विद्वान सब

          जो है ब्रह्म प्रत्यक्ष। ।

चारों वेद पदार्थ सब

जो संसार में  पूर।

इनसे भी जो जगत है

भिन्न और भी दूर।।

          प्रति दिन निज अनुकूल हों

          काल व सभी पदार्थ। 

          सुखपूर्वक हमें  सिद्ध हों

           सदा  दिव्य वेदार्थ।।

विद्या बुद्धि विज्ञान से

तन से रहें निरोग।

हम सबको तव कृपा से

मिले सुगुण सुखभोग।।

           सर्व शक्तिमन हे प्रभो!

           कीजे भक्ति प्रदान। 

           हम सब पर निशदिन रहे

           तेरी  कृपा महान। ।

जागेश्वर प्रसाद निर्मल 

🌺ओउम् नमस्ते ओउम्🌺

           ⚛विनय ⚛

ओंयतो यतःसमीहसे ततो नो अभयं कुरु।शन्नःकुरुप्रजाभ्योऽभयं नःपशुभ्यः।।यजुर्वेद 36/22।।

            🚩पद्यानुवाद 🚩

बनाते तुम्हीं हो तुम्हीं पालते हो

सभी  देश हैं नाथ तेरे सहारे। 

हर देश से भय रहित  हम सभी हों 

कहीं  पर न वैरी हो कोई हमारे।।

दिशाओं में  चारों  प्रजायें तुम्हारी 

तुम्हारे हि पशु नाथ केवल भरे हैं।

सभी से हमें भयरहित कीजिएगा 

वृथा एक दूजे से हम सब डरे हैं ।।

चारों पदार्थ मिले हमको भगवन

अनुग्रह तुम्हारा मिले शीघ्र हमको 

सार्थक करें जन्म धर्मादि पायें

अतिप्राप्त सुखकर साधन हों  सबको।।

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल "

अजमेर (राजस्थान)

🌺ओउम् नमस्ते ओउम् 🌺

           🔯विनय 🔯

ओं प्रत्यु अदर्श्यायत्यू3च्छन्ती दुहिता दिवः।अपो मही वृणुते चक्षुषा तमो ज्योतिष्कृणोति सूनरी।।सामवेद 4,1,1/2 2--1।।

 

                🚩पद्यानुवाद   🚩

आती हुई उषा कहती है 

    ज्योति का वरण करो।

         गति  के चरण धरो।

गति के-----------'

दूर अंधेरा  हो जाएगा 

जब तू अपनी पर आएगा

कोई  कांक्षा शेष  न होगी

कर्मवीर जब बन जाएगा 

कुछ बन करके दिखलाने का

          आओ प्रण तो करो।

           गति के -----'----------'

रे अन्दर की ज्योंति जगाओ

आलस्य निद्रा मार भगाओ

कमर कसो कर शस्त्र उठाओ

 विजय पताका नभ फहराओ

     हाथ चलाओ पैर बढाओ

      भव नद तरण  करो।

        गति के------------'

पीछे कदम नहीं रखना है 

आगे  ही बढ़ते  रहना है

जब तक लक्ष्य नहीं  मिलता है 

रात व दिन चलते रहना है 

      सारी दुनिया  करे याद 

          उस मौत का वरण करो।  

             गति को--------------

जागेश्वर प्रसाद निर्मल 

अजमेर (राजस्थान)

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

[12/14, 08:30] ‪+91 99821 31651‬: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

🌺ओउम् नमस्ते ओउम् 🌺

          🔯विनय 🔯

ओं यस्मिन्नृचःसाम यजूंषि यस्मिन्प्रतिष्ठिता रथनाभाविवाराः। 

यस्मिंश्चतं सर्वमोतं प्रजानां तन्मे मनः शिवसंकल्पमस्तु।

          🌴यजुर्वेद 34/5🌴

            ऋ भा भू ,पृसं - 6

              🚩पद्यानुवाद 🚩

ऋग यजु साम अथर्ववेद हैं

 जिसमें स्थित

जिसमें मोक्ष ब्रह्म 

और सत्यासत्य प्रकाशित। ।

जिसके द्वारा सब 

स्मरण किया जाता है

जिसमें चित्तवृत्ति रहती है 

प्रजा की गुम्फित।।

सूत्र में गुंथकर मणियां 

जैसे हार बनातीं।

अरे जिस तरह पहियों में 

रहते हैं ग्रंलथित।

मेरा मन हो शुद्ध 

लगे निज मोक्षमार्ग में

त्याग असत को सदा सत्य से 

रहूं निबद्धित।।

जागेश्वर प्रसाद निर्मल 

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

[12/15, 08:11] ‪+91 99821 31651‬: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

🌺ओउम् नमस्ते ओउम् 🌺

          🔯 विनय 🔯

ओं तस्माद्यज्ञात्सर्वहुतःऋचःसामानि जज्ञिरे।छन्दांसि जज्ञिरे तस्माद्यजुस्तस्मादजायत।

🌴यजुर्वेद 31/7 ऋ पृसः9🌴

          🚩पद्यानुवाद 🚩

जिसका कभी विनाश न होता 

सदा जो ज्ञान स्वरूप है। 

जिसको है अज्ञान न छूता

वह नित्यानंद रूप है।।

सबको सुख देने वाला है

सब जग उससे युक्तहै।

वह उपास्य है इष्ट है सबका

हर क्षमता संयुक्त है।

परब्रह्म है उसी से चारो

वेद हुए उद्भूत हैं। 

करें वेद का ग्रहण वेद की 

राहें सबसे पुत्र है। ।

हैं अनेक विद्याओं से युत

प्रभु का दिव्य प्रसाद है। 

वह ईश्वर सर्वत्र व्याप्त है 

इसमें कहाँ विवाद है?

