◆अनुकूला छंद◆
विधान~
[भगण तगण नगण+गुरु गुरु]
( 211 221 111 22
11वर्ण,,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
हे अविनाशी भव-भय हारी।
आन पड़ा हूँ शरण तिहारी।।
मस्तक देवा पुनि-पुनि नाऊँ।
"सोम"सदा मैं पद रज पाऊँ।।
~शैलेन्द्र खरे"सोम"
*अनुकूला छंद*
हे निशि बीती उडगन रीती|
हे मधु पीती अलिनिहु जीती ||
प्रात सुहावे अब लख आली |
फूल उठी है हर फुलवारी ||
*विश्वेश्वर शास्त्री "विशेष"*
[12/17, 15:07] +91 86507 32824: ◆अनुकूला छंद◆
विधान~
[भगण तगण नगण+गुरु गुरु]
( 211 221 111 22
11वर्ण,,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
मातु भजूँ मैं चरण तुम्हारे,
गावत माता जग अब सारे,
वंदन आओ हम सब गायें,
ज्ञान मिले जो यह फल पायें,
साहस पाऊँ पथ पर माता,
हंस सवारी गुण यह गाता,
आश जगाना यह सिखलाना,
पावन राहें अब दिखलाना,
.....भुवन बिष्ट
[12/18, 14:13] +91 86507 32824: *◆अनुकूला छंद◆*
विधान~
[भगण तगण नगण+गुरु गुरु]
( 211 221 111 22
11वर्ण,,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]
प्रभु मुझे साहस तुम देना,
दोष हमारे अब हर लेना,
आप सदा ही जग रखवाले,
दीन दयाला जन जन पाले,
होत सदा ही जय जय तेरी,
है एक आशा अब सुन मेरी,
जीवन होवे अब उजियारा,
दीप जले हो जगमग सारा,
दोष मिटा दो तुम यह मेरा,
पाप हरो ये जग सब तेरा,
साथ रहो हो तुम बलवाना,
वंदन लीला यह जगजाना,
.....भुवन बिष्ट
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[12/18, 16:21] +91 98719 87947:
मौन
विधा : अनुकूला छंद
विधान-भगण तगण नगण गुरु गुरु
211 221 111 2 2
11 वर्ण, 8 चरण, 2-2 चरण समतुकान्त
मौन रहे शोषण पर नारी।
आपद पाए क्षण-क्षण भारी।।
शोषित माता-बहन डरें क्यों।
कीमत सारी वहन करें क्यों।।
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है प्रभु भी मौन नमन कीजे।
अर्पण सारा तन-मन कीजे।।
क्यों वह छोटा बन कर बोलें।
भेद सभी ये कण-कण खोलें।।
मुकेश शर्मा ओम
[12/18, 19:24] +91 98719 87947:
मौन
विधा : अनुकूला छंद
विधान-भगण तगण नगण गुरु गुरु
211 221 111 2 2
11 वर्ण, 8 चरण, 2-2 चरण समतुकान्त
मौन रहे शोषण पर नारी।
आपद पाए क्षण-क्षण भारी।।
शोषित माता-बहन डरें क्यों।
कीमत सारी वहन करें क्यों।।
---------------------------------------
है प्रभु भी मौन नमन कीजे।
अर्पण सारा तन-मन कीजे।।
क्यों वह छोटा बन कर बोलें।
भेद सभी ये कण-कण खोलें।।
मुकेश शर्मा ओम
[12/18, 21:59] Dilip Kumar Pathak:
मौन
विधा : अनुकूला छंद
विधान-भगण तगण नगण गुरु गुरु
211 221 111 2 2
11 वर्ण, 8 चरण, दो दो चरण समतुकान्त।
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पायल पैरों छनछन बोले।
हाथन चूड़ी खनखन बोले।।
साजन आजा सरगम गाये।
आँगन सूना तुम बिन आये।।
मौसम प्यारा शरद बुलाता।
अंग लगाता तन मन भाता।।
साथ निभाना बन ठन आना।
आज लगा है मन मनमाना।।
पास जरा तू चलकर आजा।
देख जरा तू दिल दरबाजा।
द्वार खुले हैं अब घर आजा।
धूप खिली है छत पर आजा।।
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दिलीप कुमार पाठक "सरस"
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