Skip to main content

सूक्तियों का भंडार

: 🌺🌺🌺सूक्तियां 🌺🌺🌺

1. जैसे पैरों से कांटे निकल जाने के बाद चलने में आनंद आता है  उसी प्रकार मन से अहंकार निकल जाने पर जीवन जीने  में आनंद आता है।

2. गृहस्थ जीवन को प्राण - प्रण से निभाते हुए सबको प्रसन्न रखना ही  ईश्वर की सच्ची  साधना है।

3.सपने उसी के सच होते हैं जिनके इरादे नेक व फौलादी हों।

4. विपत्ति के आने पर घबराना उचित नहीं। विपत्ति आती है और चली जाती है साथ ही अपने व परायों का भान करा जाती है।

5. ईश्वर हीरे मोती जैसे बेशकीमती भेंट लेकर प्रसन्न होते तो बड़े - बड़े उद्योग पतियों के घर हमेशा भगवान् का डेरा रहता और वहाँ कभी कोई कष्ट नहीं आते।

6.  ईश्वर  का बिदुर, शबरी जैसे  भक्तों से  प्रसन्न होना यह बताता है कि ईश्वर भाव और भावना से रीझते हैं।

7.  जिसने अपने माता - पिता की सच्ची सेवा जीवन - पर्यन्त कर ली उसने मानों चारों धाम की यात्रा करने का पुण्य कमा लिया।

8.  मन के आधीन व्यक्ति कभी पतन की और अग्रसर हो सकता है  अतः हमें मन को अपने आधीन करना आना चाहिए।

9.  आलसी व्यक्ति कभी सुलक्ष्य प्राप्त नहीं कर पाता।

10. अच्छी आदतें किसी छोटे व्यक्ति से भी ले सकते हैं परन्तु गलत आदतें अपने बहुत प्रिय से भी नहीं लेनी चाहिए।
सुशीला धस्माना

[ सरस जी की : सूक्तियाँ ]

1-सफलता उसी को मिलती है, जो काम करता है |

2-रसिक के लिए रस सर्वत्र स्वयं उपस्थित हो जाता है |

3-वही जाना जाता है, जो कुछ करके दिखाता है|

4-मानव व्यक्तित्व कर्म से निखरता है|

5-मौन रहना भी स्वयं के लिए अन्ततः दुःखद बन जाता है |

6-बड़ा वह है जो छोटों को स्नेह जल से हमेशा सींचकर उनके विकास का मार्ग प्रशस्त करता है  |

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
मुक्तक
💐🙏🏻💐

जो सदा करती प्रकाशवान|
व्यक्ति को बनाती ज्ञानवान||

है नीति भाव के प्रभाव की|
सरस सूक्ति शक्ति है महान||

✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻✍🏻
दिलीप कुमार पाठक "सरस"

[भावना शर्मा की सूक्तियाँ]

जिसने श्री गुरु को स्वयं में उतार लिया, वो कभी रोया नही फिर

सफल वही होते हैं जो अपने गुरु के बताए मार्ग पर पूर्ण श्रद्धा भक्ति के साथ निष्काम भाव से , ओर स्वयं को श्री गुरु शरण मे न्योछावर करके , चलते हैं।

भावना शर्मा भक्तिराज,
श्री गुरु   चरनाश्रित

अगर जीवन को सफल बनाना है मोक्ष पाना है, तो सिर्फ श्री सदगुरुदेव के बताए मार्ग पर चलें,

उनके द्वारा दिये गुरु मंत्र को जपें , उनके द्वारा दिये गये प्रसाद को पाएं, ओर स्वयं को सम्पूर्ण रूप से श्री सदगुरुदेव की शरण मे छोड़ दें।
उनकी दयादृष्टि से सदैव श्री गुरु के कृपापात्र बनें

