उपस्थिति मात्र🙏~
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*चन्दन\टीका\तिलक*
विधा~दोहा
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१.
*चन्दन* सी महके सदा, पूत भौम की रेत |
समरभूमि जाते सजा, हँस-हँस होते खेत ||
२.
माथे का *चन्दन* बना, राखहुँ पग रज आप |
तीनि रूप के सहज ही, मिट जायेंगे ताप ||
३.
मात-तात-गुरु ईश सब, पग रज *चन्दन* जानु |
बल विक्रम गौरव मिले, कथन बढ़न यह मानु ||
४.
*टीका* दाती माथ पर, हरती माँ सब पीड़ |
वर मुद्रा कहती सदा, सुखद रहे सुत नीड़ ||
५.
*चंदन का टीका* लगा, बने भगत अब लोग |
मन मैला ही रह गया, क्यों कर मिटने सोक ||
६.
*टीका* सुन्दर है लगा, लहू वीर का शीश |
देखो देती भारती, लख-लख बहुत उशीश ||
७.
केसर का *टीका* सजा, करना शुभ तुम काज |
नाम मान सम्मान बढ़े, सोहे सतत समाज ||
८.
गेंदे का *टीका* लगा, शीश कलेजे देख |
मोहित हो संसार भी, चले नयन तव रेख ||
९.
*चन्दन* शीतल होत है, हरता आतप घाम |
मस्तक अरु हिरदय रखो, क्रोध रहेगा वाम ||
१०.
*चन्दन* के लिपटे रहे, कहते भुजग कराल |
तब भी विष व्यापे नहीं, शीतलता तिहुँ काल ||
११.
*टीका चन्दन* का लगा, देवालय से आय |
स्नान ध्यान युत जग कहे, शोभा भी बढ़ जाय ||
१२.
*टीका* सोहे भाल पर, वैभव आवे आप |
कलुष मिटे सहजहि घटे, जीवन के परिताप ||
१३.
जिहिक भाल *टीका* रहे, कृपा करे रघुवीर |
सुख सातों सहजहि मिले, बढ़े मान मति धीर ||
१४.
*टीका* तो हो भाल पर, चाहे भस्म मसान |
गौरव तो बढ़ता सदा, नैक न घटता मान ||
१५.
शीश सजाकर जा रहे, देखो सैनिक आज |
यह पावन टीका सदा, सुफल करेगा काज ||
१६.
*चन्दन* माँ के कर रहे, जब वह छूती काय |
पीड़ मिटे सुख भी बढ़े, जो सिर चरणन दाय ||
१७.
*चन्दन* से शीतल रहो, सोचो सदा सुधार |
क्लेश मिटे अरु सहज ही, हो जाये उद्धार ||
१८.
*टीका* कुंकुम का लगा, गया ब्याहने वीर |
गही नवोढ़ा संगिनी, जीवन सुख आगार ||
१९.
*टीका* तो गौरव रहा, सदा सुहाये भाल |
सज सिर हिन्दू के कहे, यही भारती लाल ||
२०.
*तिलक* लहू का अब लगा, यह *टीका* अनमोल |
भरी वीरता ही रहे, हृदय उबलता बोल ||
२१.
*तिलक* देत रघुवीर को, कहते तुलसीदास |
कृपा तिहारी जब रहे, कैसे भगत उदास ||
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©भगत
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