Skip to main content

तारा सप्तक

         लीला द्वादस छंद
[12,12 मात्राओं पर यति अंत में जगण"]

         तारा

स्नेह सरिता सहकार|
बाजै  संगीत   सार ||
फड़कत रदपुट लाल|
चमके  है बाल गाल||

नूतन  महके  पराग|
सोहत सूरत सुराग||
तारा  सोहत समान|
नैना   जैसे  कमान||

प्रेम सुख  पाऊँ ओज|
सब को कराऊँ भोज||
तारा मन-सुख पुकार|
जीवन अब दो सँवार||
     
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
         शिखरिणी छंद

विधान~
[यगण मगण नगण सगण भगण+लघु गुरु]
(122  222 111  112  211 12)
17 वर्ण,यति 6,11वर्णों पर,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत

सुनो  मेरी  तारा, हर - पल  वही चाहत भरों|
कहो प्यारी बातें, तन - मन सदा राहत करो||
तुझे ही तो चाहूँ, पग - पग तुही सीवन  बने|
लिखूँ सारी यादें, पल - पल वही जीवन बने||

   © डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

       इन्दवज्रा छंद
शिल्प~समवर्ण, चार चरण  प्रत्येक चरण में दो तगण एक जगण और अन्त में दो गुरु /११ वर्ण
उदाहरण: -
S S I  S S I  I S I  S S

तू चाह मेरी बन जा सहारा|
तेरे  बिना है  मन  बेसहारा||
आओ बनाएँ सुर गीत प्यारा|
गाएँ बजाएँ धुन 'प्रीत' 'तारा'||

कोई कहानी हम भी बनाएं|
पूरी जवानी तुम  पे लुटाएँ||
मेरी उदासी कुछ बोलती है|
सारे पुराने पट  खोलती है||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

       ∆ स्वागता छंद ∆

विधान ~ [रगण नगण भगण+गुरु गुरु]
( 212  111  211   22)
11 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत]

भोर की लहर है सुखकारी|
प्रेम की बहर  है  मनुहारी||
गीत है तरुण सी सुर धारा|
नेह से सुखद हो जग सारा||

फूल की महक सा उजियारा|
प्रेम की लगन में सुख सारा||
रात तो  जब  कटे  बिन तेरे|
गीत की  धुन  बने सुर घेरे ||

रात की  अगन न  तड़पाए |
मीत से सजन को मिलवाए||
प्रीत में अब  भरो गुन सारा |
बोल दो वचन ही कुछ तारा||

©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

      हायकु

कोई तो मिले,
हमसफर बने
दुनिया खिलें|

जल्दी से आए
महफिल सजाए
घर बसाए|

बात अधूरी
कर दो अब पूरी
रहे न दूरी|

नदी की धारा
मिल जाए सहारा
भोर का तारा|

 

¢ चंडरसा छंद ¢

विधान~
[ नगण यगण]
(111  122 )
6वर्ण, 4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत

मनसुख  धारा|
मधुरिम  तारा||
पनघट    बोले |
जब मुँह खोले|||

नटखट है  वो|
पनघट  है वो||
तरकश है  वो|
करकश है वो||

हरपल   पाऊं|
हरि गुन गाऊं||
कलरव  सोहे|
उपवन  मोहे||

प्रियतम प्यारी|
सुमधुर  नारी||
अब सुन लेती|
हिय सुर देती||

©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

   
       ◆राधा छंद◆

विधान~
[रगण तगण मगण यगण गुरु]
(212  221 222  122   2)
13 वर्ण, यति{8-5},4 चरण,
दो-दो चरण समतुकांत]

दूरियाँ होती नही जो, पास  तू आती| 
चाहतें  पूरी  निभाते,  वासना जाती||
कामना  मेरी  पुरानी, बात  हो जारी|
तार लो  गंगा सुहानी, धार है प्यारी||

साधना हो प्रेम की तो, बोलती धारा|
बाँध लेती स्नेह में वो,  मोहनी तारा||
भावना की कामिनी से, भोर है जागे|
चाहतों की दामिनी में, शोर भी भागे||

राग की  रागिनी  सी, वो  बने   मेरी|
चाँद की  चाँदनी  सी, प्रीत  है  तेरी||
रूठना  बातें  बनाना, जीत  है जागे|
मीत का  सारा बहाना, गीत  है लागे|| 

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

  गंग छन्द
मोहन  मुरारी|
नेह  मनुहारी||
बंशी   बजाते|
कान्हा सुहाते||

राधा  सुहानी|
प्रेम  दिवानी||
कान्हा पुकारे|
तेरे     सहारे||

होगा    सवेरा|
साथी   बसेरा||
चाहतें    सारी|
भाव मधुहारी||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

      लीला द्वादस छंद
[12,12 मात्राओं पर यति अंत में जगण"]

         तारा
स्नेह सरिता सहकार|
बाजै  संगीत   सार ||
फड़कत रदपुट लाल|
चमके  है बाल गाल||

नूतन  महके  पराग|
सोहत सूरत सुराग||
तारा  सोहत समान|
नैना   जैसे  कमान||

प्रेम सुख  पाऊँ ओज|
सब को कराऊँ भोज||
तारा मन-सुख पुकार|
जीवन अब दो सँवार||
     
© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

∆. स्वागता छंद ∆

विधान~[रगण नगण भगण+गुरु गुरु]
( 212 111 211  22)
11 वर्ण, 4 चरण [दो-दो चरण समतुकांत]