एक मात्र श्री सदगुरुदेव ही होते हैं हमारे जीवन के आधार

श्री गुरु कृपा से यह वर पाऊं
*चित्त चरित चिंतन मन लाऊं।।
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
भावना शर्मा भक्तिराज

[भगत गुरुवर की सूक्तियाँ]

      सूक्ति~

०१. परहित में निज वार |

०२. तज स्वारथ की डोर |

०३. उड़ना ज़रूर , पर जड़ मत छोड़ |

०४. कहने से करना श्रेष्ठ है |

०५. वाणी ही वरदान है, वाणी ही अभिशाप |

०६. अपनी जरूरतें कम रखो, सुख बढ़ेगा |

०७. लेना नहीं, देना सीखो |

०८. त्याग में जो सुख है, वह प्राप्ति में दुर्लभ है |

०९. शब्द ईश का रूप है |

१०. मौन मृत्यु का प्रतीक है |

११. दु:ख आनंद से डरते हैं |

१२. गार्हस्थ्य में निर्लिप्तता ही ईशत्व है |

१३. वीरह प्रेम का स्नेहक है |

१४. मैं नहीं, तू में; सुख बसता है |

१५. पाने को बहुत कुछ है, खोने को बस काल |

१६. कण में मण की अनुभूति ही सं-ज्ञान है |

१७. यूँ रहे , ज्यूँ आज ही जाना हो |

१८. अच्छा न बन सको तो बुराइयाँ त्यागने लगो, अच्छे हो ही जाओगे |

१९. समय का दोहन करो |

२०. अधर पर मंदस्मित हो |

२१. देखें तो बस गुण ही देंखे, दोष छिपे न जग में |

©भगत

[12/5, 01:40] Dr. Rahul Shukla:
     ♦सूक्तियाँ♦

1)  "सेहत एक वरदान है|"

टिप्पणी ~ सेहतमंद शरीर में शुद्ध मन और आत्मा का समावेश होता है, स्वस्थ शरीर से सकारात्मक सार्थक कर्म करके मानव धर्म की राह पर चल सकते है, इहेतुक सेहत मानव के लिए वरदान स्वरूप है|

2)  विश्वास की रोटी सदा खाएँ|
टिप्पणी~
  जिस प्रकार हम रोटी नित्य खाते हैं उसी प्रकार अपने दिल के करीब परिवारी जनों पर सदैव विश्वास करें क्योंकि विश्वास और निष्ठा ही प्रेम को अक्षुण्य बनाए रखती है|

3)  निंदा करने वाले से अच्छा कोई मित्र नहीं|
टिप्पणी ~  किसी व्यक्ति की कमियाँ देखने वाला, उसकी बुराइयाँ देखने वाला व्यक्ति ही परम मित्र होता है, क्योंकि कमियाँ सुधारकर ही इंसान परिष्कृत होकर जीवन की सभी राहों पर सफल हो सकता है|

4)  "काँटों के बीच गुलाब मुस्कुराता है|"
टिप्पणी~   विपरीत परिस्थितियों एवं सांसारिक अनाचारों एवं दुष्प्रवृत्तियों के बीच सदाचारी एवं चरित्रवान व्यक्ति सदैव गुलाब के समान सुन्दरता एवं सुगन्ध बिखेरता है|

5)  "शूल को फूल बनाते गुरु है|"
टिप्पणी~ *"सामाजिक एवं पारिवारिक कष्टों एवं दुखों से निजात दिलाकर कर्म पथ पर अग्रसर करने वाले, परमतत्व से परिचय कराने वाले, ईश्वरीय सत्ता का अस्तित्व दिखाने वाले "गुरु"  शूल को फूल में बदल देते हैं|"*

6)  सदा मुस्कुराइए|

7)  प्रेम की बंशी मुग्ध करे|

8)  कण कण में ऊर्जा है|
 
9) तम का जाना तय है, सवेरा आना तय है|

10)  सागर सी गहराई हो|

11)  साहिल सी सुंदरता हो|

© डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

Comments

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य