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल "

विषय-अनुकूला छंद

विधान-

भगण तगण नगण गुरु गुरु

 211  221  111  2   2

11वर्ण, 4चरण ,2-2 चरण  समतुकान्त

भारतवासी हिलमिल जाओ।

देश सँवारो बलि बलि जाओ।।

साथ उठेंगे चरण हमारे।

काम करेंगे सुखद पियारे।।

आज बनेंगे जनअनुरागी।

देश जगे हों  सब बडभागी।।

अन्दर से हैं यदि  हम काँचे।

लाभ नहीं  है  बिलकुल नाचे।।

त्याग  किए हैं  जनगण आया ।

लाल लुटाये यह दिन पाया ।।

भूल न  जाना   दिन बलिदानी।

शीश चढ़ाओ    अमर निशानी।।

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल "

[12/17, 09:09] ‪+91 99821 31651‬: 🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉       

🌺ओउम् नमस्ते ओउम् 🌺

           🔯विनय🔯

यजुर्वेद 40/8  ऋभाभूपृसं 36

           🚩पद्यानुवाद 🚩

एक भी है परमाणु न उससे खाली

एक वही है इस जगती का माली

रहित है तीन शहीदों के योगों से

जन्म मरण से रहित रहित रोगों से 

वह नस नाडी के बंधन से वंचितहै

उसे अविद्या क्लेश नहींकिंचित है

है धर्मात्मा पाप से दूर है रहता

सबका ज्ञाता उससे कौनहैछुपता।

सबके ऊपर राजे सदा अजन्मा

सब सामर्थ्य युक्त है वह परमात्मा 

निजसामर्थ्य से है सुखसाधन देता

सतविद्या से युक्त है सृष्टि का नेता

सर्वहितों में ही निशदिन वह रहता

प्रलयकाल में वेद उसी में रहता।।

उससे बढ़कर कोई मान्य नअपना 

एक उसी की सदा साधना करना।

जागेश्वर प्रसाद निर्मल


ओउम् नमस्ते ओउम् 

                विनय 

ऋग्वेद 1/2/7/5 ऋभाभू पृ सं 45

              पद्यानुवाद 

जो सर्वत्र व्याप्त परमेश्वर 

वह आनंद स्वरूप है। 

वही प्राप्ति के योग्य मोक्ष 

दाता है  जग का भूप है।

सबकालों में उसका दर्शन 

करता हर विद्वान है।

देशकालस्थान में हर क्षण

रहता वह विदमान है।

यथा आवरण रहित सूर्य का

नभ में व्यक्त प्रकाश है। 

उस प्रकाश से ही प्रकाश  में 

करती दृष्टि विकास है। 

स्वयं प्रकाश स्वरूप सब जगह

करता वही  निवास है। 

प्राप्ति योग्य है  वही, वेद का

ऐसा दृढ़ विश्वास है। 

जागेश्वर प्रसाद निर्मल

🌺ओउम् नमस्ते ओउम् 🌺

           ⚛विनय ⚛

ओं यस्मान्न जातःपरोअन्योअस्तित्व यआविवेशभुवनानि विश्वा।प्रजापति प्रजया संरराणस्त्रीणि ज्योतींषि सचते स 

षोडशी।।

यजुर्वेद 8।36ऋभाभूपृसं45

       🚩पद्यानुवाद  🚩

उससे बढ़कर के सर्वोत्तम 

कोई कहीं पदार्थ नहीं। 

सभी जगह  वह व्यापक हो रहा

पालक है अध्यक्ष वही ।।

अग्नि  सूर्य  एवं विद्युत को

वह प्रजार्थ ही रचता है   ।

सोलह वही कलाओं वाला 

अति सुन्दर जग सृजता है। ।

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल "  

अजमेर (राजस्थान)

🕉🕉🕉🕉🕉🕉🕉

🌺ओउम् नमस्ते ओउम् 🌺

           ⚛विनय⚛

ओंअग्निर्देवता वातो देवता सूर्यो देवता चन्द्रमा देवता वसवो देवता 

रुद्रा देवताऽऽआदित्या देवता मारुतो देवता विश्वेदेवा देवता वृहस्पतिर्देवतेन्द्रो देवता वरुणो देवता। ।यजुर्वेद 14/20।।

 🌴ऋभाभूपृसं61    🌴                🚩पद्यानुवाद  🚩

मलिन वासनाओं को कर दो

रे ज्ञानाग्नि में दग्ध।

कर कर्तव्य बुद्धि का पालन 

रहो कर्म में मुग्ध। ।

सूर्य की भाँति सदा चमको तुम 

चन्द्र से रहो प्रसन्न।

रख अपने आवास को सौन्दर्य

हो वासना अवसन्न।।

सबसे अच्छाई को लेना

रोते रहो न मीत।

दिव्य गुणों को अपनाये तू

ऊँचे चढ़ो सप्रीत।।

सभी शत्रुओं को जीते तू

सत्य सर्वदा बोल।

करना प्रभु को प्राप्त गवाँ मत

निज जीवन अनमोल। ।

जागेश्वर प्रसाद "निर्मल "

अजमेर (राजस्थान)   

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