भोर की लहर है सुखकारी|
प्रेम की बहर  है  मनुहारी||
गीत है तरुण सी सुर धारा|
नेह से सुखद हो जग सारा||

रात की  अगन न  तड़पाए |
मीत से सजन को मिलवाए||
प्रीत में अब  भरो गुन सारा |
बोल दो वचन ही कुछ तारा||

     ©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

           निश्चल छंद
विधान~
[23 मात्राएँ 16,7 मात्राओं पर यति,
चरणान्त 21]

तारा  तन  मनमोहक हिय में,  बढ़त हिलोर|
नील मुकुट खग नाचत सुन्दर, लागत  मोर||
गरज गरज कर मेघा कहता, प्रीतम बोल|
किरण बिखेरे सूरज धरती, भी  है गोल||

बेदी गोल  सूरतिया करती, है मदहोश|
हृदय पटल में संचारित हो, सब गुण कोश||
छन - छन बाजत पायल जैसे, सुरमय गीत|
घड़ी मिलन  की आयी गाओ, सुख संगीत||

   ©डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

[मरहटा छंद]

शिल्प~[10,8,11 ]मात्राएँ ,इसी प्रकार यति।चरणान्त में गुरु लघु(21),चार चरण तुकांत।

सुरसरि  के तीरे, धीरे - धीरे, हृदय जपत जयकार|
ये जीवन सारा, निज सुख हारा,नमन करूँ शतबार||
सुन्दर मनभावन, प्रियतम पावन, साहिल करे पुकार|
मनमीत 'प्रीत' की, मधुर रीत की, कोमल सी मनुहार||

© डॉ० राहुल शुक्ल साहिल

Comments

Popular posts from this blog

वर्णों के 8 उच्चारण स्थान

कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि)  २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं   ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म)  =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~

वर्णमाला

[18/04 1:52 PM] Rahul Shukla: [20/03 23:13] अंजलि शीलू: स्वर का नवा व अंतिम भेद १. *संवृत्त* - मुँह का कम खुलना। उदाहरण -   इ, ई, उ, ऊ, ऋ २. *अर्ध संवृत*- कम मुँह खुलने पर निकलने वाले स्वर। उदाहरण - ए, ओ ३. *विवृत्त* - मुँह गुफा जैसा खुले। उदाहरण  - *आ* ४. *अर्ध विवृत्त* - मुँह गोलाकार से कुछ कम खुले। उदाहरण - अ, ऐ,औ     🙏🏻 जय जय 🙏🏻 [20/03 23:13] अंजलि शीलू: *वर्ण माला कुल वर्ण = 52* *स्वर = 13* अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ, अं, अब *व्यंजन = 37*         *मूल व्यंजन = 33* *(1) वर्गीय या स्पर्श वर्ण व्यंजन -*    क ख ग घ ङ    च छ ज झ ञ    ट ठ ड ढ ण    त थ द ध न    प फ ब भ म      *25* *(2) अन्तस्थ व्यंजन-*      य, र,  ल,  व  =  4 *(3) ऊष्म व्यंजन-*      श, ष, स, ह =  4   *(4) संयुक्त व्यंजन-*         क्ष, त्र, ज्ञ, श्र = 4 कुल व्यंजन  = 37    *(5) उक्षिप्त/ ताड़नजात-*         ड़,  ढ़         13 + 25+ 4 + 4 + 4 + 2 = 52 कुल [20/03 23:14] अंजलि शीलू: कल की कक्षा में जो पढ़ा - प्रश्न - भाषा क्या है? उत्तर -भाषा एक माध्यम है | प्रश्न -भाषा किसका

तत्सम शब्द

उत्पत्ति\ जन्म के आधार पर शब्द  चार  प्रकार के हैं ~ १. तत्सम २. तद्भव ३. देशज ४. विदेशज [1] तत्सम-शब्द परिभाषा ~ किसी भाषा की मूल भाषा के ऐसे शब्द जो उस भाषा में प्रचलित हैं, तत्सम है | यानि कि  हिन्दी की मूल भाषा - संस्कृत तो संस्कृत के ऐसे शब्द जो उसी रूप में हिन्दी में (हिन्दी की परंपरा पर) प्रचलित हैं, तत्सम हुए | जैसे ~ पाग, कपोत, पीत, नव, पर्ण, कृष्ण... इत्यादि| 👇पहचान ~ (1) नियम ~ एक जिन शब्दों में किसी संयुक्त वर्ण (संयुक्ताक्षर) का प्रयोग हो, वह शब्द सामान्यत: तत्सम होता है | वर्णमाला में भले ही मानक रूप से ४ संयुक्ताक्षर (क्ष, त्र, ज्ञ, श्र) हैं, परन्तु और भी संयु्क्ताक्षर(संयुक्त वर्ण)बनते हैं ~ द्ध, द्व, ह्न, ह्म, त्त, क्त....इत्यादि | जैसे ~ कक्षा, त्रय, ज्ञात, विज्ञान, चिह्न, हृदय, अद्भुत, ह्रास, मुक्तक, त्रिशूल, क्षत्रिय, अक्षत, जावित्री, श्रुति, यज्ञ, श्रवण, इत्यादि | (2) नियम दो ~👇 जिन शब्दों में किसी अर्घाक्षर (आधा वर्ण, किन्तु एक जगह पर एक ही वर्ण हो आधा) का प्रयोग हो, वे शब्द सामान्यत: तत्सम होते हैं | जैसे ~ तत्सम, वत्स, ज्योत, न्याय, व्य