ॐ卐 प्रसंग प्रेरणा 卐ॐ
एक बार एक आदमी गृहस्थ जीवन से परेशान होकर एक महात्मा जी के पास पहुंच गया। उनके सानिध्य में रहने लगा।उसने महात्मा जी से पूछा कि इतना दुख क्यों है गृहस्थ जीवन में मैंने तो किसी का दिल नही दुखाया और अपना कर्तव्य पालन करता रहा फिर भी परिवार जनों की अपेक्षाए मुझसे बढती गयी जो दुख का कारण बनती है। महात्मा जी ने सुन्दर उत्तर दिया, देखो भाई दुख तो सब जगह है और सुख भी सब जगह है बस हमें अपनी सोच बदलनी होती है, अपेक्षाए तो मानव जीवन में रहती ही है बस अनावश्यक नही होनी चाहिए गृहस्थ जीवन यही तो सिखाता है कि जिसमें हमें प्रेम है वह हमारी अपेक्षाओं औल जरूरतों के लिए बहुत परेशान न हो या हम भी उसकी मदद करें ।
दुख के बाद सुख तो आता ही है। काली रात के बाद प्रकाशवान सुबह आती ही है। प्रकृति के नियम सर्वोपरि है।तुम मेरे पास भी तो अपेक्षाओं से ही आये हो क्या परिवार जनों का प्रेम लगाव और अपेक्षायें आपके प्रति यहाँ आने से समाप्त हो गई, नही ?
महात्मा जी की बात सुनकर उसको अपने परिवार की याद आने लगी और वह फिर से घर चला गया और खुशी से रहने लगा।
धन्यवाद
डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल
कुल उच्चारण स्थान ~ ८ (आठ) हैं ~ १. कण्ठ~ गले पर सामने की ओर उभरा हुआ भाग (मणि) २. तालु~ जीभ के ठीक ऊपर वाला गहरा भाग ३. मूर्धा~ तालु के ऊपरी भाग से लेकर ऊपर के दाँतों तक ४. दन्त~ ये जानते ही है ५. ओष्ठ~ ये जानते ही हैं ६. कंठतालु~ कंठ व तालु एक साथ ७. कंठौष्ठ~ कंठ व ओष्ठ ८. दन्तौष्ठ ~ दाँत व ओष्ठ अब क्रमश: ~ १. कंठ ~ अ-आ, क वर्ग (क, ख, ग, घ, ङ), अ: (विसर्ग) , ह = कुल ९ (नौ) वर्ण कंठ से बोले जाते हैं | २. तालु ~ इ-ई, च वर्ग (च, छ, ज, झ, ञ) य, श = ९ (नौ) वर्ण ३. मूर्धा ~ ऋ, ट वर्ग (ट, ठ, ड, ढ, ण), र , ष =८ (आठ) वर्ण ४. दन्त ~ त वर्ग (त, थ, द, ध, न) ल, स = ७ (सात) वर्ण ५. ओष्ठ ~ उ-ऊ, प वर्ग (प, फ, ब, भ, म) =७ (सात) वर्ण ६. कंठतालु ~ ए-ऐ = २ (दो) वर्ण ७. कंठौष्ठ ~ ओ-औ = २ (दो) वर्ण ८. दंतौष्ठ ~ व = १ (एक) वर्ण इस प्रकार ये (४५) पैंतालीस वर्ण हुए ~ कंठ -९+ तालु-९+मूर्धा-८, दन्त-७+ओष्ठ-७+ कंठतालु-२+कंठौष्ठ-२+दंतौष्ठ-१= ४५ (पैंतालीस) और सभी वर्गों (क, च, ट, त, प की लाईन) के पंचम वर्ण तो ऊपर की गणना में आ गए और *ये ही पंचम हल् (आधे) होने पर👇* नासिका\अनुस्वार वर्ण ~
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