जहाँ देखो हर जगह
बेजुबान पेड़ कट रहें,
जहाँ देखो हर जगह,
पशु पक्षी मर रहे,
जहाँ देखो हर जगह,
मकान बन रहे,
क्या होगा इस जहाँ का,
इन्सान क्या करें।
होती बन्द आँखें तो,
बन्द कर लेता,
या बन्द करता उनकी आँखें,
जो बन्द करके आँखें,
अपराध हैं करते,
इन्सानियत खो गयी,
मोहब्बत हुई खत्म,
कोई तो बताये इन्सान क्या करें।
आरक्षण की बौछार,
रोजगार की तलाश,
रोटी की जुगत में,
खाने का प्रयास,
समय का अभाव ,
बदलता स्वभाव,
मन में हलचल,
इन्सान क्या करें।
देखी समाज में नारी की स्थिति,
शोषण और दबाव बदलती परिस्थिति,
फलों का अम्बार,
भोजन का भण्डार,
फिर क्यूँ देश में भूखों की फौज,
गरीबों की संख्या नेता की मौज,
फौज से लड़े या फौज में रहें,
कोई तो बताये इन्सान क्या करें।
24/05/2016
डाॅ• राहुल शुक्ल
ईमेल - rsrahulshukla9@gmail.com
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