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मोटनक छन्द

  मोटनक छन्द ♦
(तगण+जगण+जगण+लघु+गुरु, ११ वर्ण, ४ चरण, दो-दो चरण समतुकान्त)
🌱🌱🌱🌱🌱

गाते हम  कीरति को मन में |
माथे  कर  चाहत  जीवन में ||
पायें फल भाँतिक ही गुरु तै |
दायें शुभ कारज भी  कुरु तै ||

🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
©भगत


  विधा ◆मोटनक छंद◆

विधान~
[तगण जगण जगण+लघु गुरु]
( 221 121 121  12
11वर्ण,4 चरण
दो-दो चरण समतुकांत]

हे मोहन माधव  श्याम लला।
न्यारी सबसे सुखधाम कला।।
सारी विषता छिन माहिं जरै।
को जो पद पाकर नाहिं तरै।।

            ~शैलेन्द्र खरे"सोम"


  विधा ◆मोटनक छंद◆
           चन्दन

ये चंदन लागत  सुंदर  है।
माथे पर शीतल अंदर है।
मानो शिव को वह शंकर है।
माया जग का तम कंकर है।

आओ सुखपूरित काम करें।
सच्चे मन से प्रभु धाम भरें।।
टीका महके जब भाल लगें।
बाजे डमरू सुर ताल जगें।।

  डाॅ• राहुल शुक्ल साहिल

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